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श्री कागभुसुंडिजी द्वारा भगवान की बाल लीला का दर्शन
श्री कागभुसुंडिजी भगवान श्री राम जी की बाल लीला का दर्शन कर रहे थे तभी भगवान ने अपने हाथ से मालपुआ श्री कागभूसुंडीजी को बताया और कहा खाओ, जैसे ही काग भूसुंडी जी खाने आए वैसे ही भगवान रो दे फिर भगवान मालपुआ दे ,काग भूसुंडी जी खाने आए भगवान फिर रो दे । जब 5-6 बार यह दृश्य हुआ काग भूसुंडी जी कहने लगे यह भगवान है। यह भगवान नहीं हो सकते, क्या कभी भगवान अपने भक्तों के साथ ऐसा करते हैं। यह भगवान नहीं है?
पकड़ा माया ने कागभूसुंडीजी को भगवान ने बैठे बैठे हाथ फैलाएं सप्तवर्ण भेदकर तीन लोक 14 भवन काग भूसुंडीजी भागते रहे भगवान का हाथ उनके पीछे-पीछे दौड़ता है। जब काग भूसुंडी जी की मति चकराई फिर अयोध्या लौटे भगवान राम ने अपना मुख खोला और काग भूसुंडी जी भीतर चले गए।
अनेका अनेक ब्रह्मांड दिखाई देने लगे ब्रह्मांड में पृथ्वी है उसमें जाकर अयोध्या में श्री राम का जन्म देखने लगे। ऐसा करते-करते कागभुसुंडि जी भगवान के पेट में 100 कल्प रहे। जब-जब जिस जिस ब्रह्मांड में राम जी का जन्म होता था, काग भूसुंडी जी दर्शन करते थे। 100 कल्प बीतने के बाद भगवान ने मुख को खोला भूसुंडी जी बाहर आए। जब बाहर आए तो एक दंड (24 मिनट का समय) ही बिता था अभी काग भूसुंडी जी की मति चक्रई काग भूसुंडी जी भगवान के चरणों में लौट गए। प्रभु क्षमा करिएगा मैंने आप पर संशय किया।
राम जी ने कहा क्या चाहिए आपको कागभूसुंडीजी। काग भूसुंडी जी बोले जो आपको लगे प्रभु, भगवान बोले ज्ञानी हो जाइए, विज्ञानी हो जाइए, समस्त कल के धाम हो जाइए, सभी गुनो के धाम हो जाइए, भगवान इतना बोलकर चुप हो गए कागभुसुंडि जी उदास हो गए। क्यों? – “प्रभु कह देन सकल सुख सही। भगति आपनी देन न कही।।” भगवान ने सब कुछ दे दिया पर अपनी भक्ति नहीं दी तो यह सब व्यर्थ है। जब कागभुसुंडि जी का उदास चेहरा भगवान ने देखा तो बोले क्या बात है काग भूसुंडी जी। काग भूसुंडी जी बोले प्रभु सब कुछ दे दिया अपनी भक्ति नहीं दी।
कैसे कागभूसुंडीजी को श्राप मिला
काग भूसुंडी जी अयोध्या से उज्जैन गए । गुरुदेव भगवान वैष्णव थे और और काग भूसुंडी जी शिव भक्त जानकर गुरुदेव ने सेव मंत्र दे दिया। काग भूसुंडी जी का यह मानना था शिव भक्त वैष्णव भक्त से बड़ा होता है। काग भूसुंडी जी बाबा महाकाल के मंदिर में बैठ कर आराधना कर रहे थे ,पीछे से गुरुजी आए काग भूसुंडी जी बैठे रहे । गुरुजी आए तो उठे नहीं और शिष्य के द्वारा सद्गुरु का अपमान बाबा महाकाल सहन नहीं कर पाए । बाबा की शिवलिंग से भयंकर गर्जना हुई “पापी गुरुदेव के आने के बाद भी अजगर की तरह बैठा है जहां श्राप देता हूं अजगर हो जा” तब गुरुदेव भगवान को दया आई तो भगवान महाकाल से प्रार्थना की-
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।
करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।।
चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।।
त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनान्ददाता पुरारी।।
चिदानंदसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।।
तब भगवान ने कहा अनेकों बार तुझे शरीर बदलना पड़ेगा, लेकिन तेरे गुरु के कारण तुझे आशीर्वाद देता हूं। जब-जब तू शरीर बदलेगा जब तुझे कोई कष्ट नहीं होगा और किसी भी जन्म की बिस्मृति नहीं होगी।
बार-बार शरीर बदलते मनुष्य बन तो बचपन में ही माता-पिता गुजर गए राम भक्त थे तो वन में निकाल कर लोमश ऋषि से मिले और बोले हमें शगुन भगवान के बारे में बताइए। तो लोमश ऋषि निर्गुण भगवान के बारे में सुनाने लग जाते। फिर कागभूसुंडी बोलते मुनिवर सगुन भगवान के बारे में सुनाइए। लोमश ऋषि सगुन भगवान के बारे में सुनते सुनते निर्गुण भगवान के बारे में सुनाने लगते। जब ऐसा 5-6 बार हुआ तो लोमश ऋषि को क्रोध आ गया “बोले मैं जो बोलता हूं वह नहीं सुनता बीच -बीच कौवे की तरह काओ-काओ करता है जय श्राप देता हूं कौवा हो जा”। और काग भूसुंडी जी कौवा बन गए। यह श्री रामचरितमानस का चौथा घाट था ।कैसे श्री रामचरितमानस के चारों घाटों के वक्त ने श्री रामचरितमानस की महिमा गई।
summary(सारांश)
कागभूसुंडीजी की अद्वितीय कथा को जानते हैं, जिन्होंने भगवान श्रीराम के दिव्य लीला के साथ एक अनोखा संवाद किया। कागभूसुंडी जी ने भगवान राम को अपने हाथों से मालपुआ बनाते हुए देखा, लेकिन जैसे ही वह खाने के लिए आए, भगवान राम रो देते थे, और जब कागभूसुंडी जी चले जाते, तो भगवान राम हंसते थे। यह कई बार हुआ, जिससे कागभूसुंडी जी ने सवाल किया कि क्या यह वाकई एक दिव्य ब्रह्म के व्यवहार हो सकता है।
तब माया, ब्रह्मांडिक भ्रम की प्रतिष्ठा, आक्रमण किया, और कागभूसुंडी जी ने भगवान के वास्तविक स्वरूप के बारे में गहरी जागरूकता प्राप्त की। कागभूसुंडी जी ने भगवान शिव की भक्ति में अपना मार्ग बदला और एक गुरु के मार्गदर्शन से ज्ञान प्राप्त किया।
आखिरकार, कागभूसुंडीजी की खोज ने एक गहरी समझ में लाई कि भक्ति का सार भौतिक आशीर्वाद प्राप्त करने में नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में और दिव्य की शरण में है। यह कथा एक भक्त के आत्मिक सत्य की खोज और भक्ति की परिवर्तक शक्ति को दर्शाती है।
Question and Answer(प्रश्न और उत्तर)
प्रश्न: कागभूसुंडीजी की कहानी में क्या संदेश है?
उत्तर: कागभूसुंडीजी की कहानी में मुख्य संदेश है कि भगवान की भक्ति का महत्व भौतिक आशीर्वाद प्राप्त करने में नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में और दिव्य की शरण में है। यह कहानी एक भक्त के आत्मिक सत्य की खोज और भक्ति की परिवर्तक शक्ति को दर्शाती है।
प्रश्न: कागभूसुंडी जी की कहानी में क्या अद्वितीय घटना घटी?
उत्तर: कागभूसुंडी जी और भगवान श्रीराम के बीच यह अद्वितीय घटना घटी कि भगवान राम अपने हाथों से मालपुआ बनाते थे, लेकिन जैसे ही कागभूसुंडी जी खाने के लिए आते, वे रो देते थे, और जब कागभूसुंडी जी चले जाते, तो वे हंसते थे। यही घटना बार-बार होती रही, जिससे कागभूसुंडी जी को यह विचार आया कि क्या यह वाकई दिव्य भगवान के व्यवहार का प्रमाण है।
प्रश्न: कागभूसुंडीजी का आखिरी रूप क्या था?
उत्तर: कागभूसुंडीजी का आखिरी रूप काग (कौआ) था, जो गुरुदेव के शाप के बाद उनके गुरु बाबा महाकाल के मंदिर में चले गए और वहां शिव भक्ति करने लगे।
प्रश्न: कागभूसुंडीजी का इस कथा में क्या संदेश है?
उत्तर: कागभूसुंडीजी की कथा में मुख्य संदेश है कि भगवान के प्रति निःस्वार्थ भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान की महत्वपूर्णता है। यह कहानी दिखाती है कि भक्ति और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से व्यक्ति भगवान के प्रति समर्पित होकर अपने आत्मिक सत्य को पहचान सकता है। यह भी सिखाती है कि भगवान के साथ संशय करना नहीं चाहिए, क्योंकि उनका प्रेम और शक्ति हमें हमेशा सहायता करेगा।