याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद में श्री याज्ञवल्क्य जी जब श्री भारद्वाज जी को कथा सुनाते हैं, तो श्री भारद्वाज जी का रोम रोम पुलकित हो जाता है। उनका कंठ अवरोध हो जाता है। आंखों से आंसू बहने लगते हैं। याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी से कहते हैं,अगर पुण्य अर्जित करना हो तो प्रभु श्री राम कहते हैं- पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा॥
पुण्य केवल एक है दूसरा नहीं मन, कर्म ,वचन से ब्राह्मण में श्रद्धा उत्पन्न हो जाए यही जीवन में पुण्य बढ़ता है। धन्य कौन?-धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्॥ जिस मनुष्य के कान सतत ही भागवत नाम सुनते हैं। वह जीव धन्य है भारद्वाज जी आप धन्य है।
यहां याज्ञवल्क्य जी बोले- भारद्वाज जी आपने सोचा होगा मैंने पूछी राम कथा और आप सुन रहे हैं शिव कथा अकारण नहीं सुनाई, जानबूझकर सुनाइए। क्यों ?- सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥ भगवान शिव के चरणों में जो प्रेम नहीं करता, राम जी उस मनुष्य का चेहरा सपने में भी नहीं देखते।
प्रथम मैंने आपको शिव कथा सुना कर आपका मर्म को बुझा। आप राम जी के सूचि भक्त हैं। आप निर्मल और पवित्र हैं आप सूचित संपन्न भगवान के भक्त हैं।
अब मैं आपको राम कथा सुनाऊंगा मैं जो आपको सुनाने जा रहा हूं। उसे 100 करोड़ शेषनारायण एक साथ खड़े होकर भी नहीं गा सकते । एक शेषनारायण के पास 1000 मुख होते हैं। सभी शेषनारायण अपने अनेकों मुख से भी श्री राम जी की कथा गाने में सक्षम नहीं है।
भारद्वाज जी बोले जब इतने मुख वाले शेष नारायण नहीं गा सकते, तो आप कैसे जाएंगे। याज्ञवल्क्य जी बोले मैं नहीं गाऊंगा, फिर जेहि पर कृपा करहि जनु जानी। याज्ञवल्क्य जी बोले मैं नहीं गाऊंगा मुझे भगवान गवाते हैं।
मां सरस्वती हमारी जीव को कठपुतली की तरह नचाती है।राम जी जिस पर कृपा करें वही जीव कथा गाता है। भगवान जिसको अपना मान लेते हैं उस पर अपनी कृपा कर देते हैं। भगवान की कृपा पानी के लिए संतों का संघ करना चाहिए। याज्ञवल्क्य जी ने इस कर्मकांड से ज्ञान घाट कैलाश गए। कैलाश का शिकार दिव्या है, और कैलाश पर माता पार्वती और शिवजी का संवाद चल रहा है।
Summury
याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद के माध्यम से बताया गया है कि श्री याज्ञवल्क्य जी जब भगवान राम की कथा श्री भारद्वाज जी को सुनाते हैं, तो श्री भारद्वाज जी के मन में भावना उत्तेजित होती है। उनका दिल भगवान राम के प्रति भक्ति से भर जाता है। याज्ञवल्क्य जी बताते हैं कि पुण्य केवल एक होता है और उसे प्राप्त करने के लिए मन, कर्म, और वचन से ब्राह्मण में श्रद्धा उत्पन्न होनी चाहिए। वे भारद्वाज जी की भक्ति की प्रशंसा करते हैं और उन्हें धन्य मानते हैं। याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी से कहते हैं कि उन्होंने शिव कथा की थी, लेकिन अब वे भगवान राम की कथा सुनाएंगे। याज्ञवल्क्य जी के द्वारा बताया जाता है कि भगवान राम की कथा को सुनने के लिए भगवान की अनुग्रह चाहिए और वे खुद नहीं गाएंगे, बल्कि वह दिव्य आशीर्वाद के रूप में उसके माध्यम से प्रकट होगा। ब्लॉग में यह भी बताया गया है कि भगवान की कृपा वहीं होती है जिस पर वह अपना आशीर्वाद देते हैं और कैलाश को भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य संवाद का स्थल माना गया है।
Question and answer
Question 1: याज्ञवल्क्य और भारद्वाज के बीच कैसे हुआ इस संवाद का आरंभ?
Answer: याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद का आरंभ तब हुआ जब याज्ञवल्क्य जी ने श्री भारद्वाज जी को राम कथा सुनाने का प्रस्ताव दिया। इस संवाद के आरंभ में भारद्वाज जी का आकर्षण और भाग्य के बारे में विचार किया जाता है।
Question 2 : याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज को किस विषय पर कथा सुनाई?
Answer : याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज को श्री राम कथा सुनाई, जिसमें विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाएं और धार्मिक सन्देश शामिल हैं।
Question 3 : भारद्वाज जी ने याज्ञवल्क्य से शिव कथा सुनाने के लिए क्यों कहा?
Answer : भारद्वाज जी ने याज्ञवल्क्य से शिव कथा सुनाने के लिए कहा क्योंकि उनका दिल शिव परमात्मा के प्रति प्रेम से भरा हुआ था। उनके लिए शिव कथा सुनना अत्यंत महत्वपूर्ण था।
Question 4 : याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद के माध्यम से कैलाश की यात्रा किसने की और क्यों?
Answer: याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद के माध्यम से कैलाश की यात्रा की और इसका मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति था। कैलाश का शिकार दिव्या है और वहां पार्वती माता और शिवजी के संवाद का साक्षात्कार किया गया।