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वनवास मार्ग में निषाद राज जी से भेंट
वनवास मार्ग में प्रथम रात्रि प्रभु ने तमसा नदी के किनारे बिताई है। भगवान ने अपने योग माया से सभी को गहरी निद्रा में सुलाकर आगे प्रस्थान किया है।
प्रभु माता सीता, लक्ष्मण भैया और सुमंत जी के साथ श्रृंगवेरपुर गंगा जी के तट पर पहुंचे। भगवान के पास निषाद राज उपहार लेकर पहुंचे। निषाद राज ने प्रभु श्री राम के विश्राम के लिए कुशा की चटाई बिछी है।
इस अवस्था को देखकर निषाद राज रोने लगे और कहते हैं। प्रभु को मां कैकई ने वन में भेज दिया है। तभी लक्ष्मण जी कहते हैं, निषाद राज जी जीवन में कोई किसी को दुख नहीं देता।
हम अपने द्वारा किए गए कर्म से ही सुखी रहते हैं और अपने द्वारा किए गए कर्म से ही दुखी रहते हैं यह संसार का नियम है। निषाद राज जी प्रभु के चरणों में दंडवत करते हैं।
प्रातः काल हुआ भगवान ने बरगद के दूध को बालों में लगाया और अपने बालों का मुकुट बना लिया। सुमंत जी ने कहा प्रभु आपके पिताजी ने आपको वापस बुलाया है।
सत्य की दुहाई देखकर राम जी ने मना कर दिया। प्रभु ने सुमंत जी को अयोध्या की ओर वापस भेज दिया है।
प्रभु श्री राम के प्रति केवट जी का प्रेम
प्रभु श्री राम गंगा जी के किनारे पहुंचे हैं। भगवान ने गंगा तट से इशारे से कहा केवट जी नाव ले आइये। केवट जी बोले नहीं लाऊंगा, राम जी मैं आपके मरम को जान गया हूं इसीलिए नव नहीं लाऊंगा।
लक्ष्मण जी कहते हैं भैया मैं आपके साथ बचपन से हूं आज तक मैं आपका मर्म नहीं जान पाया हूं और केवटजी कहते हैं कि मैं आपका मर्म जान लिया है।
राम जी लक्ष्मण जी से कहते हैं आप ही पूछिए कौन सा मर्म जान गए हैं लक्ष्मण जी कहते हैं आप कौन सा मर्म जानते हैं केवट जी बोले मैं जान गया हूं राम जी कौन है। राम जी बोले कैसे जानएगे।
केवट जी बोले, आपके मांगने के तरीके ने बता दिया आप कौन हैं। नित्य नाव चलाता हूं सैकड़ो लोग आते हैं। गंगा जी पार करने के लिए पर इस प्रकार से किसी ने नाव नहीं मांगी। आज तक जो भी आया उसने आदेश दिया है।
लेकिन आज आपने आदेश नहीं दिया मुझे याचना की है। आपकी चरण राज से पत्थर स्त्री में बदल जाता है। अगर मेरी नाव स्त्री में बदल गई तो मैं अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करूंगा।
मैं अपनी धर्मपत्नी को कैसे समझाऊंगा। लक्ष्मण जी कहते हैं केवट जी आप इतनी देर से राम जी को समझा रहे हैं, आप अपनी स्त्री को नहीं समझा सकते।
केवट जी कहते हैं, मैं राम जी को तो समझा सकता हूं लेकिन अपनी पत्नी को नहीं समझा सकता।प्रभु मैं आपके बिना पैर धोए नाव में चढ़ने वाला नहीं हूं।
भगवान ने कृपा की केवट जी पर, परिवार सहित पात्र में जल लेकर आए प्रभु के चरण धोने हेतु। प्रभु के चरणों को धोया और उस चरण अमृत को परिवार सहित ग्रहण किया।
उसके पश्चात केवट जी ने भगवान को गंगा जी पार कराई और प्रभु के चरणों में दंडवत किया। प्रभु ने अपनी भक्ति देकर केवटजी को विदा किया है। तीर्थप्रयाग में भारद्वाज जी से मिले उनके बाद वाल्मीकि जी से मिलकर अपने रहने का स्थान पूछते हैं।
Summary
वनवास के दौरान भगवान राम की भक्ति और उनके भक्तों के प्रति उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। निषाद राज और केवट जी के माध्यम से भगवान के अनुग्रह का महत्त्वपूर्ण उदाहरण दिया गया है। यह भक्ति, विश्वास और दया की महत्ता को समझाता है और भगवान की कृपा को मानवीय जीवन में महत्त्व देता है।
Question and Answer
प्रश्न 1: निषाद राज और केवट जी की कहानी क्या थी?
उत्तर: वनवास में, निषाद राज ने प्रभु राम को उपहार दिया और केवट जी ने प्रभु की समझ में बात की। निषाद राज ने प्रभु की चरण-धुली की और केवट जी ने प्रभु के पावन चरणों को धोया।
प्रश्न 2: किस तरह निषाद राज और केवट जी ने प्रभु श्री राम से मिला और उन्होंने क्या सीखा?
उत्तर: वनवास के दौरान, निषाद राज ने प्रभु राम को उपहार दिया और उनकी सेवा की। केवटजी ने राम जी के साथ संवाद करके उनकी अनूठी भक्ति को दर्शाया। इसके जरिए, वे कर्मों की महत्ता और धर्म के प्रति समर्पण की महत्ता को सीखा।