कैसे माता सती का त्याग भगवान शिव ने किया
एक बार भगवान शिव और माता सती दोनों अगस्त ऋषि के पास कथा सुनने के लिए गए अगस्त ऋषि ने माता सती और भगवान शिव को देखा कितने भाव में आ गए दिव्या आसन पर बिठाकर लगे पूजा करने। जब ऋषि अगस्त कथा के वक्त होकर भगवान और माता का पूजन करने लगे, तो माता सती ने सोचा, की लगता है इनका ज्ञान हमारे ज्ञान से कम है। छोटे हैं तभी तो हमारी पूजा कर रहे हैं। माता सती कहने लगी बाबा भी कहां-कहां लेकर आ जाते हैं। यह कौन सी कथा सुनाएंगे यहां पर ध्यान दीजिए सुनने से पहले श्रद्धा समाप्त हो गई। कथा समाप्त हो गई माता बैठी रही कुछ सुना नहीं। सुना किसने- “सुनी महेस परम सुखु मानी॥” बाबा की कथा सुनी परम आनंद में आए राम जी की भक्ति का वरदान दक्षिणा में दिया और चल दिए।
त्रेता युग का समय है राम जी अवतार ले चुके हैं। जिस दंडकारण्य में बाबा कथा सुनाने आए थे, इस दंडकारण्य में सीता जी राम जी और लक्ष्मण जी रहते हैं। जब बाबा आकाश मार्ग से जा रहे थे, तो भगवान की लीला पृथ्वी पर चल रही थी। बाबा ने सोचा कथा सुनकर कान तो धन्य कर लिए, अब आंख भी धन्य कर लेता हूं। बाबा ने रघुनाथ जी को दिखा * “संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा ॥” जैसे ही शंकर भगवान को राम जी दिखाई पड़े बाबा कहने लगे सच्चिदानंद भगवान आपकी जय हो जय जयकार करके चले।
सती माता ने कथा सुनी नहीं उन्हें पता ही नहीं कि भगवान रो भी थे, उनकी पत्नी के हरण के बाद। भगवान ने जय जयकार करके प्रणाम किया। माता सती ने मन में सोचा क्या यह भगवान है। भगवान क्या अपनी पत्नी के लिए कभी रोते हैं। क्या और यह भगवान है, तो इनको अपनी पत्नी के बारे में पता नहीं होगा क्या, नहीं यह भगवान नहीं है, अनेक प्रकार से समझाया माता को समझ नहीं आई। बाबा ने कहा देवी जब आपको इतना ही संचय हो गया है तो परीक्षा ले लीजिए। मैया परीक्षा लेने गई और बाबा भजन में बैठ गए “अस कहि लगे जपन हरिनामा।”
मां सती को परीक्षण के लिए भेज कर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। बोले आप जब तक परीक्षा लेकर आएंगे मैं इसी बट के वृक्ष के नीचे बैठा हूं। सती मैया परीक्षा लेने चली * “पुनि पुनि हृदयँ बिचारु करि धरि सीता कर रूप। आगें होइ चलि पंथ तेहिं जेहिं आवत नरभूप॥” मां सोचने लगी कैसे राम जी की परीक्षा लूं। बहुत सोचने के बाद मां को एक बात समझ में आई वह अपनी सीता को ढूंढ रहे हैं क्यों नाम है सीता का रूप बना लूं तो भगवान पीछे-पीछे आएंगे।
राम लक्ष्मण जी आ रहे थे। सती मैया ने सीता जी का रूप बनाया और आगे आगे चलने लगी। लक्ष्मण जी की दृष्टि गई यह कोई और है। मेरी भाभी नहीं हो सकती, मेरी भाभी हमेशा भैया के पीछे-पीछे चलती है। यह आगे आगे चल रही है यह मेरी भाभी नहीं है। और ध्यान से * “लछिमन दीख उमाकृत बेषा। चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा॥”
लक्ष्मण जी कहते हैं अरे यह तो माता सती की है। भाभी का रूप बनाकर घूम रही है लग रहा है प्रभु की कोई लीला चल रही है लक्ष्मण जी मौन हो गए। राम जी देख, राम जी ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम किया और बोले, मैं दशरथ नंदन राम आपको प्रणाम करता हूं। बाबा कहां है, अकेले-अकेले घूम रही है। सती माता के पैरों से धरती खिसक गई। सती माता सोचने लगी मैं बाबा को क्या उत्तर दूंगी। मैंने अपने पति के वचनों पर विश्वास नहीं किया। माता सती बाबा के पास गई बाबा ने कहा कैसे परीक्षण किया माता ने बाबा से झूठ कह दिया- “कछु न परीछा लीन्हि गोसाईं। कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाईं॥”
मेरी मां ने कहा, प्रभु मैं कोई परीक्षण नहीं किया। बाबा भोले क्या किया जो आपने किया वही मैंने भी किया। बाबा को विश्वास नहीं हुआ। इतना समझता रहा मान जाओ मान जाओ और बिना परीक्षा लिए आ गई। शंकर जी ध्यान अवस्थित हुए और ध्यान में जाकर सब देखा। मेरी सती ने मां का रूप बनाया बाबा को बड़ा कष्ट हुआ। बाबा कहते हैं यह सती का अपराध नहीं है। यह भगवान की माया का अपराध है। यह राम जी की माया ने सती से झूठ कहलवाया है। मेरी सती झूठ नहीं बोलती ।
राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥
हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥
शंकर भगवान ने सोचा कि अब जब जब मैं सती को देखूंगा तो मुझे लगेगा माता को देख रहा हूं और जिसे देखने के बाद मां की याद आएगी उनके साथ में गृहस्थ जीवन का निर्वहन कैसे करूंगा। बाबा ने इस समय मन में संकल्प किया कि आज के बाद “एहिं तन सतिहि भेंट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं॥”
सती जब तक इस शरीर में है सती और मेरी भेंट नहीं हो सकती। बाबा ने सती मैया का त्याग कर दिया आकाशवाणी हुई जय जयकार हुई। माता सती ने बहुत पूछा क्या प्रण लिया है। बाबा नहीं बोल किसी बात से अगर किसी को कष्ट हो तो मौन धारण कर लेना चाहिए। माता सती ने बाबा से पूछा *”कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला। सत्यधाम प्रभु दीनदयाला॥”
हे प्रभु आपने कौन सा प्राण ले लिया है। बाबा नहीं बोल कैलाश गए और बाबा समाधि में आ गए। बाबा 87000 साल समाधि में रहे “बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी॥” भगवान शंकर जागे और राम नाम का सुमिरन करने लगे माता जान गई बाबा जाग गए हैं माता ने जाकर बंधन किया।
भगवान ने माता को अपने सामने बिठाया क्यों क्योंकि भगवान ने माता का त्याग कर दिया है। माता की व्यथा को समाप्त करने के लिए रघुनाथ जी की कथा बाबा सुनाने लगे “लगे कहन हरि कथा रसाला।”
इस समय माता सती के पिता दक्ष को प्रजापतियों का राजा बनाया था। तभी प्रजापति दक्ष को अभियान हुआ सभी देवता कैलाश के ऊपर से गुजरते हुए जा रहे थे। तभी मा ने पूछा यह सब कहां जा रहे है। बाबा बोले आपके पिता श्री यज्ञ कर रहे हैं। उसमें भाग लेने जा रहे हैं मां ने कहा नाथ-
“ पिता भवन उत्सव परम जौं प्रभु आयसु होइ।
तौ मैं जाउँ कृपायतन सादर देखन सोइ॥”
मां सती ने बड़ी विनम्रता से पूछा। नाथ पिताजी के घर उत्सव है, यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं भी उत्सव देखने चली जाऊं। बाबा ने कहा देवी “कहेहु नीक मोरेहूँ मन भावा। यह अनुचित नहिं नेवत पठावा॥” आपने बड़ी अच्छी बात कही बेटी को पिता के घर जाना चाहिए लेकिन मैं एक बात कहूं आपका जाना अनुचित होगा।
क्योंकि हमें निमंत्रण नहीं आया है। आपके पिता मुझे बेर मानते हैं। बाबा ने समझने का प्रयास किया। माता नहीं मानी जब सती मैया नहीं मानी “कहि देखा हर जतन बहु रहइ न दच्छकुमारि।”
अनेक प्रकार से यत्न करके बाबा माता सती को समझाया। जब मैया नहीं मानी तो अंत में “दिए मुख्य गन संग तब बिदा कीन्ह त्रिपुरारि॥”
जब माता सती अपने पिता के घर गई तो किसी ने बात नहीं की लेकिन जन्म देने वाली मां ने दौड़कर सती जी को गले से लगा लिया फिर “भगिनीं मिलीं बहुत मुसुकाता”
बहाने बहुत मुस्कुरा कर मिले अर्थात हंसने लगी। जब माता ने यज्ञ की परिक्रमा लगाई। तो सभी देवताओं का स्थान दिखा पर भगवान शिव का कोई स्थान नहीं था। पिता के घर पति का अपमान मां बर्दाश्त नहीं कर पाई। मां का पूरा शरीर क्रोध अग्नि जलने लगा मां ने कह।
है देवगन है मुनि गण ध्यान से सुनिए आज आप लोगों में से जिस जिस ने भी निंदा की है और सुनी है। सबको दंड मिलेगा वह मेरे पति नहीं जगत के पिता भी है। और इस मंद मति मेरे पिता ने मेरे पति का अपमान किया है। आज के बाद में दक्ष की बेटी के रूप में जीवित नहीं रहूंगी।
दाहिने पैर के अंगूठे से योग अग्नि को प्रज्वलित किया और मां ने अपने आप को जलाकर भस्म कर लिया। नारद जी ने यह बात बाबा को कैलाश में जाकर बताई। भगवान को आया क्रोध जटा से कैश निकालकर पटका और वीरभद्र को प्रकट किया। बाबा ने वीरभद्र को कुपित करके भेज। वीरभद्र ने दक्ष के सर को पकड़ा और गार्दन से धड़ से अलग करके यज्ञ कुंड में डाल दिया ।
यज्ञ विध्वंस हो गया। बाद में बाबा को यज्ञ की रक्षा के लिए बुलाया क्योंकि यज्ञ स्वयं नारायण का रूप है। माता ने शरीर छोड़ने से पहले वर मांगा “सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा॥” माता सती ने जन्म जन्म तक भगवान शिव की अर्धांगिनी होने का वर मांगा तब भगवान श्री हरि ने वरदान दिया।
“तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई॥” तब माता ने राजा हिमांचल के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। तब नारद जी पहुंचे। राजा हिमाचल ने स्वागत किया पार्वती जी को बुलाया। हाथ की रेखा बताइए और कहां की मेरी बेटी के दोष और गुण बताइए।
नारद जी रेखा देखकर बोले महाराज आपकी बेटी समस्त सद्गुणों की खान है। उनका नाम उमा अंबिका भवानी होगा। संसार की देवियां आपकी बेटी के नाम का स्मरण करके पति व्रत का पालन करेगी। आपकी बेटी का सौभाग्य अखंड रहेगा। आपकी बेटी के कारण आपको यश की प्राप्ति होगी।
हिमाचल कहते हैं अब पति के बारे में बताइए-
“अगुन अमान मातु पितु हीना। उदासीन सब संसय छीना॥”
“जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल बेष।”
“अस स्वामी एहि कहँ मिलिहि परी हस्त असि रेख॥”
नारद जी बोले अभी मैंने बताया है वह सारे गुण अवगुण शंकर जी में विद्यमान है हिमाचल जी पूछते हैं। मेरी बेटी का विवाह उनसे कैसे होगा नारद जी बोले “जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी। भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी॥” माता ने छोटी सी अवस्था में कठिन तप किया। आकाशवाणी हुई आकाशवाणी ने कहा पार्वती जी आपकी मनोकामना पूर्ण हुई पिताजी बुलाए तो घर जाएगा।
भगवान शिव को वैराग्य हुआ तो श्री राम ने दर्शन दिए और कहा “जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु॥” भगवान राम ने अनेकों प्रकार से भगवान शिव को मनाया। भगवान शिव कहते हैं प्रभु यह उचित तो नहीं होगा पर आपकी आज्ञा शिरोधारी है। भगवान ने सप्त ऋषियों को भेजकर माता के प्रेम की निष्ठा को परखा।
बाबा फिर समाधि में चले गए। तो समाधि भंग करने के लिए देवताओं ने कामदेव को भेजो। कामदेव ने अपने पूरे प्रभाव का विस्तार किया। जब अपने काम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा वह कामदेव ने आम के पल्लवन के पीछे छुपकर पांच बानो को एक साथ साधा। पांचो पांचो बानो को भगवान के हृदय में उतार दिया। जैसे ही पांचो बान बाबा के हृदय में लगे बाबा के नेत्र खुले। लगे देखने किसने मारा। तभी बाबा की दृष्टि कामदेव पर गई। तीसरा नेत्र खुल और कामदेव भस्म हो गए।
समाधि से बाबा बाहर आए। तो सभी देवताओं ने बाबा की स्तुति गाई और उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी भगवान शिव से कहते हैं ब्रह्मा जी बोले आप तो अंतर्यामी है। सब जानते हैं। शंकर जी बोले बताइए किस कारण हेतु आए हैं। ब्रह्मा जी बोले *”सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।”
देवता आपके विवाह का दर्शन करना चाहते हैं। बाबा ने अनुमति दी। सप्तर्षि गए हिमाचल जी के यहां। सभी देवताओं ने विवाह की तैयारी की। यहां गोस्वामी जी कहते हैं “लगे सँवारन सकल सुर बाहन बिबिध बिमान।”
सभी बाबा के गान बाबा को संवारने लगे और गोस्वामी जी कहते हैं।
* सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा॥
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला॥
* ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा॥
गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला॥
* कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा। चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा॥
देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं। बर लायक दुलहिनि जग नाहीं॥
एक गान ने बाबा को की जटाओं का मुकुट बनाया। तभी दूसरे ने सांपों का मोर बनाकर बाबा को पहना दिया। सांपों के कंगन कुंडल बनाकर गन ने बाबा का श्रृंगार किया। बाबा नंदी पर बैठे बारात सजी और गानों के द्वारा जय जयकार हुई। जब देवगणों ने बाबा का स्वरूप देखा तो भगवान विष्णु ने कहा बर अनुहारि बरात न भाई।
सभी देवगन बाबा से पहले चल दिए। बाबा ने कहा सभी भूत प्रेत को बुलाओ तभी। भृंगी ने अपना बिगुल बजाया तो चारों दिशाओं से हर हर महादेव हर हर महादेव की आवाज आने लगी और यह जय घोष भूतों द्वारा हुआ । और सभी भूत कैसे आए “सिव अनुसासन सुनि सब आए। प्रभु पद जलज सीस तिन्ह नाए॥” ऐसे ऐसे भूत आए जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता है। तभी देवताओं को आवाज आई।
हर हर महादेव की जब जब देवताओं ने भूतों को बारात में नाचते हुए देखा तो सभी आश्चर्यचकित हो गए। दो सहित जब बाबा की बारात नगर में पहुंचे। तो सारे हाथी घोड़े आगवान भाग गए सभी ने अपने दरवाजे बंद कर दिए। बाबा द्वारा पूजन के लिए पहुंचे। तो मैंना मैया आई जैसे ही बाबा का भयंकर रूप है मैंना जी ने देखा विलाप करती हुई अंदर चली गई।
तभी नारद जी ने रानी मैनावती और हिमाचल जी को पार्वती जी का पुनर्जन्म याद कराया। अनेकों प्रकार से समझाया बाबा महादेव ने पीतांबर वस्त्र धारण किए। मंडप में पूजन हुआ विवाह संपन्न हुआ। और सभी देवताओं ने बाबा की जय जयकार करते हुए कहा पार्वती पति महादेव की जय। यह सारी कथा श्रीयाज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज जी को कहि।
summary(सारांश)
माता सती और भगवान शिव के परम प्रेम की कथा का वर्णन किया गया है। कथा में बताया गया है कि कैसे माता सती के पिता दक्ष ने उनके पति भगवान शिव के प्रति अपमान किया और उन्हें यज्ञ से वंचित किया। माता सती ने अपने पिता के घर के उत्सव में भाग लेने की इच्छा जताई, लेकिन उनके पिता ने इसे अस्वीकार किया।
माता सती ने अपने पति के अपमान को बर्दाश्त नहीं किया और अपने शरीर को आग में समर्पित किया। भगवान शिव ने इसके बाद माता सती की आत्मा को पुनर्जीवित किया और माता पार्वती के रूप में विवाह किया।
इस कथा से हमें प्रेम और समर्पण की महत्वपूर्ण सिख मिलती है, और भगवान शिव और माता सती के बीच के दिव्य प्रेम का वर्णन किया गया है। ब्लॉग में कथा के रूप में प्रस्तुत की गई है और यह धार्मिक महत्व की एक प्रमुख कथा है।
Question and answer(प्रश्न और उत्तर)
प्रश्न: माता सती के पिता दक्ष ने उन्हें क्यों यज्ञ कुंड में नहीं जाने दिया था?
उत्तर: माता सती के पिता दक्ष ने उन्हें यज्ञ कुंड में नहीं जाने दिया क्योंकि उन्हें यज्ञ के निमंत्रण नहीं मिला था और दक्ष उन्हें अपने पति भगवान शिव के अपमान से बचाना चाहते थे। माता सती ने यज्ञ कुंड में जाने की इच्छा जताई, लेकिन दक्ष उनकी यह इच्छा असम्मानित कर दी और इसके परिणामस्वरूप माता सती ने अपने शरीर को आग में दिया।
प्रश्न: माता सती के प्रति भगवान शिव का भाव क्या था?
उत्तर: भगवान शिव का माता सती के प्रति अत्यंत प्रेम था। वे उन्हें अपनी अर्धांगिनी मानते थे और माता सती ने जन्म जन्म तक भगवान शिव की अर्धांगिनी रहु।
प्रश्न: माता सती के आत्महत्या के पीछे क्या कारण था? उत्तर: माता सती की आत्महत्या का मुख्य कारण था उनके पिता दक्ष के द्वारा उनके पति भगवान शिव के अपमान का प्रयास। दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने भगवान शिव को निमंत्रित नहीं किया था और उन्हें यज्ञ में अपमानित किया। माता सती ने यज्ञ को देखकर इस अपमान को सहने की कठिनाइयों के बावजूद भगवान शिव की स्तुति की और उनके प्रति अपनी प्रेमभावना प्रकट की। लेकिन जब दक्ष ने उनकी इच्छाओं को असम्मानित नहीं किया, तो माता सती ने अपने शरीर को आग में दिया, जिससे वे अपने प्रेमभक्त भगवान शिव के साथ एक हो गईं।