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श्रीराम राज्याभिषेक हेतु लंका से प्रस्थान
प्रभु श्रीराम राज्याभिषेक के लिए लंका से पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं। प्रभु के साथ पुष्पक विमान में मां सीता, लक्ष्मण जी, हनुमान जी, अंगद, नल-नील, सुग्रीव जी और द्विध मयंक तथा विभीषण जी साथ चले।
प्रभु ने मां सीता को सारे स्थान दिखाएं, कहां रावण, कहां मेघनाथ और कहां कुंभकरण की मृत्यु हुई। उसके पश्चात प्रभु ने सेतु बंधन और भगवान रामेश्वरम को प्रणाम किया।
देखते ही देखते पंचवटी वहां से चित्रकूट और चित्रकूट से तीर्थराज प्रयाग पहुंचे। प्रयागराज पहुंच के प्रभु ने हनुमान जी को भेजा और कहा अयोध्या जाकर सूचना दीजिए, कि मैं आ रहा हूं।
भगवान प्रयागराज के बाद श्रृंगवेरपुर गंगा नदी के किनारे आए। मां सीता ने गंगा जी की पूजा की है। हनुमान जी ने अयोध्या में जाकर सूचना दी की प्रभु आ रहे हैं।
प्रभु श्रीराम राज्याभिषेक हेतु अयोध्या पहुंचे
भरत जी को प्रभु के आने की सूचना प्राप्त हुई, तो भरत जी गुरुदेव भगवान के पास पहुंचे और प्रभु के आने की सूचना गुरुदेव को दी। गुरुदेव ने दो सेवकों को बुलाया और कहा पूरी अयोध्या को सजा दो।
लोगों ने अपने-अपने घरों के द्वार पर बंधनवार लगाएं, स्वर्ण कलश को सजाया और दीपक लगाया। पुष्पक विमान अयोध्या के ऊपर पहुंचा तो प्रभु ने अयोध्या की भव्यता और सुंदरता को देखा।
प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी गुरुदेव भगवान के पास पहुंचे और चरणों में दंडवत किया। प्रभु ने सभी ब्राह्मणों को प्रणाम किया है। भरत जी प्रभु के चरणों में आकर गिर गए और प्रभु श्री राम ने बार बस भरतजी को उठाकर और हृदय से लगा लिया।
उसके पश्चात चारों भाई एक दूसरे से मिले। अयोध्या वासियों के मन में भी भाव आया कि जैसे भगवान भरत जी से मिले हैं वैसे ही हमसे भी मिले। प्रभु ने अनेका अनेक रूप धारण किया और सभी से प्रत्यक्ष रूप से मिले।
वृक्षों से वृक्ष बनकर, पशुओं से पशु बनकर और पंछियों से पंछी बनकर। सभी को यही लगा कि प्रभु भरत जी के बाद पहले मुझसे मिलने आए। लेकिन यह प्रभु की माया कोई नहीं जान पाया।
प्रभु ने अपने मित्रों का परिचय गुरुदेव भगवान से कराया। उसके पश्चात पहले प्रभु मां कैकई के भवन में गए। प्रभु ने मां कैकई को अनेक प्रकार से समझाया।
प्रभु श्री राम ने तीनों भाइयों को अपने हाथों से सजाकर दिव्या आभूषण पहनाये और फिर खुद स्नान करके दिव्या आभूषण पहनकर गुरुदेव के समक्ष प्रस्तुत हुए। गुरुदेव के मन में भाव आया कि मैं राम का आज ही अभिषेक करूंगा।
गुरुदेव भगवान ने दिव्या सिंहासन मंगवाया। प्रभु श्री राम मां सीता के साथ उस दिव्या सिंहासन पर विराजमान हुए। मुनियों ने वेद मंत्र का गान प्रारंभ किया। देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की।
प्रथम तिलक गुरु वशिष्ठ जी ने किया और सभी मुनि लोग सस्ती वचन और वेद की ऋचाओ का जाप करने लगे। और तीनों लोकों में प्रभु की जय जयकार होने लगती है पूरे विश्व में राम राज्य की स्थापना हुई। और श्री राम राज्याभिषेक पूर्णिमा हुआ।भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं कि मेरे मन में जो रचा था वही तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है।
Summary
रामायण में यह घटना भगवान श्रीराम राज्याभिषेक की महत्ता को बताती है। यह एक प्रमुख पात्रिका है जो राम के राजा बनने की प्रक्रिया को दर्शाती है, जिसमें उनकी प्रभावशाली और दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है।
इसमें राम के परिवार, उनके भक्तों, और उनके साथी भी शामिल हैं, जो उनके साथ इस महत्त्वपूर्ण कार्य में शामिल होते हैं। इस अद्भुत घटना में राम के आगमन की बेहद उत्सुकता और प्रतीक्षा भी दिखाई गई है।
Question and Answer
प्रश्न: श्रीराम राज्याभिषेक के लिए लंका से कैसे प्रस्थान किया?
उत्तर: श्रीराम ने पुष्पक विमान में साथ में सीता, लक्ष्मण, हनुमान, और अन्य साथियों के साथ अयोध्या के लिए लंका से प्रस्थान किया। यात्रा में वे तीर्थों को भी देखे जो उन्होंने अपने राज्याभिषेक के पहले किए थे।
प्रश्न: श्रीराम की यात्रा में कौन-कौन थे और वे कैसे अयोध्या पहुंचे?
उत्तर: श्रीराम के साथ पुष्पक विमान में मां सीता, लक्ष्मण, हनुमान, अंगद, नल-नील, सुग्रीव, द्विध मयंक, विभीषण और अन्य साथी थे। वे तीर्थों को देखते हुए अयोध्या पहुंचे, जहां राज्याभिषेक का आयोजन किया गया था।