हनुमान जी द्वारा लंका दहन

हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान

हनुमान जी का लंका दहन हेतु हनुमान जी लंका जाने के लिए सुंदर नाम के पर्वत पर चढ़े। प्रभु श्री राम का जय घोष करते हुए लंका जाने के लिए चले तो पाताल तक कंपन करने लगा। क्यों क्योंकि हनुमान जी का वेग इतना तेज था।

समुद्र देव ने मैनाक पर्वत से कहा आप समुद्र से थोड़ा ऊपर आ जाइए ताकि राम दूत हनुमान विश्राम कर ले। मैनाक पर्वत समुद्र से ऊपर आए और हनुमान जी से कहा हनुमान जी थोड़ा विश्राम कर लीजिए।

हनुमान जी ने परिचय मांगा तो मैनाक पर्वत कहते हैं, मैं आपके पिता पवन देव का मित्र हूं। यह सुनकर हनुमान जी कहते हैं की पिता का मित्र पिता के समान होता है। मैं पहले आपको प्रणाम कर लेता हूं।

वहां हनुमान जी ने मैनाक पर्वत को दंडवत किया और चल पड़े। जो कंपन पृथ्वी के साथ ताल नीचे गई वहां देवता छिपे हुए थे। देवताओ को जब कंपन महसूस हुआ तो देवता बहुत डर गए।

कहाने लगे कहीं रावण तो नहीं आ गया क्योंकि रावण जब चलता था तो पृथ्वी डोलती थी। सभी देवताओं ने कहा पता लगाया जाए क्या हो रहा है। तभी एक देवताओं उपर आए और देखा कि हनुमान जी लंका जा रहे हैं।

हनुमान जी का बल जानने के लिए देवताओं ने पाताल से सुरसा जी को भेजा। सुरसा जी हनुमान जी के सामने खड़ी हो गई और बोली मैं आज तुम्हें खाऊंगी।

हनुमान जी बोले मैं माता सीता की सूचना लेने जा रहा हूं प्रभु श्री राम को सूचना देकर मैं आपके मुख में स्वयं आ जाऊंगा। सुरसा नहीं मानी तो हनुमान जी कहते हैं, आप मुझे ग्रहण कर लीजिए।

सुरसा ने मुख खोला हनुमान जी ने एक योजन का शरीर कर लिया। सुरसा ने एक योजन का मुख खोला हनुमान जी दो योजन के हो गए।

हनुमान जी द्वारा लंका दहन

सुरसा ने 100 योजन मुख्य खोला हनुमान जी ने अति लघु रूप धारण कर सुरसा के पेट में जाकर और वापस आ गए। और बाहर जाकर हनुमान जी कहते हैं। मां अब तो मैं तुम्हारे पेट से निकला हूं।

इस नाते मैं तुम्हारा पत्र हुआ। क्या अभी भी तुम मुझे खाओगी। तभी सुरसा जी कहती हैं, नहीं हनुमान जी मुझे देवताओं ने आपके बल और बुद्धि का पता लगाने के लिए भेजा था।

सुरसा और मुझे आपकी बाल और बुद्धि दोनों का पता लग गया है। जाइए मैं आशीर्वाद देता हूं की आप रामकाज में सफल हो।

हनुमान जी द्वारा लंका दहन

हनुमान जी चले और लंका के पहले एक राक्षसी है सिंगीका जो की समुद्र में रहती थी। उसका काम था किसी भी जीव की परछाई को पकड़ कर खींचना और उसे डूबा कर मार देना।

उसने हनुमान जी के साथ भी यही किया। हनुमान जी ने देखा और उसके सिर पर एक मुष्ठिका का प्रहार किया और उसे समाप्त कर दिया। उसके बाद चले हनुमान जी लंका की ओर जाकर त्रिकूट पर्वत में से एक शिखर पर बैठ गए।

संध्या बेला में हनुमान जी लंका में प्रवेश करने के लिए सूक्ष्म रूप धारण किया और लंका में प्रवेश करने लगे तभी मुख्य द्वार पर पहरा दे रही राक्षसी लंकिनी ने हनुमान जी को देख लिया।

लंकिनी ने हनुमान जी से कहा रे चोर कहां जा रहा है। मैं चोरों को पकड़ पकड़ कर ही खाती हूं। हनुमान जी को आया क्रोध और लंकिनी के सर पर एक मुष्ठिका का प्रहार किया और लंकिनी खून की उल्टी करती हुई गिर गई।

तभी लंकिनी को ज्ञात हुआ नमकीन ने क्षमा प्रार्थना की और हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया।हनुमान जी पूरी लंका में घूमे और जाकर रावण के महल में प्रवेश किया।

तो देखा रावण मदिरापान करके और सो रहा है। वहां से आगे चले तो उन्हें एक दीवार पर प्रभु श्री राम के आयुध धनुष वाण और तुलसी जी का विरवाह दिखाइ दिया और सोचने लगे लंका में प्रभु के भगत जी हैं। और उसी समय विभीषण जी जागे।

विभीषण जी ने उठते ही राम नाम का सुमिरन किया और सुना तो हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप बनाया और राम नाम का जाप करने लगे। यह सुनकर विभीषण जी बहार आए और दंडवत कर हनुमान जी से कुशलता पूछी।

तभी हनुमान जी ने पूरी राम कथा विभीषण जी को सुने और माता सीता का पता पूछा। विभीषण जी ने हनुमान जी को अशोक वाटिका में जाने की युक्ति बताइए और हनुमान जी ने अपना स्वरूप छोटा किया और मां सीता जी अशोक वृक्ष के नीचे बैठी थी।

वहीं पर हनुमान जी उसे वृक्ष के ऊपर छुप गए तभी अशोक वाटिका में रावण आया और मां सीता को अनेक प्रकार से डराने लगा। और मां सीता की सेवा में त्रिजटा राक्षसी को लगाया।

त्रिजटा राक्षसी कहती है मुझे एक सपना आया की एक वानर लंका में प्रवेश कर पूरी लंका को जला देगा और प्रभु श्री राम वानर की सेना सहित लंका पर आक्रमण करेंगे और रावण को मार देंगे।

हनुमान जी द्वारा लंका दहन

रात्रि हुई तभी हनुमान जी ने अपने मुख से प्रभु राम की दी हुई मुद्रिका को नीचे गिराया। मां ने मुद्रिका को उठाया और पहचाना यह तो प्रभु श्री राम की मुद्रिका है। तभी हनुमान जी ऊपर से राम कथा गाने लगे।

हनुमान जी मां के सामने प्रकट हुए मां की कुशलता पूछे और माता सीता ने हनुमान जी को बल बुद्धि निधान का आशीर्वाद दिया। उसके पश्चात हनुमान जी अशोक वाटिका में फल खाने लगे और वृक्षों को तोड़ने लगे। रखवालो को मरने लगे।

रखवाले गए रावण के पास और सूचना दी। रावण का पुत्र अक्षय कुमार हनुमान जी से युद्ध करने आया। हनुमान जी ने एक वृक्ष उठाकर और अक्षय कुमार के ऊपर फेंक दिया और अक्षय कुमार मार दिया।

जब यह सूचना रावण को मिली तो रावण ने मेघनाथ को भेजा, मेघनाथ युद्ध करने आया। मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। ब्रह्मास्त्र की महिमा रखने के लिए हनुमान जी मूर्छित हो गए।

हनुमान जी द्वारा लंका दहन

और मेघनाथ ने हनुमान जी को नाग पास में बांध लिया और रावण के पास लेकर गए। रावण ने आदेश दिया इस बंदर की पूछ को आग लगा दो। हनुमान जी ने लंका दहन प्रारंभ किया और हनुमान जी ने सारी लंका जला दी।

और फिर उसके पश्चात हनुमान जी मां के पास गए मां से चिन्ह के रूप में चूड़ामणि ली और प्रभु श्री राम के पास पहुंचे।और प्रभु श्री राम ने समुद्र पर से सेतु बंधन किया।

Summary

हनुमान जी लंका दहन यात्रा – हनुमान जी ने लंका की यात्रा की और सुंदर नाम के पर्वत पर चढ़ा। उन्होंने लंका जाने का फैसला किया, और उनकी गति थी बेहद तेज क्योंकि हनुमान जी का वेग अद्भुत था।

वहां पहुंचकर समुद्र देव ने मैनाक पर्वत के ऊपर थोड़ा विश्राम करने को कहा। हनुमान जी ने परिचय मांगा, और मैनाक पर्वत ने उन्हें पिता पवन देव का मित्र बताया। हनुमान जी ने उन्हें प्रणाम किया और आगे बढ़े।

वहां जब वे चले, तो पृथ्वी कंपन के साथ नीचे गई, जिससे देवता डर गए क्योंकि वे छिपे हुए थे। देवताओं ने हनुमान के बल को जानने के लिए सुरसा को भेजा, और वहां हनुमान जी ने विशाल रूप धारण करके सुरसा के पेट में प्रवेश किया और फिर सुरसा के मुख से बाहर आ गए।

इसके बाद हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया, रावण के महल में गए, और अंत में लंका को जला दिया। फिर वे प्रभु श्री राम के पास लौटे।

Question and Answer

प्रश्न: हनुमान जी ने अपनी लंका दहन यात्रा में कौन-कौन से पर्वतों और राक्षसों से मुकाबला किया?

उत्तर: हनुमान जी ने अपनी लंका दहन यात्रा में मुख्य रूप से सुंदर नामक पर्वत, मैनाक पर्वत, त्रिकूट पर्वत, और विभिषण के राज्य के अंदर लंका की ओर बढ़ते हुए राक्षसों से मुकाबला किया। सिंगीका, लंकिनी, और अक्षय कुमार जैसे राक्षसों के साथ उन्होंने युद्ध किया और उन्हें परास्त किया।

प्रश्न: हनुमान जी ने लंका दहन के बाद क्या किया?

उत्तर: हनुमान जी ने लंका दहन के बाद माता सीता से मिलकर उनकी कुशलता पूछी और फिर प्रभु श्री राम के पास वापस लौटे। उन्होंने प्रभु राम को मिला और उन्हें लंका में हुए विघ्नों के बारे में बताया।

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