माता सीता की खोज

माता सीता की खोज हेतु श्री राम और सुग्रीव संवाद

माता सीता की खोज हेतु सुग्रीव जी ने प्रभु श्री राम को  आश्वासन दिया था। वह बात सुग्रीव जी भूल गए। तब राम श्री राम को क्रोध आया। राम जी लक्ष्मण जी से कहते हैं, जाओ और सुग्रीव को लेकर आओ।

लक्ष्मण जी गए और सुग्रीव जी को लेकर आए। सुग्रीव जी प्रभु के चरणों में गिरकर त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे, और कहते हैं प्रभु क्षमा कर दीजिए। प्रभु ने क्षमा कर दिया।

सुग्रीव जी ने तुरंत सभी कपियो को एकत्रित किया और आदेश दिया। की तुरंत जानकी जी का पता लगाओ। लेकिन एक नियम है। सभी को एक महीने में वापस आना है।

दूसरा नियम खाली हाथ नहीं आना है, पता लगा कर आना है। और अगर खाली हाथ आप आते हैं, तो मेरे हाथों मारे जाओगे। सुग्रीव जी के जो जो मुख्य सेनापति थे।

कौन जामवंत जी, अंगद, नल-नील, द्विविध-मायान्द, सठ-निसठ और श्री हनुमान जी को बुलाया और कहा आप सभी लोग दक्षिण दिशा में जाइए, और जाकर जानकी जी का पता लगाइए।

प्रभु श्री राम फटिक शिला पर बैठे थे। सभी ने एक एक से प्रणाम किया। अंत में हनुमान जी ने प्रणाम किया। प्रभु ने हनुमान जी को अपने पास बुलाया।

माता सीता की खोज हेतु श्री राम और सुग्रीव संवाद

हनुमान जी को अपनी संध्या वाली अंगूठी उतार कर दी और कहा इसे सीता को दे देना। और वह तब भी ना माने तो बात-बात में करुणा निधान शब्द का प्रयोग करना। हनुमान जी प्रणाम करके चले।

हनुमान जी और कपियो द्वारा सीता माता की खोज

माता सीता की खोज हेतु सारे कपि और वानर समुद्र के किनारे पहुंचे। अंगद जी कहते हैं, अब कहां जाएंगे यहां तो अपनी ही पानी है। और अगर वापस गए तो हमें सुग्रीव जी मार डालेंगे।

तभी जामवंत जी समझते हैं, अंगद जी अधीर ना होइए राम जी ब्रह्म है। राम जी का काम राम जी स्वयं करेंगे, हम तो निमित्त मात्र हैं।

वहीं पर एक गुफा में जटायु जी के भाई सम्पाती जी बैठे थे। सम्पाती जी के पंख जल चुके थे, और उन्हें चंद्रमा नाम के मुनि ने आशीर्वाद दिया था।

कि त्रेता में जब राम जी के दूत सीता जी का पता लगाने आएंगे तो उन्हें देखकर आपके नवीन पंख आ जाएंगे। अब यहां पर सम्पाती जी को यह नहीं मालूम था। कि यह राम जी के दूत हैं।

सम्पाती जी कहते हैं, ब्रह्मा जी ने आज मेरा भोजन स्वयं मेरे पास भेज दिया है। यह बात सुनकर अंगद जी कहते हैं, की एक गिद्धराज जटायु जी थे।

हनुमान जी और कपियो द्वारा सीता माता की खोज

जिन्होंने राम काज में अपने प्राणों का त्याग कर दिया और एक ये हैं जो हमें भोजन बनाने की बात कर रहे हैं। तभी सम्पाती जी कहते हैं, निर्भय हो जाइए जटायु मेरा भाई है क्या हुआ जटायु को।

तभी जामवंत जी ने पूरी बात बताई। कपियो की सहायता से सम्पाती की समुद्र के किनारे गए और अपने भाई का तर्पण किया। और सभी दुतो को देखकर सम्पाती जी के नवीन पंख आ गए हैं।

माता सीता की खोज हेतु सम्पाती जी ने अपनी गिद्ध की नजर से देखा त्रिकूट पर्वत पर लंका नगरी में अशोक वाटिका में सीता जी बैठी हैं। और कहां जो भी व्यक्ति एक छलांग में 100 योजन पर कर लेगा वह लंका में प्रवेश कर लेगा।

जामवंत जी हनुमान जी के पास गए और बोले आप मौन क्यों बैठे हैं आप जाएंगे ना उस पार। जैसे ही जामवंत जी ने कहा कि आपका अवतार केवल और केवल राम कार्य के लिए ही हुआ है।

हनुमान जी ने विराट रूप धारण किया तभी जामवंत जी कहते हैं। जाकर सीता जी का पता लगाइए और राम जी के पास उनकी कुशलता लेकर वापस आइएगा। हनुमान जी का लंका मैं प्रवेश

Summary 

 

श्री राम और सुग्रीव के बीच एक संवाद का वर्णन है। सुग्रीव ने सीता को ढूंढने का आश्वासन दिया था, लेकिन वह इस वादे को भूल गए थे। इस पर श्री राम का क्रोध हुआ और उन्होंने लक्ष्मण को सुग्रीव को लेकर आने को कहा।

लक्ष्मण ने सुग्रीव को लेकर आते हुए उन्हें क्षमा की मांग की, जो राम ने स्वीकार की। फिर सुग्रीव ने सभी कपियों को जानकी का पता लगाने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने नियम बनाया कि वे एक महीने में वापस आना होगा और खाली हाथ नहीं लौटने दिया जाएगा।

कपियों ने समुद्र के किनारे पर पहुंचकर माता सीता की खोज की, जहाँ उन्होंने जटायु और सम्पाती को मिला। सम्पाती ने सीता का पता बताया और हनुमान को उसे पहचानने का काम दिया। हनुमान ने विराट रूप धारण कर सीता का पता लगाया और राम के पास उनकी कुशलता लेकर वापस आया।

Question and Answer

प्रश्न1: सुग्रीव और श्री राम के बीच क्या हुआ?
उत्तर: सुग्रीव ने माता सीता की खोज का वादा किया था, लेकिन वह इसे भूल गए थे। यह बात जानकर श्री राम का क्रोध हुआ और उन्होंने लक्ष्मण को सुग्रीव को लेकर आने को कहा।

प्रश्न2: माता सीता की खोज में कौन-कौन शामिल थे?
उत्तर: सीता की खोज में कपियों और वानरों ने भाग लिया और उन्होंने समुद्र के किनारे पर पहुंचकर जटायु और सम्पाती को मिला।

प्रश्न3: माता सीता की खोज में कैसे मदद की गई?
उत्तर: सम्पाती ने सीता का पता बताया और हनुमान को उसे पहचानने का काम दिया। हनुमान ने विराट रूप धारण कर सीता का पता लगाया और राम के पास उनकी कुशलता लेकर वापस आया।

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