श्रीराम राज्याभिषेक कथा

श्रीराम राज्याभिषेक कथा

श्रीराम राज्याभिषेक हेतु लंका से प्रस्थान प्रभु श्रीराम राज्याभिषेक के लिए लंका से पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या के लिए प्रस्थान करते हैं। प्रभु के साथ पुष्पक विमान में मां सीता, लक्ष्मण जी, हनुमान जी, अंगद, नल-नील, सुग्रीव जी और द्विध मयंक तथा विभीषण जी साथ चले। प्रभु ने मां सीता को सारे स्थान दिखाएं, कहां रावण, कहां मेघनाथ और कहां कुंभकरण की मृत्यु हुई। उसके पश्चात प्रभु ने सेतु बंधन और भगवान रामेश्वरम को प्रणाम किया। देखते ही देखते पंचवटी वहां से चित्रकूट और चित्रकूट से तीर्थराज प्रयाग पहुंचे। प्रयागराज पहुंच के प्रभु ने हनुमान जी को भेजा और कहा अयोध्या जाकर सूचना दीजिए, कि मैं आ रहा हूं। भगवान प्रयागराज के बाद श्रृंगवेरपुर गंगा नदी के किनारे आए। मां सीता ने गंगा जी की पूजा की है। हनुमान जी ने अयोध्या में जाकर सूचना दी की प्रभु आ रहे हैं। प्रभु श्रीराम राज्याभिषेक हेतु अयोध्या पहुंचे भरत जी को प्रभु के आने की सूचना प्राप्त हुई, तो भरत जी गुरुदेव भगवान के पास पहुंचे और प्रभु के आने की सूचना गुरुदेव को दी। गुरुदेव ने दो सेवकों को बुलाया और कहा पूरी अयोध्या को सजा दो। लोगों ने अपने-अपने घरों के द्वार पर बंधनवार लगाएं, स्वर्ण कलश को सजाया और दीपक लगाया। पुष्पक विमान अयोध्या के ऊपर पहुंचा तो प्रभु ने अयोध्या की भव्यता और सुंदरता को देखा। प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी गुरुदेव भगवान के पास पहुंचे और चरणों में दंडवत किया। प्रभु ने सभी ब्राह्मणों को प्रणाम किया है। भरत जी प्रभु के चरणों में आकर गिर गए और प्रभु श्री राम ने बार बस भरतजी को उठाकर और हृदय से लगा लिया। उसके पश्चात चारों भाई एक दूसरे से मिले। अयोध्या वासियों के मन में भी भाव आया कि जैसे भगवान भरत जी से मिले हैं वैसे ही हमसे भी मिले। प्रभु ने अनेका अनेक रूप धारण किया और सभी से प्रत्यक्ष रूप से मिले। वृक्षों से वृक्ष बनकर, पशुओं से पशु बनकर और पंछियों से पंछी बनकर। सभी को यही लगा कि प्रभु भरत जी के बाद पहले मुझसे मिलने आए। लेकिन यह प्रभु की माया कोई नहीं जान पाया। प्रभु ने अपने मित्रों का परिचय गुरुदेव भगवान से कराया। उसके पश्चात पहले प्रभु मां कैकई के भवन में गए। प्रभु ने मां कैकई को अनेक प्रकार से समझाया। प्रभु श्री राम ने तीनों भाइयों को अपने हाथों से सजाकर दिव्या आभूषण पहनाये और फिर खुद स्नान करके दिव्या आभूषण पहनकर गुरुदेव के समक्ष प्रस्तुत हुए। गुरुदेव के मन में भाव आया कि मैं राम का आज ही अभिषेक करूंगा। गुरुदेव भगवान ने दिव्या सिंहासन मंगवाया। प्रभु श्री राम मां सीता के साथ उस दिव्या सिंहासन पर विराजमान हुए। मुनियों ने वेद मंत्र का गान प्रारंभ किया। देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की। प्रथम तिलक गुरु वशिष्ठ जी ने किया और सभी मुनि लोग सस्ती वचन और वेद की ऋचाओ का जाप करने लगे। और तीनों लोकों में प्रभु की जय जयकार होने लगती है पूरे विश्व में राम राज्य की स्थापना हुई। और श्री राम राज्याभिषेक पूर्णिमा हुआ।भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं कि मेरे मन में जो रचा था वही तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है। Summary रामायण में यह घटना भगवान श्रीराम राज्याभिषेक की महत्ता को बताती है। यह एक प्रमुख पात्रिका है जो राम के राजा बनने की प्रक्रिया को दर्शाती है, जिसमें उनकी प्रभावशाली और दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसमें राम के परिवार, उनके भक्तों, और उनके साथी भी शामिल हैं, जो उनके साथ इस महत्त्वपूर्ण कार्य में शामिल होते हैं। इस अद्भुत घटना में राम के आगमन की बेहद उत्सुकता और प्रतीक्षा भी दिखाई गई है। Question and Answer   प्रश्न: श्रीराम राज्याभिषेक के लिए लंका से कैसे प्रस्थान किया? उत्तर: श्रीराम ने पुष्पक विमान में साथ में सीता, लक्ष्मण, हनुमान, और अन्य साथियों के साथ अयोध्या के लिए लंका से प्रस्थान किया। यात्रा में वे तीर्थों को भी देखे जो उन्होंने अपने राज्याभिषेक के पहले किए थे।   प्रश्न: श्रीराम की यात्रा में कौन-कौन थे और वे कैसे अयोध्या पहुंचे? उत्तर: श्रीराम के साथ पुष्पक विमान में मां सीता, लक्ष्मण, हनुमान, अंगद, नल-नील, सुग्रीव, द्विध मयंक, विभीषण और अन्य साथी थे। वे तीर्थों को देखते हुए अयोध्या पहुंचे, जहां राज्याभिषेक का आयोजन किया गया था।  

श्रीराम रावण युद्ध

श्रीराम रावण युद्ध

श्रीराम रावण से युद्ध कर मुक्ति प्रदान की श्रीराम रावण से युद्ध हेतु लंका के मुख्य द्वार पर पहुंचे पुरी सेना को चार टुकड़ियों में विभाजित किया। और लंका के चारों ओर से आक्रमण किया। पहले दिन ही रावण की आदि सेना को मार दिया गया। दूसरे दिन मेघनाथ के द्वारा चलाई गई शक्ति लक्ष्मण जी को लगी और हनुमान जी ने लक्ष्मण जी के लिए सजीवन बूटी लेकर आए। और फिर लक्ष्मण जी मुर्छा से बाहर आए। तीसरे दिन रावण ने कुंभकरण को जगाया। कुंभकरण जागते ही रावण पर बिखर पड़ा। कुंभकरण कहता है मूर्ख रावण तुमने सीता का नहीं स्वयं जगदंबा का हरण किया है। और तू सोचता है किस तेरा कल्याण हो जाएगा। कुंभकरण कहता है तूने भगवान से बेर ले लिया है। तेरे कारण आज मैं प्रभु से युद्ध करूंगा और इस संसार से मुक्ति पा लूंगा। चौथे दिन प्रभु श्री राम के कहने पर लक्ष्मण जी ने मेघनाथ को मुक्ति प्रदान की है। प्रभु ने सभी निशाचारों को मुक्ति प्रदान कर अपने-अपने धाम भेजा। अंत में रावण युद्ध के लिए आया, प्रभु श्रीराम रावण का कई दिनों तक युद्ध चला। प्रभु नित्य इसके सिर और भुज को काटते और रावण की नई सर और भुजाएं आ जाती। अंतिम दिन जब रावण युद्ध के लिए अपनी कुलदेवी निकुंबला के पूजन के लिए गया। तो रावण ने देखा कुलदेवी की आंखों से रक्त के अश्रु बह रहे हैं। रावण समझ गया आज उसका अंतिम दिन है। उसके पश्चात रावण ने भगवान शिव का पूजन किया। चला रणभूमि की ओर प्रभु श्री राम से युद्ध करने। श्रीराम रावण का युद्ध होने लगा तभी विभूषण जी कहते हैं प्रभु इसकी नाभि में अमृत है। आप इसकी नाभि पर तीर चलाइए। प्रभु श्री राम ने अपने सारंग पर 31 वाण साधे और रावण की ओर चलाएं। 20 बानो ने रावण की 20 भुजाओं को काटा। और 10 बानो ने रावण के दसों सर को काटा। और 31 वा वाण जाकर उसकी नाभि में लगा। जोर से चिल्ला कर कहा, “कहां है राम उसे रणभूमि में दौड़ा-दौड़ा कर मारूंगा” और मरते समय रावण के मुख से राम नाम निकला और वह मुक्त हो गया। और उसका तेज प्रभु के मुख में प्रवेश कर गया। तभी ब्रह्मा शंकर आकाश से पुष्प वर्षा करने लगे। श्री राम जी के उपदेश अनुसार विभीषण जी ने रावण की अंतिम क्रिया की और प्रभु श्री राम ने उसे मुक्ति प्रदान की। प्रभु श्री राम के आदेश अनुसार सुग्रीव जी और लक्ष्मण जी ने लंका में प्रवेश कर विभीषण जी का राज्य तिलक किया और उन्हें लंका का राजा घोषित किया। विभीषण जी ने सम्मान से सीता जी को प्रभु श्री राम को लौटा दिया। सभी कपियो ने माता का दर्शन कर अपना जीवन कृतार्थ किया। अपनी परीक्षा कर अग्नि से मां सीता को वापस लाए हैं। उसके बाद प्रभु ने इंद्र से कहकर अमृत की वर्षा करवाई और जो कपि युद्ध में मारे गए थे वह पुनः जीवित हो गए। पुष्पक विमान में बैठकर राज्याभिषेक के लिए अयोध्या लौटे हैं। Summary रामायण महाकाव्य का यह भाग, श्रीराम रावण के बीच हुए युद्ध का वर्णन करता है जो धर्म और न्याय की विजय को प्रतिष्ठित करता है। यहाँ पर राम ने धर्म के पथ पर चलते हुए असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत की। रावण का अंत, उसकी गलतियों का अहसास, और उसकी अंतिम क्षमा की भावना को दर्शाया गया है। यहाँ पर रामायण के प्रमुख संदेशों में से एक है कि बुराई को पराजित करने के लिए सत्य और धर्म का पालन करना आवश्यक होता है। इससे पाठकों को जीवन में सही मार्ग का पालन करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। Question and Answer प्रश्न: श्रीराम रावण के युद्ध में क्या हुआ था? उत्तर: श्रीराम ने रावण से युद्ध किया था। युद्ध के दौरान, पहले दिन सेना ने लंका की ओर से आक्रमण किया और रावण की प्रमुख सेना को मार दिया। दूसरे दिन मेघनाथ ने लक्ष्मण को शक्ति से लगाया था, जिसे ठीक करने के लिए हनुमान ने सजीवनी बूटी लाई थी। फिर रावण ने कुंभकर्ण को जगाया, जिसने रावण को सीता का अपहरण करने की गलती बताई। अंत में, श्रीराम ने रावण को मारकर समाप्ति दी और सभी निशाचरों को मुक्ति प्रदान की। प्रश्न: रावण का अंत कैसे हुआ? उत्तर: रावण का अंत उसके युद्ध में हुआ। श्रीराम रावण की नाभि में तीर चलाते हैं और उसकी भुजाओं और सिर को काट दिया। जब रावण अंतिम समय में था, तो उसके मुख से ‘राम’ नाम निकला और उसका तेज प्रभु श्रीराम के मुख में प्रवेश किया। वहाँ से ब्रह्मा और शंकर ने पुष्प वर्षा की और श्रीराम ने रावण को मुक्ति प्रदान की।  

श्रीराम के द्वारा सेतु बंधन

श्रीराम के द्वारा सेतु बंधन

समुद्र पर श्रीराम के द्वारा सेतु बंधन सेतुबंध हेतु प्रभु श्री राम समुद्र के किनारे पहुंचे जहां रावण के भाई विभीषण आए। क्यों? क्योंकि रावण ने विभीषण को मारकर भगा दिया था। रावण ने विभीषण जी के साथ दो गुप्तचारो को भेजा सुख और सारंग को। गुप्तचर वापस गए रावण के पास तो रावण ने पूछा कितनी सेना है। गुप्तचर बोले 18 पदम तो सिर्फ सेनापति है और बहुत विशाल सेना है। यह सुनकर रावण ने गुप्तचर को भी मारा। दोनो प्रभु की शरण में गये और असुर प्रवृत्ति से मुक्त होकर अपने-अपने आश्रम गए। विभूषण जी ने कहा आप समुद्र से मार्ग मांगिए। प्रभु मार्ग मांगने के लिए एक फटिकशिला पर बैठे हैं। मार्ग मांगते मांगते तीन दिन हुए प्रभु को आवेश आया। प्रभु ने अपना धनुष उठाया और उस पर वाण साध कर समुद्र की ओर चलाने लगे। तभी समुद्र देव प्रकट हुए और प्रभु से क्षमा याचना की। समुद्र देव ने कहा प्रभु आपके पास दो कपी हैं जिनके हाथ के स्पर्श से पत्थर तैरेंगे और इस कार्य में मैं भी आपकी सहायता करूंगा, अपनी लहरों को शांत कर लूंगा। नल नील के द्वारा पत्थरों पर राम नाम लिखकर सभी कवियों की सहायता से सेतु बंधन किया। और प्रभु श्री राम ने वहां पर एक शिवलिंग की स्थापना की जिसे रामेश्वरम कहते हैं। सभी कपियो सहित प्रभु श्री राम ने समुद्र को पार किया और लंका के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। अंगद जी को दुत बनाकर रावण के पास भेजा अंगद जी रावण के की सभा में पहुंचे। और अपनी पूछ से स्वयं सिंहासन बनाकर उसे पर बैठ गए और रावण को चुनौती देते हैं। कि रावण तेरी मृत्यु निकट है अभी भी समय है प्रभु श्री राम की शरण में आ जा। और सभी सभासदों को अंगद जी चुनौती देते हैं कि जो भी मेरे पैर को हिला देगा। तो मैं प्रभु श्री राम की तरफ से कहता हूं कि हम वापस लौट जाएंगे। सभी सभासदों ने बहुत प्रयास किया। परंतु कोई भी अंगद जी का पैर नहीं हिला पाया। अंत में अंगद जी चुनौती देकर वापस प्रभु श्री राम के पास लौटे हैं। और प्रभु श्री राम और रावण का युद्ध हुआ। Summary   श्रीराम समुद्र के किनारे पहुंचे, जहां रावण के भाई विभीषण थे। रावण ने उन्हें भगाया था, और उनके दो गुप्तचारों को भेजा था। गुप्तचारों ने बताया कि सेना बहुत बड़ी है, जिसे सुनकर रावण ने उन्हें भी मार दिया। फिर श्रीराम और विभीषण ने समुद्र से मार्ग मांगा। तीन दिनों तक इसे मांगते हुए, श्रीराम ने धनुष उठाया और समुद्र की ओर वाण साध कर चलने लगे। समुद्र देव ने माफी मांगी और उन्हें मदद करने का वायदा किया। नल और नील की मदद से, श्रीराम ने सेतु बंधन किया और एक शिवलिंग स्थापित किया।  सेतु बंधन के बाद श्रीराम ने समुद्र को पार किया और लंका के प्रवेश द्वार पर पहुंचे। अंगद ने रावण को चुनौती दी, पर कोई भी उसके पैर को नहीं हिला पाया। आखिरकार, अंगद ने चुनौती वापस लेकर श्रीराम के पास लौटे। Question and Answer प्रश्न1: प्रभु श्रीराम और विभीषण ने समुद्र को पार करने के लिए क्या मांगा था? उत्तर: वे समुद्र से मार्ग मांग रहे थे। प्रश्न2: श्रीराम ने सेतु बंधन कैसे किया? उत्तर: श्रीराम ने नल और नील की मदद से सेतु बंधन किया। प्रश्न3: रावण को किसने चुनौती दी और उसे कैसे हराया गया? उत्तर: अंगद ने रावण को चुनौती दी कि जो भी उसके पैर को हिलाएगा, वह प्रभु श्रीराम की तरफ लौटेगा। कोई भी उसके पैर को नहीं हिला पाया और अंत में अंगद ने चुनौती वापस ली और प्रभु श्रीराम के पास लौट गया। प्रश्न3: समुद्र देव ने किस तरह समुद्र को शांत किया था? उत्तर: समुद्र देव ने अपनी लहरों को शांत कर दिया था ताकि श्री राम समुद्र पर सेतु बंधन कर ले।

हनुमान जी द्वारा लंका दहन

हनुमान जी द्वारा लंका दहन

हनुमान जी का लंका के लिए प्रस्थान हनुमान जी का लंका दहन हेतु हनुमान जी लंका जाने के लिए सुंदर नाम के पर्वत पर चढ़े। प्रभु श्री राम का जय घोष करते हुए लंका जाने के लिए चले तो पाताल तक कंपन करने लगा। क्यों क्योंकि हनुमान जी का वेग इतना तेज था। समुद्र देव ने मैनाक पर्वत से कहा आप समुद्र से थोड़ा ऊपर आ जाइए ताकि राम दूत हनुमान विश्राम कर ले। मैनाक पर्वत समुद्र से ऊपर आए और हनुमान जी से कहा हनुमान जी थोड़ा विश्राम कर लीजिए। हनुमान जी ने परिचय मांगा तो मैनाक पर्वत कहते हैं, मैं आपके पिता पवन देव का मित्र हूं। यह सुनकर हनुमान जी कहते हैं की पिता का मित्र पिता के समान होता है। मैं पहले आपको प्रणाम कर लेता हूं। वहां हनुमान जी ने मैनाक पर्वत को दंडवत किया और चल पड़े। जो कंपन पृथ्वी के साथ ताल नीचे गई वहां देवता छिपे हुए थे। देवताओ को जब कंपन महसूस हुआ तो देवता बहुत डर गए। कहाने लगे कहीं रावण तो नहीं आ गया क्योंकि रावण जब चलता था तो पृथ्वी डोलती थी। सभी देवताओं ने कहा पता लगाया जाए क्या हो रहा है। तभी एक देवताओं उपर आए और देखा कि हनुमान जी लंका जा रहे हैं। हनुमान जी का बल जानने के लिए देवताओं ने पाताल से सुरसा जी को भेजा। सुरसा जी हनुमान जी के सामने खड़ी हो गई और बोली मैं आज तुम्हें खाऊंगी। हनुमान जी बोले मैं माता सीता की सूचना लेने जा रहा हूं प्रभु श्री राम को सूचना देकर मैं आपके मुख में स्वयं आ जाऊंगा। सुरसा नहीं मानी तो हनुमान जी कहते हैं, आप मुझे ग्रहण कर लीजिए। सुरसा ने मुख खोला हनुमान जी ने एक योजन का शरीर कर लिया। सुरसा ने एक योजन का मुख खोला हनुमान जी दो योजन के हो गए। सुरसा ने 100 योजन मुख्य खोला हनुमान जी ने अति लघु रूप धारण कर सुरसा के पेट में जाकर और वापस आ गए। और बाहर जाकर हनुमान जी कहते हैं। मां अब तो मैं तुम्हारे पेट से निकला हूं। इस नाते मैं तुम्हारा पत्र हुआ। क्या अभी भी तुम मुझे खाओगी। तभी सुरसा जी कहती हैं, नहीं हनुमान जी मुझे देवताओं ने आपके बल और बुद्धि का पता लगाने के लिए भेजा था। सुरसा और मुझे आपकी बाल और बुद्धि दोनों का पता लग गया है। जाइए मैं आशीर्वाद देता हूं की आप रामकाज में सफल हो। हनुमान जी द्वारा लंका दहन हनुमान जी चले और लंका के पहले एक राक्षसी है सिंगीका जो की समुद्र में रहती थी। उसका काम था किसी भी जीव की परछाई को पकड़ कर खींचना और उसे डूबा कर मार देना। उसने हनुमान जी के साथ भी यही किया। हनुमान जी ने देखा और उसके सिर पर एक मुष्ठिका का प्रहार किया और उसे समाप्त कर दिया। उसके बाद चले हनुमान जी लंका की ओर जाकर त्रिकूट पर्वत में से एक शिखर पर बैठ गए। संध्या बेला में हनुमान जी लंका में प्रवेश करने के लिए सूक्ष्म रूप धारण किया और लंका में प्रवेश करने लगे तभी मुख्य द्वार पर पहरा दे रही राक्षसी लंकिनी ने हनुमान जी को देख लिया। लंकिनी ने हनुमान जी से कहा रे चोर कहां जा रहा है। मैं चोरों को पकड़ पकड़ कर ही खाती हूं। हनुमान जी को आया क्रोध और लंकिनी के सर पर एक मुष्ठिका का प्रहार किया और लंकिनी खून की उल्टी करती हुई गिर गई। तभी लंकिनी को ज्ञात हुआ नमकीन ने क्षमा प्रार्थना की और हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया।हनुमान जी पूरी लंका में घूमे और जाकर रावण के महल में प्रवेश किया। तो देखा रावण मदिरापान करके और सो रहा है। वहां से आगे चले तो उन्हें एक दीवार पर प्रभु श्री राम के आयुध धनुष वाण और तुलसी जी का विरवाह दिखाइ दिया और सोचने लगे लंका में प्रभु के भगत जी हैं। और उसी समय विभीषण जी जागे। विभीषण जी ने उठते ही राम नाम का सुमिरन किया और सुना तो हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप बनाया और राम नाम का जाप करने लगे। यह सुनकर विभीषण जी बहार आए और दंडवत कर हनुमान जी से कुशलता पूछी। तभी हनुमान जी ने पूरी राम कथा विभीषण जी को सुने और माता सीता का पता पूछा। विभीषण जी ने हनुमान जी को अशोक वाटिका में जाने की युक्ति बताइए और हनुमान जी ने अपना स्वरूप छोटा किया और मां सीता जी अशोक वृक्ष के नीचे बैठी थी। वहीं पर हनुमान जी उसे वृक्ष के ऊपर छुप गए तभी अशोक वाटिका में रावण आया और मां सीता को अनेक प्रकार से डराने लगा। और मां सीता की सेवा में त्रिजटा राक्षसी को लगाया। त्रिजटा राक्षसी कहती है मुझे एक सपना आया की एक वानर लंका में प्रवेश कर पूरी लंका को जला देगा और प्रभु श्री राम वानर की सेना सहित लंका पर आक्रमण करेंगे और रावण को मार देंगे। रात्रि हुई तभी हनुमान जी ने अपने मुख से प्रभु राम की दी हुई मुद्रिका को नीचे गिराया। मां ने मुद्रिका को उठाया और पहचाना यह तो प्रभु श्री राम की मुद्रिका है। तभी हनुमान जी ऊपर से राम कथा गाने लगे। हनुमान जी मां के सामने प्रकट हुए मां की कुशलता पूछे और माता सीता ने हनुमान जी को बल बुद्धि निधान का आशीर्वाद दिया। उसके पश्चात हनुमान जी अशोक वाटिका में फल खाने लगे और वृक्षों को तोड़ने लगे। रखवालो को मरने लगे। रखवाले गए रावण के पास और सूचना दी। रावण का पुत्र अक्षय कुमार हनुमान जी से युद्ध करने आया। हनुमान जी ने एक वृक्ष उठाकर और अक्षय कुमार के ऊपर फेंक दिया और अक्षय कुमार मार दिया। जब यह सूचना रावण को मिली तो रावण ने मेघनाथ को भेजा, मेघनाथ युद्ध करने आया। मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। ब्रह्मास्त्र की महिमा रखने के लिए हनुमान जी मूर्छित हो गए। और मेघनाथ ने हनुमान जी को नाग पास में बांध लिया और रावण के पास लेकर गए। रावण ने आदेश दिया इस बंदर की पूछ को आग लगा दो। हनुमान जी ने लंका दहन प्रारंभ किया और हनुमान

माता सीता की खोज

माता सीता की खोज

माता सीता की खोज हेतु श्री राम और सुग्रीव संवाद माता सीता की खोज हेतु सुग्रीव जी ने प्रभु श्री राम को  आश्वासन दिया था। वह बात सुग्रीव जी भूल गए। तब राम श्री राम को क्रोध आया। राम जी लक्ष्मण जी से कहते हैं, जाओ और सुग्रीव को लेकर आओ। लक्ष्मण जी गए और सुग्रीव जी को लेकर आए। सुग्रीव जी प्रभु के चरणों में गिरकर त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे, और कहते हैं प्रभु क्षमा कर दीजिए। प्रभु ने क्षमा कर दिया। सुग्रीव जी ने तुरंत सभी कपियो को एकत्रित किया और आदेश दिया। की तुरंत जानकी जी का पता लगाओ। लेकिन एक नियम है। सभी को एक महीने में वापस आना है। दूसरा नियम खाली हाथ नहीं आना है, पता लगा कर आना है। और अगर खाली हाथ आप आते हैं, तो मेरे हाथों मारे जाओगे। सुग्रीव जी के जो जो मुख्य सेनापति थे। कौन जामवंत जी, अंगद, नल-नील, द्विविध-मायान्द, सठ-निसठ और श्री हनुमान जी को बुलाया और कहा आप सभी लोग दक्षिण दिशा में जाइए, और जाकर जानकी जी का पता लगाइए। प्रभु श्री राम फटिक शिला पर बैठे थे। सभी ने एक एक से प्रणाम किया। अंत में हनुमान जी ने प्रणाम किया। प्रभु ने हनुमान जी को अपने पास बुलाया। हनुमान जी को अपनी संध्या वाली अंगूठी उतार कर दी और कहा इसे सीता को दे देना। और वह तब भी ना माने तो बात-बात में करुणा निधान शब्द का प्रयोग करना। हनुमान जी प्रणाम करके चले। हनुमान जी और कपियो द्वारा सीता माता की खोज माता सीता की खोज हेतु सारे कपि और वानर समुद्र के किनारे पहुंचे। अंगद जी कहते हैं, अब कहां जाएंगे यहां तो अपनी ही पानी है। और अगर वापस गए तो हमें सुग्रीव जी मार डालेंगे। तभी जामवंत जी समझते हैं, अंगद जी अधीर ना होइए राम जी ब्रह्म है। राम जी का काम राम जी स्वयं करेंगे, हम तो निमित्त मात्र हैं। वहीं पर एक गुफा में जटायु जी के भाई सम्पाती जी बैठे थे। सम्पाती जी के पंख जल चुके थे, और उन्हें चंद्रमा नाम के मुनि ने आशीर्वाद दिया था। कि त्रेता में जब राम जी के दूत सीता जी का पता लगाने आएंगे तो उन्हें देखकर आपके नवीन पंख आ जाएंगे। अब यहां पर सम्पाती जी को यह नहीं मालूम था। कि यह राम जी के दूत हैं। सम्पाती जी कहते हैं, ब्रह्मा जी ने आज मेरा भोजन स्वयं मेरे पास भेज दिया है। यह बात सुनकर अंगद जी कहते हैं, की एक गिद्धराज जटायु जी थे। जिन्होंने राम काज में अपने प्राणों का त्याग कर दिया और एक ये हैं जो हमें भोजन बनाने की बात कर रहे हैं। तभी सम्पाती जी कहते हैं, निर्भय हो जाइए जटायु मेरा भाई है क्या हुआ जटायु को। तभी जामवंत जी ने पूरी बात बताई। कपियो की सहायता से सम्पाती की समुद्र के किनारे गए और अपने भाई का तर्पण किया। और सभी दुतो को देखकर सम्पाती जी के नवीन पंख आ गए हैं। माता सीता की खोज हेतु सम्पाती जी ने अपनी गिद्ध की नजर से देखा त्रिकूट पर्वत पर लंका नगरी में अशोक वाटिका में सीता जी बैठी हैं। और कहां जो भी व्यक्ति एक छलांग में 100 योजन पर कर लेगा वह लंका में प्रवेश कर लेगा। जामवंत जी हनुमान जी के पास गए और बोले आप मौन क्यों बैठे हैं आप जाएंगे ना उस पार। जैसे ही जामवंत जी ने कहा कि आपका अवतार केवल और केवल राम कार्य के लिए ही हुआ है। हनुमान जी ने विराट रूप धारण किया तभी जामवंत जी कहते हैं। जाकर सीता जी का पता लगाइए और राम जी के पास उनकी कुशलता लेकर वापस आइएगा। हनुमान जी का लंका मैं प्रवेश। Summary    श्री राम और सुग्रीव के बीच एक संवाद का वर्णन है। सुग्रीव ने सीता को ढूंढने का आश्वासन दिया था, लेकिन वह इस वादे को भूल गए थे। इस पर श्री राम का क्रोध हुआ और उन्होंने लक्ष्मण को सुग्रीव को लेकर आने को कहा। लक्ष्मण ने सुग्रीव को लेकर आते हुए उन्हें क्षमा की मांग की, जो राम ने स्वीकार की। फिर सुग्रीव ने सभी कपियों को जानकी का पता लगाने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने नियम बनाया कि वे एक महीने में वापस आना होगा और खाली हाथ नहीं लौटने दिया जाएगा। कपियों ने समुद्र के किनारे पर पहुंचकर माता सीता की खोज की, जहाँ उन्होंने जटायु और सम्पाती को मिला। सम्पाती ने सीता का पता बताया और हनुमान को उसे पहचानने का काम दिया। हनुमान ने विराट रूप धारण कर सीता का पता लगाया और राम के पास उनकी कुशलता लेकर वापस आया। Question and Answer प्रश्न1: सुग्रीव और श्री राम के बीच क्या हुआ? उत्तर: सुग्रीव ने माता सीता की खोज का वादा किया था, लेकिन वह इसे भूल गए थे। यह बात जानकर श्री राम का क्रोध हुआ और उन्होंने लक्ष्मण को सुग्रीव को लेकर आने को कहा। प्रश्न2: माता सीता की खोज में कौन-कौन शामिल थे? उत्तर: सीता की खोज में कपियों और वानरों ने भाग लिया और उन्होंने समुद्र के किनारे पर पहुंचकर जटायु और सम्पाती को मिला। प्रश्न3: माता सीता की खोज में कैसे मदद की गई? उत्तर: सम्पाती ने सीता का पता बताया और हनुमान को उसे पहचानने का काम दिया। हनुमान ने विराट रूप धारण कर सीता का पता लगाया और राम के पास उनकी कुशलता लेकर वापस आया।

बाली का वध श्रीराम द्वारा

श्रीराम द्वारा बाली का वध

श्रीराम और सुग्रीव संवाद बाली का वध करने का प्रण प्रभु श्री राम ने लिया। प्रभु श्री राम ने सुग्रीव जी से कहा, आप मेरे बल के भरोसे निश्चित हो जाइए मैं सब प्रकार से आपकी सहायता करूंगा। तभी सुग्रीव जी कहते ,हैं आप में सिर्फ बल है। मेरा भाई बाली महाबलशाली है।सुग्रीव जी ने कहा, मैं आपकी परीक्षा लूंगा। प्रभु कहते हैं, कैसी परीक्षा लोगे। सुग्रीव ने प्रभु श्री राम को दुंदुवी की अस्थियां और सातों तरफ सात ताड़ के वृक्ष दिखाएं और कहां, एक ही वान से सातों वृक्षों को गिराना है। प्रभु ने एक वान चला कर सारे वृक्षों को गिरा दिया और प्रभु का वान तरकश में वापस आ गया। और दाहिने पैर के अंगूठे से दुंदुवी की अस्थियों को दूर फेक दिया। सुग्रीव जी ने जब देखा कि प्रभु ने एक ही वान से सारे वृक्ष गिरा दिए। तो कहने लगे राम जी आप मे बल नहीं अमित बल है। और यह कह कर चरणों में बार-बार दंडवत करने लगे। और सुग्रीव को पूर्णता विश्वास हो गया की राम जी के अलावा बाली का वध कोई और नहीं कर सकता। बाली का वध श्री राम के द्वारा मध्य रात्रि को सुग्रीव ने बाली को ललकार। बाली ने सुग्रीव की ललकार सुनकर चला। तभी बाली की अर्धांगिनी तारा ने बाली के चरणों को पकड़ लिया। कहा प्रभु आज जीवन में मैं पहली बार आपको रोक रही हूं। मैंने सुना है जिन्हें दो पुरुषों से सुग्रीव मिले हैं। वह दोनों इतने वीर हैं, की युद्ध में काल पर भी विजय प्राप्त कर सकते हैं। इसीलिए प्रभु आज आप मत जाइए मुझे भाई लग रहा है। तभी बाली कहता है डरपोक तारा मैं राम जी के बारे में जानता हूं। वह सुग्रीव और मुझ में भेद नहीं करेंगे और अगर उन्होंने मुझे मार दिया तो मैं खुद को सनाथ समझुगा। बाली चला सुग्रीव की ओर दोनों भिड़े और बाली ने एक मुष्टिका का प्रहार सुग्रीव के सिर पर किया। सुग्रीव को ऐसा लगा जैसे वज्रपात हो गया हो। सुग्रीव वहां से भागा और पहुचा प्रभु श्री राम के पास और कहता है प्रभु आपने उसे मारा क्यों नहीं। वह मेरा भाई नहीं मेरा काल है। प्रभु श्री राम कहते हैं मैंने यह सोचा कि अगर आप अपने भाई के समक्ष जाएंगे तो आप दोनों का प्रेम जागृत हो जाएगा। सुग्रीव जी कहते हैं वह मेरा भाई नहीं मेरा काल है। प्रभु आपने उसे मारा क्यों नहीं। तभी श्री राम उत्तर देते हैं आप दोनों दिखने में एक समान है। इसीलिए मैंने वान नहीं चलाया। तभी श्री राम अपनी माला उतार कर सुग्रीव जी को पहनते हैं। और अपने हाथों से सुग्रीव जी के शरीर को छूकर वज्र का बना देते हैं। भेजा राम जी ने, दोनों युद्ध करने लगे। तभी सुग्रीव के ऊपर बाली मुष्टिका का प्रहार करने लगा। सुग्रीव ने रघुनाथ जी का आवाज लगाइए और कहां बचाइए प्रभु। तभी रघुनाथ जी ने वाण चलाया और बाली के हृदय में वाण लगा। जैसे ही वाण लगा व्याकुल होकर बाली गिरा, फिर संभल कर बैठा और अपने समकक्ष क्रोध में प्रभु को दिखा। तो मन ही मन चरणों को देखकर प्रणाम किया। बाली कहता है, अपने धर्म की रक्षा के लिए जन्म लिया है। राम जी धर्म कहता है पहले पक्ष की बात सुनी जाए फिर विपक्ष की बात। अपने मेरी बात बिना सुने ही वाण चला दिया। आप किस प्रकार मुझे मारकर कौन से धर्म की रक्षा की है। मेरी किस अपराध के कारण आपने मुझे मारा है। आपको बताना पड़ेगा राम जी। बाली तुमने अपने भाई की पत्नी को अपने पास रखा है। किस अपराध के कारण मैं तुम्हें मारा है। तुम्हें पता था की सुग्रीव मेरी शरण में है, फिर भी तुमने सुग्रीव से युद्ध किया, इसलिए मैंने तुम्हें मारा है। प्रभु ने बाली का वध किया, और बाली को सद्गति प्रदान की। बाली का वध करने के बाद श्रीराम ने सुग्रीव को राजा और अंगद को युवराज बनाया। राम जी कहते हैं, मैंने मित्र आपका काम पूर्ण किया, अब आप मेरा काम करेगा। मैं प्रदर्शन पर्वत पर चातुर्मास बताऊंगा तब तक आप वैदेही का पता लगा लीजिएगा। Summary श्रीराम ने सुग्रीव को बल के भरोसे कहा कि वह उसकी सहायता करेगा। सुग्रीव ने परीक्षा के रूप में श्रीराम से सात वृक्षों को गिराने का अनुरोध किया। श्रीराम ने यह काम किया और दुंदुवी की अस्थियों को दूर किया। इसके बाद, श्रीराम ने बाली का वध किया। श्रीराम ने सुग्रीव को उनका राजा बनाया और वैदेही को ढूंढने का काम सौंपा। Question and Answer प्रश्न: सुग्रीव ने बाली का वध करने हेतु श्रीराम से कौन-कौन सी परीक्षा मांगी थी? उत्तर: सुग्रीव ने श्रीराम से दुंदुवी की अस्थियां हटाने के लिए और सात वृक्ष गिराने के लिए परीक्षा मांगी थी। प्रश्न: श्रीराम ने सुग्रीव को किसे ढूंढने का काम सौंपा? उत्तर: श्रीराम ने सुग्रीव को वैदेही को ढूंढने का काम सौंपा था। प्रश्न: बाली का वध करने के बाद श्रीराम ने किसे क्यों बनाया था? उत्तर: बाली का वध करने के बाद, श्रीराम ने सुग्रीव को राजा बनाया था।

श्रीराम का हनुमान और महाराज सुग्रीव से मिलन

महाराज सुग्रीव हनुमान संवाद महाराज सुग्रीव से मित्रता हेतु भगवान ऋषि मुख पर्वत के निकट आए। इसी ऋषिमुख पर्वत पर सुग्रीवजी महाराज रहते हैं। उन्होंने स्वयं को राजा घोषित कर दिया है, और अपना एक मंत्रिमंडल का गठन कर लिया है। जिसमें हनुमानजी भी हैं। सुग्रीवजी ने दूर से राम जी और लक्ष्मण जी को दिखा तो सोचने लगे की कहि इन दो पुरुषों को बाली ने मुझे मारने के लिए तो नहीं भेजा है। सुग्रीवजी ने हनुमानजी को बुलाया और कहा आप बटुक का रूप धारण करके जाइए और उनसे पूछिए कि वह किस हेतु से यहां पर आए हैं। और आपको लगे कि वह दोनों मुझे मारने आ रहे हैं, तो आप नीचे से ही मुझे सूचना दे दीजिएगा मैं तुरंत भाग जाऊंगा। हनुमानजी ब्राह्मण का रूप धारण करके भगवान के सामने गए जाकर प्रणाम किया, और पूछा आप कौन हैं? हनुमानजी बोले आपके पांव कोमल है।   धारा कठोर है क्या कारण है? कि आप यह कठोर धूप शीत सहन कर रहे हैं। शरीर के अंग बता रहे हैं कि आप क्षत्रिय है। परंतु आपका वेश मुनियों जैसा है। आप हैं कौन ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई है, या ब्रह्मा नारायण में से कोई है। और यदि नर नारायण नहीं है तो क्या पूरे जगत के नियंता ब्रह्म है। कौन है आप? प्रभु कहते हैं, हम चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी के पुत्र राम लक्ष्मण है। पिताजी की आज्ञा मानकर हम वन में आए हैं। मैं राम और यह मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है। मेरे साथ में मेरी अर्धांगिनी वैदेही थी। किसी निशाचर ने मेरी पत्नी का हरण कर लिया है। ब्राह्मण देवता हम उन्हीं को ढूंढ रहे हैं। आप कौन हैं? हनुमानजी ने नाम सुना, हनुमानजी को पहचानते देर नहीं लगी। कि ये मेरे प्रभु राम है। श्री हनुमानजी महाराज प्रभु के चरणों में लौट गए भगवान ने श्री हनुमानजी को उठाकर हृदय से लगाया। उसके बाद हनुमानजी महाराज प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी को पीठ पर बिठाकर सुग्रीवजी के पास ले गए ले गए। श्रीराम और महाराज सुग्रीव मैत्री प्रभु श्रीराम जी लक्ष्मण जी हनुमानजी के साथ महाराज सुग्रीवजी के यहां पहुंचे और सुग्रीवजी से हनुमान जी ने श्री रामजी और लक्ष्मणजी का परिचय करवाया। और सुग्रीवजी ने अपने साथ घटी हुई सारी घटना का वृतांत प्रभु श्री राम को सुनाया। सुग्रीवजी कहते हैं, प्रभु एक बार मायावी ने बाली को चुनौती दी युद्ध के लिए और एक गुफा में जाकर मायावी छीप गया। तो बाली ने मुझे कहा कि अगर मैं एक माह तक बाहर ना आया,तो तुम यहां से चले जाना। तो मैं उसे गुफा का द्वार बंद कर दिया, और किष्किंधा है वापस आ गया। जब बाली मायावी को मार कर किष्किंधा वापस आया, तो मुझे राजगद्दी पर देखकर बहुत क्रोधित हुआ। और क्रोध में उसने मुझे मेरा राज्य, मेरी पत्नी सब कुछ मुझसे छीन लिया। प्रभु मुझे तीन लोक 14 भवन घुमा घुमा कर मारा है। पर्वत पर मैं इसलिए रहता हूं, क्योंकि बाली यहां नहीं आ सकता। क्योंकि उसे श्राप मिला है, कि अगर वह ऋषिमुख पर्वत पर आएगा, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। प्रभु ने यह सुनकर बालि का वध करने का निश्चय किया।  Summary सुग्रीव और हनुमानजी के बीच हुए संवाद की कहानी है। सुग्रीव ने हनुमानजी से राम और लक्ष्मण को लेकर आने के कारण के बारे में सोचने को कहा। हनुमानजी ने राम से मिलकर उन्हें उनकी पहचान दिलाई और सुग्रीव के पास ले गए। सुग्रीव ने अपने दुखद घटनाओं को बताया, जिसमें उसका बाहरी शत्रु बाली ने उसकी पत्नी और राज्य को हराया था। राम ने बाली का वध करने का फैसला किया। Question and Answer   सुग्रीवजी ने किसे अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था? हनुमानजी को। सुग्रीवजी ने किसे बुलाकर कहा कि वह राम और लक्ष्मण को पूछे कि वे क्यों आए हैं? हनुमानजी को। हनुमानजी ने भगवान के सामने कौन-कौन से प्रश्न पूछे? उन्होंने उनके प्रभावी रूप और उनकी पहचान के संबंध में प्रश्न पूछे। हनुमानजी ने श्रीराम को कहां ले गए? सुग्रीवजी के पास।

शबरी मैया का श्रीराम के प्रति अनूठा प्रेम

शबरी मैया का श्रीराम के प्रति अनूठा प्रेम

शबरी मैया और मतंग ऋषि संवाद शबरी मैया  का विवाह होने वाला था, एक खिड़की में से देखा तो बहुत सारे जानवर लाए गए थे। अपनी सखी से पूछी इतने सारे पशु क्यों लाए हैं। सखी ने कहा इन्हीं पशुओं का भोजन बनेगा तो बाराती भोजन करेंगे। मैया सोचने लगी, इतने पशुओं की बलि देने से मेरा विवाह होगा। तो इसमें मेरा मंगल कैसे होगा। यह सोचकर घर से भाग गई और पहुंची मतंग ऋषि के पास और लगी सेवा करने हैं। मातंग जी ने जाते समय कहा शबरी मेरा भाग्य तो नहीं था, कि मुझे राम का दर्शन मिले। लेकिन मैं तेरा भविष्य देख रहा हूं, राम एक दिन चलकर तेरे पास आएंगे तुझे दर्शन देने, प्रतीक्षा करना। श्रीराम और शबरी मैया का प्रेम वर्षों बीतने के बाद एक दिन शबरी ने देखा कि उसके द्वारा पर दो पुरुष आए हैं। गुरुजी की बात सोचने लगी गुरु जी ने पहचान के पांच लक्षण बताए थे। पहलि पहचान कमल की पंखुड़ियां की तरह प्रभु की आंखें होगी। दूसरा राम जी की भुजाएं विशाल होगी। तीसरा सर पर जटाओं का मुकुट होगा। चौथ गले में बनमाल धारण किए हुए होंगे। पांचवा दो भाई आएंगे, जिसमें एक सांवले और एक गोरे होंगे। पहचान पूरी हुई। मैया प्रभु के चरणों से लिपटकर बहुत रोई और आंसुओं से ही प्रभु के चरण धो दिए। मैया ने मीठे मीठे कंदमूल और फल का भगवान को भोग लगाया। प्रभु ने बड़े स्नेह से भोग को ग्रहण किया और प्रभु ने शबरी मैया को नौ प्रकार की भक्ति बताइ। उसके पश्चात प्रभु ने सीता जी के बारे में पूछा, तो शबरी मैया कहते हैं। मुझे गुरुजी ने कहा है कि अगर राम जी आए, तो उन्हे कहना कि आप पंपास सरोवर के किनारे जाइए। वहां आपकी सुग्रीव जी से मित्रता होगी वह आपका सारा काम करेंगे। उसके पश्चात मैया ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे से योग अग्नि प्रज्वलित की और जलकर भस्म हो गई। Summary शबरी मैया को अपने विवाह की चिंता थी जब उन्होंने देखा कि उनके घर के बाराती भोजन के लिए बहुत सारे पशु लाए गए हैं। उन्होंने इससे अपने भविष्य की चिंता की और मतंग ऋषि के पास भाग गई। मतंग ऋषि ने उन्हें श्रीराम के दर्शन की प्रतीक्षा करने की सलाह दी। वर्षों बाद शबरी ने पहचान के लक्षणों के अनुसार श्रीराम को पहचाना और उन्हें भगवान का भोग अर्पित किया। श्रीराम ने उन्हें नौ प्रकार की भक्ति का ज्ञान दिया और सीता जी के बारे में पूछा। शबरी मैया ने उन्हें सुग्रीव के पास जाने की सलाह दी जहां से वे सीता जी से मिल सकते थे। उसके बाद उन्होंने अपने दाहिने पैर के अंगूठे से योग अग्नि को जलाया और भस्म हो गई। Question and Answer   प्रश्न 1. शबरी ने अपने विवाह से पहले घर छोड़ा क्यों था? उत्तर: शबरी ने इसलिए भागा क्योंकि उन्हें बहुत सारे जानवरों की बलि देने से चिंता थी और उन्हें डर था कि शादी से पहले यह काम शुभ नहीं होगा। प्रश्न 2. मतंग ऋषि ने शबरी को कौनसी सलाह दी थी? उत्तर: मतंग ऋषि ने शबरी को बताया कि वह श्रीराम के आगमन का इंतजार करे क्योंकि उन्हें पता था कि राम एक दिन उनके पास आएंगे। प्रश्न 3. शबरी ने श्रीराम को कैसे पहचाना? उत्तर: शबरी ने मतंग ऋषि की विवरणों के आधार पर श्रीराम को पहचाना, जैसे कि राम की आंखें कमल की पंखुड़ियों की तरह थीं, विशाल भुजाएं थीं, माथे पर जटाओं का मुकुट था, गले में माला थी, और दो भाईयों के साथ जो अलग-अलग रंगों के थे। प्रश्न 4. शबरी ने श्रीराम से क्या सीखा? उत्तर: शबरी ने श्रीराम से नौ प्रकार की भक्ति के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। प्रश्न 5. शबरी ने श्रीराम को उनकी मिशन में कैसे मदद की? उत्तर:शबरी ने श्रीराम को सुग्रीव से मिलने के लिए मार्गदर्शन दिया और सीता जी को ढूंढने के लिए सुग्रीव से सहायता करने की सलाह दी।  

रावण द्वारा सीताजी का हरण

रावण द्वारा सीताजी का हरण

रावण और सूर्पनखा संवाद सीताजी का हरण करने हेतु सर्पणखा रावण के पास शूर्पणखा पहुंची। सूर्पनखा कहती है दिन रात मदिरा पीकर सोते रहते हो। तुमको पता है तुम्हारा शत्रु तुम्हारे सिर पर बैठा है। दशानन बोला यह नाक कान कहां से कटवा कर आई हो।   बोली दो राजकुमार आए हैं राम लक्ष्मण। राम के कहने पर लक्ष्मण ने काटा है। उनके साथ बहुत सुंदर स्त्री है। दशानन बोला मेरे पास क्यों आई हो, खरदूषण के पास क्यों नहीं गई। सूर्पनखा बोली गई थी, वह भी दोनों मारे गए। रावण ने शूर्पणखा को उपचार के लिए भेजा एकांत में जाकर भजन करने लगा लेकिन तामसिक प्रकृति के कारण भजन नहीं कर पाया। तब युक्ति भिड़ाई कि मैं राम जी से युद्ध करूंगा। गया मारीच के पास। सीताजी का हरण भगवान ने एकांत पाकर कहते है, सीता जी जब तक मैं पृथ्वी से निशाचारों का अंत न कर दूं। तब तक आप अपनी छाया मेरे साथ रखिए, और आप अग्नि में प्रवेश कर लीजिए। जैसे ही यह बात भगवान ने कही, सीताजी ने अपना प्रतिबिंब रख दिया और अग्नि में प्रवेश कर गई। दशानन ने मारीच की सहायता ली। मारीच ने स्वर्ण मृग का रूप धारण किया। सीताजी ने जब स्वर्ण मृग को देखा तो राम जी के समक्ष उसे लाने की इच्छा प्रकट की। जब राम जी उसे मृग के पीछे भागे। उस समय लक्ष्मण जी सीताजी की रक्षा हेतु थे। मारीच ने श्री राम की आवाज निकाल कर लक्ष्मण जी को आवाज़ लगाई। तभी सीता जी लक्ष्मण जी से कहती है की आप राम जी के पास जाइए। तभी लक्ष्मण जी एक रेखा को खींचकर राम जी के पास चले जाते हैं। इधर रावण सीता जी के हरण के लिए आता है परंतु उसे रेखा को पार नहीं कर पाता। किसी तरह सीता जी को रेखा की इस और लाकर सीताजी का हरण कर लेता है। रास्ते में जटायु जी से रावण का युद्ध होता है। तो रावण जटायु जी के दोनों पंखों को काट देता है। प्रभु आश्रम पहुंचे मां को आश्रम में न पाकर श्री राम ने बहुत विलाप किया। प्रभु को मार्ग में जटायु जी मिले उन्होंने पूरा वृतांत बताया और कहा कि रावण मां को दक्षिण दिशा की ओर लेकर गया है। प्रभु श्री राम ने जटायु जी को सद्गति प्रदान की और उनके अंतिम क्रिया की और शबरी मैया के आश्रम पहुंचे। Summary   रावण और सूर्पनखा के बीच एक चर्चा होती है। सूर्पनखा रावण से कहती हैं कि वह बहुत पीते हैं और उनके शत्रु उनके सिर पर हैं। रावण उनकी नाक और कान का मजाक उड़ाते हैं। फिर सूर्पनखा बताती हैं कि राम और लक्ष्मण आए थे, जिन्होंने उनकी नाक काटी थी। रावण उन्हें उपचार के लिए भेजते हैं। फिर सीता का हरण होता है। भगवान राम ने सीता से कहा कि वह जब तक निशाचरों का संहार नहीं करते, तब तक वह अग्नि में रहें। सीता ने अग्नि में प्रवेश किया और रावण ने मारीच की सहायता ली। सीता जी ने जब स्वर्ण मृग को देखा , तो उन्होंने उसे लाने की इच्छा की। लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए खड़ी रेखा बनाई। रावण को रेखा पार करने में मुश्किल हुई, लेकिन उसने सीता को हर लिया। रास्ते में जटायु ने रावण के साथ युद्ध किया, जिससे उसके पंख काट दिए गए। राम और लक्ष्मण ने उसकी मदद की और जटायु ने उन्हें बताया कि रावण दक्षिण दिशा में गया है। फिर राम ने उसे सद्गति प्रदान की और शबरी के आश्रम पहुंचे। Question and Answer प्रश्न 1: सूर्पनखा ने रावण को क्यों बताया कि राम और लक्ष्मण आए थे? उत्तर: सूर्पनखा ने रावण को इसलिए बताया क्योंकि राम और लक्ष्मण ने उसकी नाक काटी थी। प्रश्न 2 : सीताजी का हरण कैसे हुआ? उत्तर: रावण ने मारीच की सहायता लेकर सीताजी को हरण लिया, जब वह स्वर्ण मृग के रूप में आया और राम की इच्छा पूरी करने के लिए सीता को लाने की इच्छा प्रकट की। प्रश्न 3: जटायु और रावण के बीच हुआ युद्ध कैसे समाप्त हुआ? उत्तर: जटायु ने रावण के साथ युद्ध किया और रावण ने उसके पंख काट दिए। राम और लक्ष्मण ने उसकी मदद की और जटायु ने उन्हें बताया कि रावण दक्षिण दिशा में गया है। प्रश्न 4: राम और लक्ष्मण ने सीता को पाने के लिए क्या किया? उत्तर: राम ने सीता को पाने की इच्छा प्रकट की और लक्ष्मण ने सीता की रक्षा के लिए खड़ी रेखा बनाई, जो रावण को रोकने में मदद की।    

खर-दूषण वध प्रसंग

खर-दूषण वध प्रसंग

सूर्पनखा और खर-दूषण खर दूषण के पास पहुंची सूर्पनखा। नाक और कानों से खून का फवारा निकल रहा है। खून से लत पत सूर्पनखा का स्वरूप है। खर दूषण और त्रिसिरा देखते ही आवेश में आ गए और पूछते हैं, किसने किया तुम्हारा यह हाल। शूर्पणखा ने बताया वन में दो भाई है ,और उनके साथ एक सुंदर स्त्री है। उन्हीं ने मेरा यह हाल किया है। इतना सुनते ही खर-दूषण और त्रिसिरा पहुंचे सारी सेना लेकर श्री राम के पास युद्ध करने हेतु। प्रभु श्री राम ने ऐसी माया रची, सभी को एक दूसरे में प्रभु श्री राम दिखाई देने लगे। आपस में ही सभी ने एक दूसरे को मार दिया। प्रभु ने ऐसा क्यों किया? क्योंकि खर और दूषण दोनों को वरदान था। की खर-दूषण को मारेगा और दूषण खर को मारेगा। इसीलिए प्रभु ने यह माया रची और दोनों ने एक दूसरे को समाप्त कर दिया। जब सभी लोगों ने एक दूसरे को समाप्त कर दिया। जब पूरी सेना और खरदूषण समाप्त हो गए। तो सूर्पनखा पहुंची रावण के पास। पहले रावण के पास क्यों नहीं गई? जबकि लक्ष्मण जी ने कहा था, कि जाकर देना अपने नाक कान और कहना मैंने चुनौती भेजी है। क्योंकि सूर्पनखा जानती है, कि जितना बल रावण में है उतना ही बल खर-दूषण में भी है। जिस समय रावण ने शूर्पणखा के पति का वध किया। उसी समय शूर्पणखा ने मन में प्रण लिया, कि मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगी। खर-दूषण को इसीलिए राम जी के पास लेकर गई। यदि राम जी इन्हें मार देंगे तो यह रावण को भी मार सकते हैं। इसीलिए पूरा खरदूषण को राम जी के पास लेकर गए। Summary   श्री रामायण की कहानी पर आधारित है, जो सूर्पणखा के और उसके भाइयों खर और दूषण के बीच घटी। सूर्पणखा ने खर और दूषण को श्री राम के पास ले जाने के लिए कहा, जिन्होंने फिर युद्ध की घोषणा की। कहानी में श्री राम ने एक मायावी रचना बनाई, जिससे खर और दूषण ने आपस में ही एक दूसरे को मार डाला। इससे प्रकट हुआ कि उन्हें दोनों को ही वरदान मिला था कि जो भी दूसरे को मारेगा, वह भी मारा जाएगा। इसके बाद श्री राम ने उन्हें समाप्त कर दिया। सूर्पणखा ने रावण के पास जाने से पहले इनकी रचना का कारण जानने के लिए खरदूषण को राम के पास ले गई, क्योंकि वह जानती थी कि खरदूषण में भी शक्ति है जो रावण में है। Question and Answer   प्रश्न 1: सूर्पणखा की कहानी से हमें क्या सीख मिलती है? उत्तर: सूर्पणखा की कहानी बताती है कि हिंसा और प्रतिशोध से समस्याएं हल नहीं होतीं, बल्कि समझदारी और समर्पण से ही शांति संभव होती है। प्रश्न 2: सूर्पणखा ने खर और दूषण को श्री राम के पास क्यों ले जाया? उत्तर: सूर्पणखा ने खर और दूषण को श्री राम के पास इसलिए ले जाया ताकि वह उनकी रचना का कारण जान सके और उन्हें इस घटना का नतीजा समझा सके।  

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