सूर्पनखा प्रसंग

सूर्पनखा प्रसंग

श्री राम का पंचवटी में प्रवेश सूर्पनखा प्रसंग में प्रभु श्री राम ने नासिक के लिए चित्रकूट से प्रस्थान किया। मार्ग में अत्री जी मिले, सरभंग जी मिले, सुतीक्ष्ण जी मिले। सुतीक्ष्ण जी के साथ गए और अगस्त जी से भेंट की और अगस्त जी के कहने पर पंचवटी में आकर नासिक के पास रहने लगे। रास्ते में सरभंग जी के साथ राम जी चले तो अस्तियों का ढेर लगा था। राम जी ने पूछा यह अस्तियां किसकी है। तभी मुनि कहते हैं, प्रभु यह आपके भक्तों की अस्तियां हैं। निशाचर आते हैं और उन्हें खाकर चले जाते हैं। उसी समय प्रभु ने प्रण किया कि मैं निशाचारों को पृथ्वी से समाप्त कर दूंगा। पंचवटी गए यहां पर लक्ष्मण जी ने प्रभु से पांच प्रश्न पूछे हैं। प्रभु ज्ञान क्या है, भक्ति क्या है, माया क्या है, ईश्वर-जीव में भेद क्या है, प्रभु बैरागी क्या है। राम जी ने उत्तर दिया। सूर्पनखा को लक्ष्मण जी ने नाक कान विहीन किया तब तक रावण की बहन सूर्पनखा चली आई है। प्रभु श्री राम से कहती है मैं 14 भवन घूम कर आई हूं ना तुम्हारे जितना सुंदर पुरुष मिला है। ना मेरे जितनी सुंदर कोई स्त्री है। हम तुम मिले हैं, यूं ही नहीं मिले हैं। ऊपर वाले की रचना है।आओ शादी कर ले। प्रभु कहते हे मेरा छोटा भाई उधर कुमार है। आप उससे विवाह कर सकती हो। गई लक्ष्मण जी के पास और लक्ष्मण जी से जाकर कहने लगी कि मुझे आपसे विवाह करना है। लक्ष्मण जी पूछे क्यों? कहती है मुझे रानी बना है। तभी लक्ष्मण जी कहते हैं, मैं तो उनका दास हूं। तो पूछती है, वह कौन है? लक्ष्मण जी बोले प्रभु है, समर्थवान है, कौशलपुर के राजा हैं उनसे करोगी तो रानी बनोगी और मुझसे करोगी तो दासी बनोगी। अब बोलो क्या बनोगी तो बोलती है रानी। लक्ष्मण जी कहते हैं, तो जाओ उनके पास। पहुंची राम जी के पास और कहती हैं, वह तो आपका दास है। राम जी कहते हैं, नहीं वह मेरे छोटे भाई हैं। वापस गई लक्ष्मण जी के पास। लक्ष्मण जी कहते हैं तेरा वरण वही करेगा जो लज्जा को तिनके के समान त्याग दे। इतना अपमान सुनकर विकराल रूप धारण किया। और दौड़ी सीता जी की ओर राम जी ने देखा सूर्पनखा को अपनी औरआते। लक्ष्मण जी को इशारा किया। लक्ष्मण जी ने नाक और कान काट दिए। कटा हुआ नाक कान लेकर खर दूषण के पास पहुंची।  Summary पंचवटी में श्री राम का प्रवेश करते समय उनकी यात्रा का वर्णन किया गया है। रास्ते में सुतीक्ष्ण, अगस्त और सरभंग जैसे महात्मा मिले और वहां पर पंचवटी में उन्होंने अपना ठिकाना बनाया। पंचवटी में राम जी ने लक्ष्मण जी से पांच प्रश्नों का उत्तर दिया, फिर सूर्पनखा ने उन्हें भवनों की बहुतायत में घूमने के बाद अपनी प्रेम प्रसंगता जताई। उन्होंने लक्ष्मण को विवाह का प्रस्ताव दिया, जिसे उसने अपनी सेवा भाव से इनकार किया।सूर्पनखा का आतंक देखकर लक्ष्मण ने उसकी नाक और कान काट दिए। Question and Answer प्रश्न: श्री राम ने किसके साथ पंचवटी में प्रवेश किया था? उत्तर: सुतीक्ष्ण जी के साथ। प्रश्न: पंचवटी में राम जी ने किन प्रश्नों का उत्तर दिया था? उत्तर: राम जी ने ग्यान, भक्ति, माया, ईश्वर-जीव में भेद, और बैराग्य के विषय में उत्तर दिया। प्रश्न: सूर्पनखा ने क्या प्रस्ताव दिया था? उत्तर: सूर्पनखा ने श्री राम से विवाह का प्रस्ताव दिया था।  

इंद्र के पुत्र और श्रीराम की कथा

इंद्र के पुत्र और श्रीराम की कथा

इंद्र के पुत्र जयंत ने लिया श्रीराम से बैर एक बार इंद्र के पुत्र ने श्रीराम से बैर ले लिया। चित्रकूट में एक अद्भुत घटना घटी राम जी के मन में भाव आया। क्यों ना पुष्प के आभूषण बनाकर जानकी का श्रृंगार किया जाए। तो राम जी अपने हाथों से ही फूलों का आभूषण बनाने लगे। बाल के लिए गजरा बनाया, गले के लिए हर बनाया और कानों के लिए कारण फूल बनाये, हाथ के लिए कंगन और बाजूबंद बनाएं। कमर के लिए करधनी बनाई पांव के लिए पायल बनाएं और आदर पूर्वक प्रभु ने मैया का श्रृंगार किया। देवता ऊपर से देखने आए। उसमें इंद्र का बेटा था जयंत। जयंत के मन में भाव आया, यह भगवान नहीं है। क्या भगवान कभी अपनी पत्नी को सजाते हैं। जयंत कहता है मैं इनकी भुज के बाल का पता लगाऊंगा। जयंत ने कौवे का रूप धारण किया और आकर मां जानकी के पैरों में चोच मार दि। यहां मां ने प्रभु को कुछ नहीं बताया क्योंकि मां जानती हैं की प्रभु इसके प्राण ले लेंगे। मां ने क्षमा कर दिया, परंतु रक्त बहते हुए प्रभु श्री राम के पास पहुंच गया। प्रभु कुशा की चटाई पर बैठे थे। प्रभु जीस चटाई पर बैठे थे उसी से दो कुश निकली। एक को झुका कर धनुष बनाया और दूसरे को ब्रह्मास्त्र के मंत्र से अभिमंत्रित करके राम जी ने जयंत के पीछे छोड़ दिया। ब्रह्मास्त्र को देखकर जयंत अपने स्वरूप में आकर अपने पिता की ओर भाग और जाकर त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगा, पिताजी मुझे बचा लीजिए। तभी देवराज इंद्र ने पूछा क्या किया है तुमने। जयंत बोला मैंने कौवे का रूप धारण करके मां सीता के पैरों में चोंच मार दी है। और राम जी ने मेरे ऊपर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया है। इतना सुनकर देवराज इंद्र ने उसे अपने द्वारा से भगा दिया। पंहुचा ब्रह्मा जी के पास, ब्रह्मा जी ने भी अपने द्वारा से जयंत को लौटा दिया। पंहुचा कैलाश शंकर भगवान के पास शंकर भगवान ने क्रोध में आकर जयंत को वहां से भी भगा दिया। तीन लोक और 14 भवन जयंत भागता रहा है। इस समय इंद्र के पुत्र जयंत पर नारद जी की दृष्टि पड़ी। नारद जी ने पूछा क्यों भाग रहे हो। नारद जी मुझेसे आज बहुत बड़ी भूल हो गई। मैंने मां जानकी के पैरों में चोच मार दी है। मैंने अभिमान में आकर इतनी बड़ी गलती कर दी। नारद जी कहते हैं, अरे मूर्ख सब मरते हैं तो राम जी बचते हैं तुझे तो राम जी ने ही मारा है तुझे कौन बचाएगा। अगर तू राम जी की शरण में चला जाएगा तो यह ब्रह्मास्त्र तेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा, तू वापस चला जा। नारद जी ने इंद्र के पुत्र जयंत को भगवान के पास भेज दिया। जयंत जाकर भगवान के चरणों में गिर गया और रो-रोकर कहने लगा। प्रभु श्री राम पूछते हैं, अब क्यों आए हो। तभी जयंत कहता है, प्रभु मुझे बहुत बड़ी भूल हो गई है। मैंने अपने अभिमान में आकर यह सब किया है। तभी श्रीराम पूछते हैं तो अब क्यों आया है पहले आपका बाल देखने आया था। अब आपकी करुणा देखने आया हूं। हे करुणा निधान मुझे क्षमा कर दीजिए। जयंत का अपराध इतना बड़ा था कि उसके प्राण ले लिए जाएं। परंतु प्रभु ने एक आंख निकाल कर क्षमा कर दिया। और एक आंख क्यों निकली ताकि ब्रह्मास्त्र की महिमा काम ना हो ब्रह्मास्त्र विफल न हो। उसके पश्चात प्रभु श्री राम ने पंचवटी के लिए प्रस्थान किया है। Summary जयंत ने श्रीराम से अपराध किया जब उन्होंने मानवीय स्वभाव के बारे में गलत धारणा की। श्रीराम ने सीता को सजाने के लिए फूलों से आभूषण बनाया था, जो जयंत को गलत लगा। उसने कौवे के रूप में उपर्युक्त सीता के पैरों में चोंच मारा। इस पाप के बाद, उसे भगवान श्रीराम का ब्रह्मास्त्र से भयानक संघर्ष करना पड़ा, जिससे वह तीनों लोकों से भागना पड़ा। नारद जी के संदेश के बाद, जयंत ने अपनी गलती को स्वीकार किया और भगवान श्रीराम के पास गया। वहां उन्होंने क्षमा मांगी और भगवान ने उसे क्षमा की। Question and Answer प्रश्न 1: कौन-कौन से भाव जयंत को अपनी गलती की समझ में लाने में सहायक हुए? उसके कैसे अहंकार और अभिमान ने उसकी जिंदगी को प्रभावित किया? उत्तर: जयंत ने अहंकार में गलती की, लेकिन श्री राम ने क्षमा की और उसे बचा लिया। यह कहानी अहंकार की अहमियत और क्षमा के महत्त्व को दर्शाती है। प्रश्न 2: प्रमुख संदेश क्या है इस कहानी में? उत्तर: यह दिखाता है कि क्षमा और अहंकार के बीच अन्तर कितना महत्त्वपूर्ण है। प्रश्न 3: जयंत की गलती से क्या सीखा जा सकता है? उत्तर: जयंत ने अपने अहंकार की वजह से गलती की, जो उसे प्राणों की भी संदेह में डाल दिया। यह दिखाता है कि अहंकार से होने वाली गलती कितनी घातक हो सकती है। प्रश्न 4: श्री राम ने जयंत के प्रति कैसी क्षमा दिखाई? उत्तर: श्री राम ने जयंत की गलती को माफ किया और उसे बचा लिया, जिससे कि वह अपने अहंकार की सजा से बच सके। प्रश्न 5: इस कहानी से हमें क्या सिखना चाहिए? उत्तर: यह कहानी हमें यह बताती है कि हमारे अहंकार और अपराधों के लिए हमें क्षमा की आवश्यकता होती है और क्षमा किया जाना चाहिए।

श्रीराम भरत मिलाप

श्रीराम भरत मिलाप

भरत जी का अयोध्या से प्रस्थान भरत जी ने कहा प्रातः काल होते ही मैं भैया से मिलने जाऊंगा। पूरी अयोध्या साथ में जाने को तैयार हो गई। कैकई नंदन ने सेवकों को अयोध्या के रखरखाव का भार सौंप दिया और गुरुजी से अभिषेक के सामग्री की आज्ञा ली। गुरु जी ने आज्ञा दी। पालकी में माता को बिठाया। रथ पर गुरुदेव भगवान को बिठाया। और सभी अयोध्या वासियों के साथ भरत जी चित्रकूट के लिए रवाना हो गए। पहले दिन कैकई नंदन सहित सारे अयोध्यावासी तमसा नदी के किनारे रुके। दूसरे दिन गोमती मैया के तट पर विश्राम हुआ है। तीसरे दिन सई नदी के तट पर विश्राम हुआ है। और चौथे दिन पूरा समाज श्रृंगवेरपुर गंगा जी के किनारे पहुंचा। श्रृंगवेरपुर के राजा निषाद राजगुहु उपहार लेकर कैकई नंदन के पास पहुंचे।  कैकई नंदन गुरुदेव भगवान से पूछते हैं, जो प्रणाम कर रहे हैं वह कौन है? गुरुदेव कहते हैं, जो प्रणाम कर रहे हैं वह आपके भैया के शखा है। कैकई नंदन ने केवट जी को हृदय से लगा लिया। प्रातः काल होते ही केवट जी ने सारी नौकाओं को एकत्रित किया और सभी अयोध्या वासियों को एक साथ गंगा जी पार कराई। सभी लोग तीर्थराज प्रयाग पहुंचे, भरत जी ने त्रिवेणी जी में स्नान किया है। और तीर्थराज प्रयाग से वरदान मांगते हैं कि मेरे भैया श्री राम और माता सीता में मेरा प्रेम निरंतर बढ़ता रहे।  कैकई नंदन सभी अयोध्या वासियों के साथ भारद्वाज मुनि के पास विश्राम करते हैं। भारद्वाज जी से विदा लेकर भरत जी चले हैं। भरतजी का चित्रकूट में प्रवेश  कैकई नंदन अयोध्या वासियों के साथ चित्रकूट में मंदाकिनी नदी के किनारे पहुंचे। मंदाकिनी नदी के किनारे रात्रि विश्राम किया। मंदाकिनी नदी के उस ओर प्रभु श्री राम है। माता सीता राघव जी से कहती है, प्रभु मैंने एक सपना देखा है। जिसमे भरत जी आ रहे हैं और माताओ का सर अमंगल दिखाई दे रहा है। प्रभु श्री राम ने सीता जी के सपने के बारे में जाना और लक्ष्मण भैया के साथ भगवान भोलेनाथ की आराधना करने लगे। पूजन करने के पश्चात भगवान मुनियों के साथ बैठे ही थे, कि अचानक उत्तर दिशा की ओर खलबली मच गई। किसी ने आकर पूछा प्रभु आपका कोई भाई भी है क्या? राघव जी उत्तर देते हैं हां है उनका नाम भरत है तभी एक कोल कहता है कि आपके भाई आए हैं। प्रातः काल होते ही कैकई नंदन गुरुदेव एवं माताओ से आज्ञा लेकर शत्रुघ्न भैया और निषाद राज जी के साथ स्वयं राम जी से मिलने गए। कुटिया के बाहर कैकई नंदन गिर पड़े और श्री राम को दंडवत करते हैं। प्रभु श्री राम भारत जी की आवाज सुनकर तेज गति से कैकई नंदन की ओर दौड़े और कैकई नंदन को पृथ्वी से उठाकर हृदय से लगा लिया। और वहां जितने भी पत्थर थे इस प्रेम को देखकर सारे पिघल गए। निषादराज जी करते हुए कहते है। प्रभु मंदाकिनी जी के तट पर पूरी अयोध्या आई है। जाकर सबसे पहले माता कैकई से मिले। माता कैकई को अनेक प्रकार से समझाया और सभी माता को प्रणाम किया। और पूरे समाज को चित्रकूट लेकर आए। जाते-जाते गुरुदेव ने श्रद्धांजलि सभा बिठाई और राम जी से कहा कि अब महाराज नहीं रहे। यह सुनकर राम जी बहुत रोये राम जी को रोता देख सारा समाज रोने लगा। पिता के मरण पर जो भी विधि जेष्ट पुत्र के द्वारा होती है। वह सारी विधि राम जी ने परिपूर्ण की और गुरुदेव से प्रार्थना की। की क्या आप सारे समाज को अयोध्या ले जाएं। गुरुदेव ने राम जी से कहा कुछ दिन अयोध्या वासियों को यहां रहने दीजिए। अयोध्यावासी चित्रकूट में रहने लगे। कैकई नंदन ने अनेकों प्रकार से राम जी पर प्रेम लुटाया और अयोध्या लौटने की विनती की। प्रभु श्री राम ने पिता के वचनों की दुहाई देकर कैकई नंदन को अनेकों प्रकार से समझाया है। तभी जनक जी आते हैं प्रभु ने सह समाज स्वागत किया है। राम जी ने भारत जी को समझाया, जो भी कुछ करना माता और गुरुदेव भगवान से पूछ पूछ कर करना। 14 वर्ष के लिए तुम मुखिया बन कर जा रहे हो। प्रभु श्री राम ने चिन्ह के रूप में अपने चरण पादुका को कैकई नंदन को दिया है। प्रभु श्री राम ने सभी को दंडवत करते हुए विदा किया। 9 दिन का समय लगा सभी अयोध्या पहुंचे हैं। भारत जी ने सोचा भैया राम तो कुटिया में रहते हैं, मैं महल में कैसे रह सकता हूं यह सोचकर भारत की नंदीग्राम में कुटिया बनाकर रहने लगे। उसके पश्चात चित्रकूट में श्री राम और जयंत के बीच की घटना बताइए है Summary भरत जी की यात्रा का वर्णन है। उन्होंने अयोध्या को छोड़कर राम को ढूंढने की यात्रा पर निकला। उनके साथ उनकी माता, सेवक और अन्य लोग भी थे। यात्रा में विभिन्न तीर्थस्थलों का दौरा किया गया और भरत जी ने राम को ढूंढा। उन्होंने राम से मिलकर प्रेम और सम्मान दिखाया, और फिर आयोध्या वापस जाकर उनकी कुटिया बनाई। Question and Answer   प्रश्न1 : कैकई नंदन की यात्रा कहां शुरू हुई थी? उत्तर : कैकई नंदन की यात्रा अयोध्या से शुरू हुई थी। प्रश्न2: कैकई नंदन ने अपनी यात्रा के दौरान क्या-क्या किया? उत्तर: उन्होंने अपनी यात्रा में अनेक तीर्थस्थलों का दौरा किया, राम को ढूंढने का प्रयास किया, और राम से मिलकर उन्हें प्रेम और सम्मान दिखाया। प्रश्न3: कैकई नंदन ने अपनी यात्रा के दौरान किन-किन स्थलों पर रुकावट की? उत्तर: उन्होंने तमसा नदी, गोमती मैया के तट, सई नदी के तट, श्रृंगवेरपुर, और मंदाकिनी नदी के किनारे रुकावट की। प्रश्न4 : कैकई नंदन ने राम को ढूंढकर कहां पाया था? उत्तर: उन्होंने राम को मंदाकिनी नदी के किनारे ढूंढा था। प्रश्न5: कैकई नंदन ने अयोध्या वापस आकर क्या किया? उत्तर: भरतजी ने अयोध्या वापस आकर वहां अपनी कुटिया बनाई और वहां रहने लगे।  

श्रीराम का चित्रकूट प्रवेश एवं दशरथ जी का मरण

श्रीराम का चित्रकूट प्रवेश एवं दशरथ जी का मरण

श्री राम का चित्रकूट में प्रवेश चित्रकूट में रहने के लिए प्रभु श्री राम ने वाल्मीकि जी से आज्ञा ली। प्रभु श्री राम के निवास के निर्माण हेतु सारा देव समाज विश्वकर्मा जी के साथ कोल और भील के वेश में पृथ्वी पर अवतरित हुआ। देवताओं ने दो कुटिया बनाई, एक बड़ी कुटिया श्री राम जी के लिए और उसी के सामने एक छोटी कुटिया लक्ष्मण जी के लिए। प्रभु श्री राम चित्रकूट में रहने लगे। मुनि लोग आए आशीर्वाद देकर गए। चित्रकूट के सारे कोल और भील भगवान से मिलने आए। और कहते हैं प्रभु हम सब अपने आप को धन्य मानते हैं कि आपका हमें दर्शन प्राप्त हुआ। सभी कहते हैं प्रभु आप डरिए मत हम सब आपको उदास नहीं रहने देंगे। इस वन का पग-पग हमें देखा हुआ है हम आपको रोज घूमने ले चलेंगे। राम जी कहते हैं मुझे डर तो बहुत लग रहा था, पर अब आप लोग हैं तो मुझे कोई कोई भय नहीं है मैं अब आनंद से रहूंगा। सभी कोल और भील कहते हैं, प्रभु हम सह परिवार आपके सेवक हैं। अगर मध्य रात्रि में भी कोई आदेश हो तो संकोच मत कीजिये गा। यहां शिवजी ने सूत्र दिया है कि राम जी को केवल प्रेम प्रिया है। चित्रकूट में रहने वाले कोल और भील को भगवान ने अनेक प्रकार से संतुष्ट किया और विदा किया है। यहां गोस्वामी जी कहते हैं, मेरे प्रभु श्री राम इस प्रकार रह रहे हैं, जिस प्रकार स्वर्ग में देवराज इंद्र अपनी पत्नी सूची और पुत्र जयंत के साथ रहते हैं। श्री राम के वियोग में दशरथ जी ने प्राण त्यागे सुमंत जी तमसा नदी के किनारे पहुंचे और रात्रि में अयोध्या में प्रवेश किया। सुमंत जी कहते हैं, मैं कैसे अयोध्या वासियों को अपना मुख दिखाऊंगा। रथ को ले जाकर कौशल्याजी के महल के सामने खड़ा किया। सुमंत जी गए मां कौशल्या के भवन में, जाकर चक्रवर्ती जी का दर्शन किया। सुमंत जी ने महाराज के चरणों में दंडवत किया। महाराज को चेतना आई सुमंत जी को हृदय से लगा लिया। महाराज सुमंत जी से कहते हैं, हे मेरे सखा राम कुशल तो है ना। मैंने कहा था वापस ले आना, तुम तो दिख रहे हो लेकिन राम नहीं दिख रहा है। वापस आए हो या बन में छोड़ आए हो। सुमंत जी के नेत्रों से अश्रु निकलने लगे। महाराज समझ गए की राम नहीं आए। महाराज के सारे अंग शिथिल हो गए। कौशल्या जी ने देखा, देखकर महाराज के चरण पकड़ लिए और कहती हैं। महाराज राम के वियोग रूपी सागर में अयोध्या एक जहाज की तरह डोल रही है, और सारा परिवार उस पर सवार है। और उसकी नाभिक आप हैं, धैर्य धारण करिए प्रभु। महाराज कहते हैं कौशल्या आज मुझे धैर्य नहीं उन अंधे माता-पिता का श्राप याद आ रहा है। श्रवण कुमार के माता-पिता ने मुझे श्राप दिया था, कि जिस प्रकार पुत्र के वियोग में हम मर रहे हैं, दशरथ इस प्रकार तुम भी मारोगे। चक्रवर्ती जी ने छह बार राम नाम का स्मरण किया और देवलोक को चले गए। माताएं जाकर विलाप करने लगी। प्रातः काल गुरुदेव भगवान आए और ज्ञान उपदेश किया। महाराज के पार्थिव शरीर को नाव में तेल भरकर उसमें रखकर सुरक्षित किया गया। गुरुदेव भगवान ने दूतों को बुलाकर आदेश दिया और कहा कि भरत जी के ननिहाल जाकर कहना गुरुदेव भगवान ने याद किया है। पहुंचे भरत जी के पास और सूचना दी, आपको गुरुदेव ने याद किया है। भरत जी उसी दशा में अयोध्या के लिए चल पड़े। जब अयोध्या में प्रवेश किया, भारत की देखते हैं कि आज अयोध्या ऐश्वर्या रहित दिख रही है। सारी प्रजा दुखी दिख रही है। भरत की सबसे पहले अपनी मां कैकई के पास गए। द्वार पर कैकई मैया ने भारत जी का स्वागत किया, आरती उतारी, दुलार किया भीतर लेकर गई। और बिठाकर पूछा भरत मामा के घर से कुशल है ना। भरत जी बोले वहां तो सब कुशल है। मेरे घर में सब कुशल है ना। मां कैकई कहती हैं भारत कुशल तो मैंने सब कर लिया था। मंथरा ने मेरी बड़ी सहायता की, पर ब्रह्मा जी ने एक बात बिगाड़ दी अचानक आपके पिताजी नहीं रहे। भारत जी ने कारण पूछा। मां कैकई ने सारी बातें बताई। भारत जी खुद को कोसने लगे, के नाम में जन्म लेता और ना मेरी मां मुझे राजा बनाने का सपना देखती, और न राम जी बन जाते। भरत की मां कौशल्या के पास गए। मां कौशल्या ने गोद में बिठाकर भरत जी को दुलार किया। भरत जी ने मां की मांग को देखकर विलाप करते हुए कहा मेरे से अभागा पुत्र और कोई नहीं होगा। विलाप करते-करते रात्रि बीती। प्रातः काल गुरुदेव भगवान ने महाराज के लिए चंदन की लकड़ी की चिता बनवाई और गुरुदेव की आज्ञा से, भारत जी ने महाराज की चिता को अग्नि दी और श्राद्ध कर्म से निवृत हुए। गुरुदेव भगवान ने भरत जी को अनेकों प्रकार से राज्य सत्ता संभालने के लिए कहा। परंतु भरत जी अपने आप को पापी कहकर राजसत्ता को अपने से मना कर दिए। और कहते हैं, कि मेरे कारण मेरे पिताजी नहीं रहे। मेरे भैया वन चले गए। तो सोचिए अगर मैं राज सिंहासन पर बैठूंगा, तो यह पृथ्वी रसातल में चली जाएगी। भारत जी कहते हैं मैं कल प्रातः काल मेरे भैया से मिलने जाऊंगा। Summary   श्री राम ने वाल्मीकि जी से चित्रकूट में रहने की अनुमति प्राप्त की। उन्होंने सारा देव समाज के साथ कोल और भील के वेश में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने निवास का निर्माण किया। वहां उन्होंने दो कुटियों का निर्माण किया, जिसमें वे और उनके भाई लक्ष्मण रहने लगे। वहां उन्हें अनेक मुनियों और समाज के लोगों का स्वागत मिला, जो उन्हें आशीर्वाद देकर और सेवा करके खुश किया।  राम के वियोग की घटना, दशरथ जी की मृत्यु, और भरत जी के अयोध्या में पहुंचने का वर्णन है। भरत जी को अपने भाई की वियोग की दुःखद जानकारी मिली और उन्होंने राजसत्ता को नकारा। Question and Answer   प्रश्न: श्री राम ने चित्रकूट में कैसे प्रवेश किया था और वहाँ कैसा रहा? उत्तर: श्री राम ने वाल्मीकि जी

वनवास मार्ग में श्रीराम और केवटजी की भेंट

वनवास मार्ग में श्रीराम और केवटजी की भेंट

वनवास मार्ग में निषाद राज जी से भेंट  वनवास मार्ग में प्रथम रात्रि प्रभु ने तमसा नदी के किनारे बिताई है। भगवान ने अपने योग माया से सभी को गहरी निद्रा में सुलाकर आगे प्रस्थान किया है। प्रभु माता सीता, लक्ष्मण भैया और सुमंत जी के साथ श्रृंगवेरपुर गंगा जी के तट पर पहुंचे। भगवान के पास निषाद राज उपहार लेकर पहुंचे। निषाद राज ने प्रभु श्री राम के विश्राम के लिए कुशा की चटाई बिछी है। इस अवस्था को देखकर निषाद राज रोने लगे और कहते हैं। प्रभु को मां कैकई ने वन में भेज दिया है। तभी लक्ष्मण जी कहते हैं, निषाद राज जी जीवन में कोई किसी को दुख नहीं देता।  हम अपने द्वारा किए गए कर्म से ही सुखी रहते हैं और अपने द्वारा किए गए कर्म से ही दुखी रहते हैं यह संसार का नियम है। निषाद राज जी प्रभु के चरणों में दंडवत करते हैं। प्रातः काल हुआ भगवान ने बरगद के दूध को बालों में लगाया और अपने बालों का मुकुट बना लिया। सुमंत जी ने कहा प्रभु आपके पिताजी ने आपको वापस बुलाया है। सत्य की दुहाई देखकर राम जी ने मना कर दिया। प्रभु ने सुमंत जी को अयोध्या की ओर वापस भेज दिया है।  प्रभु श्री राम के प्रति केवट जी का प्रेम  प्रभु श्री राम गंगा जी के किनारे पहुंचे हैं। भगवान ने गंगा तट से इशारे से कहा केवट जी नाव ले आइये। केवट जी बोले नहीं लाऊंगा, राम जी मैं आपके मरम को जान गया हूं इसीलिए नव नहीं लाऊंगा। लक्ष्मण जी कहते हैं भैया मैं आपके साथ बचपन से हूं आज तक मैं आपका मर्म नहीं जान पाया हूं और केवटजी कहते हैं कि मैं आपका मर्म जान लिया है। राम जी लक्ष्मण जी से कहते हैं आप ही पूछिए कौन सा मर्म जान गए हैं लक्ष्मण जी कहते हैं आप कौन सा मर्म जानते हैं केवट जी बोले मैं जान गया हूं राम जी कौन है। राम जी बोले कैसे जानएगे। केवट जी बोले, आपके मांगने के तरीके ने बता दिया आप कौन हैं। नित्य नाव चलाता हूं सैकड़ो लोग आते हैं। गंगा जी पार करने के लिए पर इस प्रकार से किसी ने नाव नहीं मांगी। आज तक जो भी आया उसने आदेश दिया है। लेकिन आज आपने आदेश नहीं दिया मुझे याचना की है। आपकी चरण राज से पत्थर स्त्री में बदल जाता है। अगर मेरी नाव स्त्री में बदल गई तो मैं अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करूंगा। मैं अपनी धर्मपत्नी को कैसे समझाऊंगा। लक्ष्मण जी कहते हैं केवट जी आप इतनी देर से राम जी को समझा रहे हैं, आप अपनी स्त्री को नहीं समझा सकते। केवट जी कहते हैं, मैं राम जी को तो समझा सकता हूं लेकिन अपनी पत्नी को नहीं समझा सकता।प्रभु मैं आपके बिना पैर धोए नाव में चढ़ने वाला नहीं हूं। भगवान ने कृपा की केवट जी पर, परिवार सहित पात्र में जल लेकर आए प्रभु के चरण धोने हेतु। प्रभु के चरणों को धोया और उस चरण अमृत को परिवार सहित ग्रहण किया। उसके पश्चात केवट जी ने भगवान को गंगा जी पार कराई और प्रभु के चरणों में दंडवत किया। प्रभु ने अपनी भक्ति देकर केवटजी को विदा किया है। तीर्थप्रयाग में भारद्वाज जी से मिले उनके बाद वाल्मीकि जी से मिलकर अपने रहने का स्थान पूछते हैं।  Summary  वनवास के दौरान भगवान राम की भक्ति और उनके भक्तों के प्रति उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। निषाद राज और केवट जी के माध्यम से भगवान के अनुग्रह का महत्त्वपूर्ण उदाहरण दिया गया है। यह भक्ति, विश्वास और दया की महत्ता को समझाता है और भगवान की कृपा को मानवीय जीवन में महत्त्व देता है। Question and Answer प्रश्न 1: निषाद राज और केवट जी की कहानी क्या थी? उत्तर: वनवास में, निषाद राज ने प्रभु राम को उपहार दिया और केवट जी ने प्रभु की समझ में बात की। निषाद राज ने प्रभु की चरण-धुली की और केवट जी ने प्रभु के पावन चरणों को धोया। प्रश्न 2: किस तरह निषाद राज और केवट जी ने प्रभु श्री राम से मिला और उन्होंने क्या सीखा? उत्तर: वनवास के दौरान, निषाद राज ने प्रभु राम को उपहार दिया और उनकी सेवा की। केवटजी ने राम जी के साथ संवाद करके उनकी अनूठी भक्ति को दर्शाया। इसके जरिए, वे  कर्मों की महत्ता और धर्म के प्रति समर्पण की महत्ता को सीखा।  

श्रीराम को वनवास कैसे मिला?

श्रीराम को वनवास कैसे मिला?

श्री राम को वनवास मिलने के कारण वनवास जाने के लिए भगवान राम ने देवताओं को प्रेरित किया, और कहा अयोध्या से बाहर निकालूं ऐसा कुछ करिए। देवताओं ने सरस्वती जी को भेजा। सरस्वती जी आई और मंथरा की मति पलट कर चलिए गई। अब मंथरा की ही मति क्यों पलटी, क्योंकि सरस्वती जी रात भर पूरी अयोध्या में घूम रही थी कि किसकी मति को पलटू, पर बाहा ऐसा कोई नहीं दिखा। परंतु, मंथरा प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक से खुश नहीं प्रतीत हो रही थी। वह प्रभु से ईर्ष्या करती थी। इसी कारण से सरस्वती जी ने मंथरा की मति पलट दी।मंथरा ने मां कैकई की मति को पलट दिया। मां कैकई कोप भवन में बैठी है। महाराज आते हैं। माता कैकई, महाराज से दो वर मंगती हैं। पहला श्री राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरा भरत को राज सिंहासन। यह सुनकर महाराज दशरथ कांप जाते हैं। महाराज दशरथ खड़े के खड़े गिर गए। अपने बालों को नोचने लगे, और विलाप करने लगे। सवेरा हुआ भगवान राम महाराज के पास आए। पूछा मां कैकई से क्या हुआ है पिताजी को? दशरथ जी बोले तुम्हारी मां ने तुम्हारे लिए वनवास मांगा है। यह सुनकर राम जी अति प्रसन्न हुए और कहां, आज आपने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को जन्म दिया है। राम जी कहते हैं सुनु जननी सोइ सुतु बड़भागी। जो पितु मातु बचन अनुरागी॥ रघुनाथ जी कहते हैं। वह संतान बड़भागी है, जो अपने माता-पिता के वचनों में प्रेम करें। और जो संतान अपने व्यवहार से अपने माता-पिता को संतुष्ट कर दे, वह संसार में दुर्लभ है। भगवान राम ने दशरथ जी के चरणों में दंडवत किया और बहुत प्रकार से समझा कर कौशल्या के पास गए। जाकर कौशल्या मां को सारी बात बताएं। मां कौशल्या ने पिता की आज्ञा का पालन करने को कहा । सीता जी आई सीता जी ने विनती की, प्रभु मैं भी आपके साथ बन चलूंगी। प्रभु ने बहुत समझाने की कोशिश की पर सीता जी नहीं मानी, तो भगवान ने साथ चलने की आज्ञा दी। इतने में लक्ष्मण जी आ गए लक्ष्मण जी ने भी साथ चलने की जिद्द की भगवान ने नाना प्रकार से समझाया है, पर लक्ष्मण जी नहीं माने। भगवान ने कहा ठीक है मां सुमित्रा से आज्ञा ले लीजिए। गुरुदेव भगवान से आज्ञा ली और दंडवत करके पिताजी को दंडवत किया। वनवासी रूप धारण कर चले। गुरुदेव भगवान का आश्रम में गए ब्राह्मणों को दान दिया है। दशरथ जी ने सुमंत जी को आज्ञा दी है, रथ पर लेकर जाओ 4 दिन वन दिखाना और ले आना। सुमंत जी रथ लेकर आए भगवान रथ पर बैठे पूरी प्रजा भगवान के पीछे-पीछे भाग रही है। भगवान ने सोचा अगर प्रजा इसी प्रकार मेरे पीछे भागती रही तो मैं पिताजी की आज्ञा का निर्वाहन कैसे करूंगा। भगवान ने योग माया से सभी प्रजा को गहरी निद्रा में सुला दिया और रथ के पहियों के निशान को मिटा दिया। और वनवास की यात्रा में आगे बढ़े । Summary श्री राम को वनवास कैसे मिला। उन्होंने कैसे अपने पिताजी की आज्ञा का पालन करके वनगमन की यात्रा शुरू की। इसमें सरस्वती और मंथरा के बीच की बातचीत, मां कैकई की मांग, और राम, सीता, और लक्ष्मण की यात्रा का वर्णन है। भगवान राम ने वनगमन की यात्रा में कैसे प्रजा की सुरक्षा की और यात्रा को जारी रखने के लिए योग माया का उपयोग किया। Question and Answer   1: श्री राम को वनवास क्यों मिला? उत्तर: भगवान राम ने देवताओं को प्रेरित करके अपने वनगमन की मांग की थी। 2: राम ने वनगमन की मांग क्यों की थी? उत्तर: देवताओं ने प्रेरित करके भगवान राम ने अपने वनवास की इच्छा जाहिर की थी। यह मांग मंथरा की ईर्ष्या और दशरथ जी के वचनों की पालन के लिए थी।

राम सीता विवाह

राम सीता विवाह

विवाह हेतु धनुष यज्ञ रचना विवाह हेतु जो धनुष यज्ञ हो रहा है उसमें श्री राम जी और लक्ष्मण जी के साथ विश्वामित्र जी प्रवेश करते हैं। प्रभु जब यज्ञशाला में पहुंचे, तो सभी को अलग-अलग दिखाई देने लगे। जो राजा अपने आप को वीर मानते हैं। उन्हें राम जी परमवीर दिखाई देने लगे। जो असुर और कपटी है, उन्हें राम जी कल के समान दिखाई देने लगे। ज्ञानी राजाओं को परम तत्व दिखाई देने लगे। भक्तों को भगवान दिखाई देने लगे। गोस्वामी जी कहते हैं जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥ जिनकी जैसी भावना थी। राम जी सबको उसी प्रकार दिखने लगे। विश्वामित्र जी को पूरी यज्ञशाला का दर्शन कराया। विश्वामित्र जी कहते हैं दिव्या रचना। विश्वामित्र जी के साथ दोनों भाइयों को सबसे ऊंचा स्थान दिया। सब मंचन्ह तें मंचु एक सुंदर बिसद बिसाल। मुनि समेत दोउ बंधु तहँ बैठारे महिपाल॥ जनक जी ने सीता जी को बुलाया है। मां सखियों के साथ आई है। जनक जी ने बंदी जनों को आदेश दिया प्रण सुनने का। बंदी जनों ने अपने दोनों हाथों को उठाकर महाराज का प्रण सुनाया। सुनिए दीप- दीप के राजा- महाराजा हमारे महाराज का यह प्रण है, कि जो भी शिव के पिनाक पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उससे हमारी जनक जी की लाडली जानकी जी का विवाह होगा। सभी 10000 राजाओं ने धनुष उठाने का प्रयास किया, पर धनुष तिल मात्र नहीं हिला। अपनी कीर्ति गवाकर सभी राजा सर नीचा करके अपने स्थान पर बैठ गए। तभी महाराज जनक कहते हैं आप सभी अपने आप को वीर कहते हैं। आप सबसे धनुष तिल मात्र नहीं हिला कैसे वीर रहे हैं आप। मुझे अगर पता होता की धरती पर कोई वीर नहीं है, तो मैं इस प्रकार का प्रण लेकर अपना उपहास कदापि ना होने देता। लक्ष्मण जी खड़े हुए और क्रोध से बोले भैया आपके रहते जनक जी कहते हैं, धरती पर कोई वीर नहीं है। गरजे लक्ष्मण जी, और राम जी की सौगंध खाकर लक्ष्मण जी कहते हैं। मैं इस धनुष को उठाकर 100 योजन दौड़ूंगा और नहीं कर पाया तो कभी धनुष धारण नहीं करूंगा। विश्वामित्र जी के कहने पर राम जी ने लक्ष्मण जी को बुलाया और अपने पास बिठाया। विश्वामित्र जी ने आज्ञा दी राम जी जाइए और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाईए। राम जी ने गुरुदेव को प्रणाम किया। धनुष के इष्ट भगवान शिव को प्रणाम किया।और धनुष उठाने लगे। सभा में उपस्थित सभी लोगों ने अपने-अपने पितरों से प्रार्थना की की रामजी धनुष को उठा ले। श्री राम जी ने धनुष को उठाया और जितनी देर में बिजली चमकती है उतनी ही देर में भगवान ने धनुष उठाया झुकाया और तोड़ दिया। शतानंद जी ने आदेश दिया सीता जी आगे आईए और राम जी को जयमल पहनाइए। मां ने जयमल पहनाई और देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की। तभी परशुराम जी आए और टूटा हुआ धनुष देखकर क्रोध में आ गए, और बोल किसने तोड़ा है। कहकर युद्ध के लिए ललकारने लगे। तभी राम जी कहते हैं, मेरी जितनी बड़ी बड़ा अपराध नहीं है उतना बड़ा आज आपका क्रोध हो गया है। आप युद्ध के लिए ललकार रहे हैं तो मैं भी रघुवंशी हूं अगर काल भी सामने आ जाए तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा। परंतु रघुवंशी स्त्रियों और ब्राह्मणों पर शस्त्र नहीं उठाते। परशुराम जी ने ब्राह्मणों में इतनी श्रद्धा देखी। राम जी के हाथ में अजगवधनुष को दिया और राम जी के हाथ में आते से ही धनुष पर प्रत्यंचा अपने आप चढ़ गई। परशुराम जी ने राम जी को ब्रह्म जानकर नौ बार प्रणाम किया और महेंद्र पर्वत पर चले गए। कुल परंपरा के अनुसार विवाह के लिए जनक जी ने अयोध्या दूत भेजें। दूत अयोध्या पहुंचे बारात का मुहूर्त निकाला। बारात अयोध्या से मिथिला पहुंची और सभी ज्योतिषों ने विवाह के लिए मुहूर्त निकाला। सभी प्रकार से पूजन कर विवाह पूर्ण हुआ और सभी देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की। उसके पश्चात भगवान का राज्याभिषेक और वनवास का क्या कारण था । Summary रामजी, लक्ष्मणजी, और विश्वामित्रजी यज्ञशाला में पहुंचे, जहाँ राम जी सभी को अलग-अलग दिखने लगे। राम की वीरता ने सभी को प्रभावित किया, और उन्हें दिव्य और भगवान मानने लगे। विश्वामित्रजी सहितन दोनों भाइयों को सर्वोच्च स्थान दिया। फिर धनुष उठाने का प्रयास किया गया, लेकिन सिर्फ रामजी ने ही धनुष को हिलाया। इसके बाद उनका विवाह हुआ और उनकी वीरता का प्रमाण दिया गया। परशुराम के सामने राम ने अपनी ब्राह्मणीयता का प्रदर्शन किया और उनकी श्रद्धा ने परशुराम को प्रसन्न किया। विवाह के बाद, सभी देवताएं आकाश से पुष्प वर्षा करती रहीं। Question with answer   1. राम जी किस प्रकार दिखाई देने लगे जब यज्ञशाला में पहुंचे? उत्तर: वीर, परमवीर, ज्ञानी राजाओं को परम तत्व और भक्तों को भगवान दिखाई देने लगे। 2. किसे बुलाया गया जनक जी के द्वारा और क्या आदेश दिया गया? उत्तर: जनक जी ने सीता जी को बुलाया और बंदी जनों को आदेश दिया कि  प्रण सुनाएं। 3. राम जी ने किसे बुलाया और क्या कहा? उत्तर: राम जी ने लक्ष्मण जी को बुलाया और अपने पास बिठाया। 4. धनुष को उठाने में सफलता की कहानी में कौन विफल रहा? उत्तर: सभी 10000 राजाओं ने प्रयास किया, पर धनुष तिल मात्र नहीं हिला। 5. राम जी ने किसे प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा? उत्तर: राम जी ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए अपने हाथ में लेने के बाद गुरुदेव और भगवान शिव को प्रणाम किया। 6. विवाह के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए? उत्तर: जनक जी ने अयोध्या दूतों को भेजा, बारात का मुहूर्त निकाला, ज्योतिषों ने मुहूर्त निकाला और सभी प्रकार से पूजन कर विवाह पूर्ण हुआ।

श्रीराम का मिथिला प्रवेश

श्रीराम का मिथिला प्रवेश

मिथिला नगर भ्रमण मिथिला में धनुष यज्ञ देखने के लिए विश्वामित्र जी ने राम जी और लक्ष्मण जी के साथ मिथिला में प्रवेश किया है। विश्वामित्र जी ने एक आम का वृक्ष देखकर विश्राम के लिए दोनों भाइयों को कहा। जनक जी को पता चला विश्वामित्र जी के बारे में तो जाकर चरणों में दंडवत किया है। और राम जी और लक्ष्मण जी का परिचय कराया और उसी प्रकार से रामजी लक्ष्मण जी को उचित स्थान और सदन प्रदान किया है। कुछ देर विश्राम करने के पश्चात गुरुदेव से चर्चा हुई। तभी लक्ष्मण जी के मन में भाव आया- लखन हृदयँ लालसा बिसेषी। जाइ जनकपुर आइअ देखी॥ प्रभु भय बहुरि मुनिहि सकुचाहीं। प्रगट न कहहिं मनहिं मुसुकाहीं॥ यदि अनुमति प्राप्त हो जाती तो हम मिथिला घूम कर आ जाते। मिथिला के सभी वासियों को पता चला की दो बहुत सुंदर राजकुमार मिथिला में आए हैं। यह सुनकर सभी की मति हीरा गई। मिथिला वासियों ने सोचा कितने सुंदर होंगे दोनों भाई, क्या हमारी किस्मत में दोनों का दर्शन है। रघुनाथ जी लक्ष्मण जी के मन की बात जान गए और राम जी ने गुरुदेव से अनुमति मांगी। गुरु जी ने अनुमति दी पूरे मिथिला में खबर फैल गई दोनों भाई नगर देखने आ रहे हैं। सभी पुरुषों ने के बाहर की ओर जाकर दर्शन किए। वहीं महिलाओं ने घर के झरोखों से झांक कर भगवान के दर्शन किए। मां जानकी की सभी सखियां आपस में चर्चा कर रही हैं। सभी ने अपने-अपने भाव से भगवान के सुंदरता का वर्णन किया। तभी एक सखी कहती है इनमें जो सांवले वाले हैं, यह उचित बर होंगे। तभी एक सखी बोलती है। कितने छोटे हैं यह कैसे धनुष तोड़ेंगे। तभी एक सखी बोलती है। छोटे हैं तो क्या हुआ उनके चमत्कार बड़े-बड़े हैं। इन्होंने एक ही बार में ताड़का राक्षसी को मार दिया।तो क्या वह शिवजी का पीनाग नहीं तोड़ सकते है क्या। दोनों भाई नगर भ्रमण के बाद गुरु जी के पास पहुंचे। रात्रि में संध्या आरती भोजन के बाद गुरुदेव भगवान सोने गए तो दोनों भाइयों ने गुरुदेव के पैरों की सेवा की। फिर गुरुदेव ने दोनों भाइयों को सोने की आज्ञा दी। राम जी सोने गए तो लक्ष्मण जी ने राम जी के चरणों की सेवा की है। भगवान ने लक्ष्मण जी को सोने की आज्ञा दी। लक्ष्मण जी राम जी के पैर दबाते दबाते ही सो गए। सुबह हुई और लक्ष्मण जी जागे फिर प्रभु श्री राम जागे और दोनों भाई गुरु जी के पास गए। सेवा की तो गुरुजी जागे। राम जी ने गुरुजी से पुष्प दल लाने की आज्ञा मांगी। गए पुष्प दल लेने मिथिला की वाटिका में पहुंचे। बाग में दिव्या-दिव्या वृक्ष है। पक्षियों की मधुर मधुर आवाज सुनाई दे रही हैं। तालाब में पानी मनियो के समान चमक रहा है। भगवान ने मालियों से पुष्पदल के लिए अनुमति मांगी और पुष्प दल लेने लगे। सीता जी की मां ने सीता जी को पूजा के लिए भेजा है। माता सखियों के साथ बाग में पूजा के लिए आई। माता ने बड़े अनुराग से मा गिरिजा जी की पूजा की है। एक सखी ने दोनों भाइयों को पुष्प चुनते देखा। सखी गई माता सीता के पास और सारा हाल सुनाया। वह सीताजी सहित सभी सखियों के साथ राम जी को देखने चली। माता सीता के आभूषण बजने लगे। राम जी ने माता सीता को दिखा और टक – टककी लग गई। राम जी ने कहा भाई यह वही जनक जी की लड़की है। जिनके लिए धनुष यज्ञ हो रहा है। मुझे लगता है यह सखियों के साथ पार्वती जी की पूजा के लिए आई है। एक सखी ने सीता जी को श्री राम जी के दर्शन कराए। और फिर सारी सखियां माता के साथ वहां से चली गई। और गई पार्वती जी के पास और स्तुति करने लगी। मां पार्वती ने अपने गले की माला को गिरकर सीता जी को आशीर्वाद दिया। मन में जो रचा है वही बर मिलेगा। वह करुणा निधान है, सज्जन है, आपके प्रेम को पहचानते हैं और फिर सीता जी अपने भवन की ओर चली गई। इधर राम जी ने वाटिका में हुई सारी बातें गुरुदेव को बताई। गुरुदेव ने आशीर्वाद दिया। आपकी सारी मनोकामना पूर्ण हो। दूसरे दिन धनुष यज्ञ का दिन आया।  Summary मिथिला के रोमांचक और महत्त्वपूर्ण स्थलों का वर्णन है, जैसे कि धनुष यज्ञ का स्थल और विशेषता। यहां पर राम और लक्ष्मण के द्वारा उस घटना का अनुभव कैसे किया गया। और उनकी यात्रा के दौरान उनके अनोखे अनुभवों का विवरण भी दिया गया है। इसके साथ ही, मिथिला की सांस्कृतिक विविधता और धनुष यज्ञ के परिप्रेक्ष्य में समाज की उमंग और उत्साह की भावना भी व्यक्त की गई है। Question and Answer 1. विश्वामित्र जी और राम जी ने मिथिला नगर में धनुष यज्ञ के बारे में क्या जानकारी प्राप्त की थी? जब विश्वामित्र जी और राम जी मिथिला नगर में थे, तो वहां धनुष यज्ञ के बारे में जानकारी प्राप्त की थी जो जनक राजा द्वारा आयोजित किया गया था। 2. कौन-कौन से घटनाएं विश्वामित्र जी और राम जी ने मिथिला नगर में सुनी थीं? विश्वामित्र जी और राम जी ने मिथिला नगर में पहुंचकर राजा जनक से मिलन किया और धनुष यज्ञ की घटना से जुड़ी कथाएं सुनी।

रामजी द्वारा अहिल्या का उद्धार

रामजी द्वारा अहिल्या का उद्धार

रामजी और विश्वामित्र जी मिलन राम जी और विश्वामित्र जी की कथा बाबा माता को सुनते हैं, और कहते हैं। महाराज गांधी के पुत्र विश्वामित्र जी है। विश्वामित्र जी मन में चिंतित हैं, कि यह पापी मारीच और सुवाहु कैसे मरेंगे। मन में भाव आया। क्यों ना भगवान को मांग कर लाया जाए। पहुंचे अयोध्या, दशरथ जी ने खूब आदर सत्कार करके पूछा-केहि कारन आगमन तुम्हारा। कहहु सो करत न लावउँ बारा॥ कहिए मुनिवर किस कारण आए हैं। आप कहने मैं विलंब कर रहे हैं। मैं करने में नहीं करूंगा। विश्वामित्र जी ने कहा, असुर मुझे सता रहे हैं। इसलिए मैं आपसे कुछ मांगने आया हूं। महाराज अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा॥ छोटे भाई के साथ मुझे रघुनाथ जी दे दीजिए। वह सभी निशाचारों को खत्म कर देंगे। विश्वामित्र जी ने जैसे ही महाराज से राम जी को मांगा, महाराज का चेहरा उतर गया। महाराज ने कहा मांगने को कहा था तो क्या कुछ भी मांग लोगे। आपको मांगने का ढंग नहीं है। भूमि मांगिए, कोश मांगिए , गाय मांगिए, प्राण मांगेगा तो प्राण दे दूंगा। लेकिन राम को नहीं दूंगा। गुरु वशिष्ठ जी ने समझाया, महाराज राम को मैंने शिक्षा दे दी है। अब आयुध की शिक्षा विश्वामित्र जी देंगे विदा करिए। महाराज ने दोनों पुत्रों को विदा किया। बक्सर की ओर चले, बक्सर में नाटक वन है। जहां ताड़का राक्षसी रहती है। और तड़का को पहले से पता है की विश्वामित्र जी हमारा वध करने के लिए किसी को लेने गए हैं। और तड़का घात लगाकर बैठी है। जब ताड़का के कानों में रामजी और विश्वामित्र जी की आवाज पहुंची। तो तड़का ने विकराल रूप धारण करके दौड़ी। प्रभु ने अमोघबाण निकाल और चलाया। एक ही बाण मैं ताड़का को समाप्त कर दिया। भगवान ने कहा आप निर्भय होकर यज्ञ कीजिए। यज्ञ प्रारंभ हुआ रामजी और लक्ष्मण जी यज्ञ में पहरे में खड़े हो गए। मारीच और सुवाहु यज्ञ को देख कर दौड़े आसुरी सेना लेकर। मारीच को भगवान ने बिना वान के फर से मारा और 100-योजन दूर गिराया। और सुवाहु को अग्निबाण से भस्म कर दिया और जितने निशाचर थे। उन्हें लक्ष्मण जी ने एक ही वान में समाप्त कर दिया। उसके पश्चात मिथिला में धनुष यज्ञ देखने के लिए विश्वामित्र जी ने राम जी और लक्ष्मण जी को लेकर चले। मार्ग में भगवान ने अहिल्या जी का उद्धार किया। । इसके साथ ही वे मिथिला पहुंचते हैं और घटनाओं का नया अध्याय शुरू होता है। अहिल्या जी महर्षि गौतम की पत्नी है महर्षि गौतम ने उन्हें श्राप देकर पत्थर का बना दिया था। विश्वामित्र जी रामजी से कहते हैं। राम जी आपकी चरण रज से ही इनका उद्धार होगा। राम जी ने चरण रज का स्पर्श कराया। जो अहिल्या जी पत्थर की थी वह चैतन्य हो गई। फिर भगवान से वरदान मांगा और चरणों में नमन किया। और अपने पति के साथ अपने लोग गई। और फिर भगवान ने गंगा स्नान किया और मिथिला में प्रवेश करते हैं।  Summary रामजी और विश्वामित्रजी की कहानी में यह वर्णन है कि कैसे रामजी और लक्ष्मण ने असुरों को नष्ट किया। विश्वामित्रजी के साथ उनकी यात्रा में कैसे वे अहिल्या का उद्धार करते हैं। वे ताड़का के साथ भी भिड़ते हैं और अन्य कई घटनाओं में भी शामिल होते हैंQuestion and Answer   प्रश्न: विश्वामित्र ने महाराज दशरथ के पास क्यों जाने का फैसला किया था, और उन्होंने राजा से क्या माँगा था? उत्तर: विश्वामित्र ने महाराज दशरथ को परेशानी के साथ यह समझाया कि दुष्ट आत्माओं मारीच और सुबाहु को कैसे समाप्त किया जाए। उन्होंने दशरथ से राम को लेने की अनुमति मांगी ताकि वे इन दुष्ट शक्तियों को नष्ट कर सकें। प्रश्न: राम और लक्ष्मण ने ताड़का के साथ मौजूदा स्थिति को कैसे सुलझाया? उत्तर: ताड़का के क्षेत्र में पहुंचते ही, जब वह भयानक संकल्प के साथ नजर आई, तो राम ने उन्हें बेहद कुशलता से एक तीर लगाया और उन्हें नष्ट कर दिया, इससे उसकी खतरा समाप्त हो गई।   प्रश्न: मारीच और सुवाहु के साथ यज्ञ संबंधित हुए घटनाक्रम का क्या था? उत्तर: जब यज्ञ की प्रारंभिक दृश्य में मारीच और सुवाहु ने आक्रमण किया, तो राम ने मारीच को एक वान  से गिराया और सुवाहु को अग्निबाण से भस्म कर दिया। राम और लक्ष्मण ने उन निशाचरों को भी एक ही वान में समाप्त कर दिया।      

शिव कागभूसुंडी राम जन्म दर्शन

शिव

शिव जी माता पार्वती को काग भूसुंडी जी के साथ अपनी चोरी की कथा सुनाते हैं।  शिव जी ने माता पार्वती की प्रशंसा की है, और भगवान शिव कहते हैं। देवी मैंने एक चोरी की है। जब भगवान ने जन्म लिया तो मैं आपको बिना बताए दर्शन करने चला गया था। मां ने कहा अकेले चले गए थे। बाबा बोले देवी में कागभुसुंडि जी के साथ गया था मां ने कहा प्रभु इसी रूप में गए थे। बाबा बोले मनुष्य का रूप धारण करके गए थे और कोई जान नहीं पाया हमको। कुछ दिन बीते नामकरण संस्कार का समय आया। गुरुदेव ने सभी प्रकार से पूजन किया। गुरुदेव ने दशरथ जी के सभी पुत्रों का नाम करण किया। शिव जी ने और का भूसुंडी जी ने ज्योतिष का रूप लिया। रूप लेकर अयोध्या में भ्रमण करने लगे। बाबा सभी अयोध्या वासियों को भविष्य बताने लगे। जब यह बात पूरे नगर में फैली की कोई बाबा है जो भविष्य बताते हैं। लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। जब यह बात कौशल्या जी को पता चली। बुलाए बाबा को महल में। महल के द्वार पर द्वारपालों ने रोक लिया और बोले दोनों में से केवल एक ही अंदर जाएगा। बाबा अंदर गए और फिर कागभुसुंडि जी को अपनी युक्ति बढ़कर अंदर बुला लिया। दोनों ने प्रभु के सभी प्रकार से दर्शन किए। मन आनंद से तृप्त हो गया। सभी प्रकार से दर्शन करके काभूसुंडी दीजिए एवं शिवजी अपने लोक को गए। उसके पश्चात भगवान का जनेऊ संस्कार, जुड़ा संस्कार सभी प्रकार के संस्कार हुए। और वह विद्या प्राप्त करने के लिए गुरुकुल गए। विद्या प्राप्त करने के पश्चात वह अयोध्या लौटे। उसके पश्चात विश्वामित्र जी से आयुध की शिक्षा प्राप्त की। Summary भगवान शिव ने अपनी चोरी की कहानी साझा की, जब उन्होंने बिना बताए माता पार्वती के दर्शन के लिए जाने का वर्णन किया। उन्होंने मां को कहा कि वे कागभुसुंडि जी के साथ गए थे, और मां ने उन्हें माना कि वे मानव रूप धारण करके गए थे। बाद में नामकरण संस्कार में शिव और कागभुसुंडि जी ने अयोध्या में भ्रमण किया और भविष्य बताने लगे, जिससे लोगों में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी। यह सब सुनकर कौशल्या ने उन्हें महल में बुलाया, लेकिन द्वारपालों ने उन्हें एक ही व्यक्ति को अंदर जाने की अनुमति दी। शिव ने कागभुसुंडि को युक्ति से अंदर बुलाया और वहाँ भगवान के दर्शन किए।   और अपने लोक को गए। Question and question   1.कौशल्या ने बाबा को महल में क्यों बुलाया था? उत्तर: उन्होंने भविष्य बताने वाले बाबा की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए। 2.शिव और कागभुसुंडि जी ने अयोध्या में क्या किया था? उत्तर: नामकरण संस्कार के दौरान वहाँ भ्रमण किया और भविष्य बताया। 3.बाबा और कागभुसुंडि जी ने किसे अंदर बुलाया था और क्यों? उत्तर: शिव ने कागभुसुंडि जी को अपनी युक्ति से अंदर बुलाया ताकि उन्हें भगवान के दर्शन हो सकें।  

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