श्री राम जन्म उत्सव

श्री राम जन्म उत्सव

 श्री राम जन्म कथा श्री राम जन्म से पूर्व सभी देवताओं ने पृथ्वी पर जन्म लिया। ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को आदेश दिया। सभी देवता रिच बानर बनकर पृथ्वी पर जन्म लेंगे। ब्रह्मा जी जामवंत बने। भगवान शिव हनुमान बने। देवताओं के राजा इंद्र बली बने। सूर्य नारायण सुग्रीव बने। विश्वकर्मा जी ने नल नील का रूप लिया। भगवान शिव माता से कहते हैं देवी अयोध्या पुरी रघुवंश है, रघुकुल मणि वेद जिनका नाम दशरथ जी बताते हैं। परिचय क्या है- धर्म की दूरी को धरण किए हुए हैं महाराज। जीवन के चौथे पन में महाराज के मन में गलानी हुई। मेरे बाद मेरे पितरों को जल कौन देगा। महाराज गए गुरुदेव भगवान को सारा सुख-दुख सुनाया। गुरुदेव बोले राजन आप चिंता ना करें आपको एक नहीं चार पुत्रों का सुख प्राप्त होगा। गुरुदेव भगवान ने रचना की पुत्र कामेष्ठि यज्ञ की। श्रृंगी ऋषि को बुलाया। श्रृंगी ऋषि कौन श्री राम जी के जीजा जी शांता जी के पति हैं। श्रृंगी ऋषि आए यज्ञ प्रारंभ हुआ। यज्ञ से अग्नि नारायण उत्पन्न हुए। हाथ में यज्ञ का प्रसाद लेकर महाराज के पास गए और बोले, आधा भाग कौशल्या जी को दीजिए और आधे में से दो भाग करेगा। जिसमें एक भाग कैकई जी को दीजिएगा। और बचे हुए भाग को दो भाग में बाटकर कौशल्या जी और कैकईजी को देखकर कहिएगा। प्रसन्न मन से सुमित्रा जी को प्रसाद देगी। सभी रानियों ने प्रसाद ग्रहण किया। और जैसे कौशल्या जी ने प्रसाद ग्रहण किया। कौशल्या जी के अंक में राघव जी आ गए। देखते देखते 12 महीने बीते।  जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल। चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥ लग्न वार तिथि सभी अनुकूल हुए चैत्र मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि मंगलवार 11:30 बजे अभिजीत मुहूर्त में जन्म लिया।  मां की कोख से प्रकाश पुंज निकला।  तभी शंकर जी माता से कहते हैं देवी देखिए-  भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी। हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी॥ लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुजचारी। भूषन बनमाला नयन बिसाला सोभासिंधु खरारी॥  कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता। माया गुन ग्यानातीत अमाना बेद पुरान भनंता॥ करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता। सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्रीकंता॥ ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै। मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥ उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै। कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥ माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा। कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा॥ सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा। यह चरित जे गावहिं हरिपद पावहिं ते न परहिं भवकूपा॥ महाराज को पुत्र की सूचना प्राप्त हुई। सभी मंगल गीत गाने लगे। जय जयकार होने लगी। आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। तभी एक दासी ने महाराज को आकर सूचना दी कैकई जी ने एक और सुमित्रा जी ने दो पुत्रों को जन्म दिया। अयोध्या के सभी घरों में मंगल गीत गाने लगे। सूर्यनारायण उत्सव का दर्शन करते हैं, और दर्शन करते-करते एक माह बीत गया। मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ। रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ॥ यहां एक महीने तक दिन बन रहा लेकिन किसी को पता नहीं चला। एक महीना बीता सूर्यनारायण भगवान को प्रणाम कर चले। बाबा मा से कहते हैं, एक बार मैं भी कागभुसुंडिजी के साथ श्री राम जी के जन्मोत्सव में गया था। summary श्री राम जन्म कथा का वर्णन किया गया है। ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को पृथ्वी पर जन्म लेने का आदेश दिया था, और इससे पहले, उन्होंने भी विभिन्न देवताओं के रूप में जन्म लिया। इसके बाद, भगवान शिव, हनुमान, बली, सुग्रीव, और अन्य देवताएं भी पृथ्वी पर जन्म लें। इसके पश्चात्, ब्रह्मा जी ने पुत्र कामेष्ठि यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें अग्नि नारायण उत्पन्न हुई। यज्ञ के द्वारा, श्री राम जी का जन्म हुआ।  श्री राम जन्म के प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है, जैसे कि चैत्र मास के नवमी तिथि पर उनका जन्म हुआ और उनकी दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसके साथ ही, ब्रह्मांड में इस महत्वपूर्ण घटना के माहौल का भी विवरण दिया गया है। Question and Answer     प्रश्न 1: श्री राम जन्म  से पूर्व सभी देवताओं ने क्या किया था? उत्तर: श्री राम जन्म  से पूर्व, सभी देवताएं पृथ्वी पर जन्म ली थीं, और ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं को आदेश दिया था कि वे पृथ्वी पर अवतरण  ले। प्रश्न 2: ब्रह्मा जी और देवताओं के अवतार किस रूप में हुए थे? उत्तर: ब्रह्मा जी  जामवंत बने थे, भगवान शिव हनुमान बने थे, इंद्र बली बने थे, सूर्य नारायण सुग्रीव बने थे, और विश्वकर्मा जी ने नल और नील के रूप में अवतरण किया था। प्रश्न 3: श्री राम जन्म के संदर्भ में क्या हुआ था? उत्तर: श्री राम  जन्म के समय, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, मंगलवार को 11:30 बजे अभिजीत मुहूर्त में  जन्म लिया ।  

श्री राम जन्म के 5 कारण

श्री राम जन्म के 5 कारण

श्री राम जन्म का पहला कारण  श्री राम जन्म के कारण बाबा ने माता को सुनाएं ,बाबा कहते हैं। भगवान के द्वार पर दो द्वारपाल थे, जय और विजय। एक बार समकादिक ऋषि भगवान के दर्शन के लिए पहुंचे। तो द्वारपालों ने दर्शन करने से रोक दिया। मुनिया ने श्राप दे दिया, बोले भगवत दर्शन में विघ्न उत्पन्न करते हो। असुर हो जाओ, भगवान दौड़कर बाहर आए क्षमा याचना की। मुनियों ने कहा प्रभु तीन बार हमने अनुमति मांगी। और इन दोनों ने हमें एक बार नहीं तीन बार रोका। अब यह तीन बार बनेंगे। जब-जब यह असुर बनेंगे तब – तब आपको पृथ्वी पर अवतार लेकर इनका उधर करना पड़ेगा। वही जय विजय सतयुग में हिरण्याक्ष और हिरण कश्यप बने। हिरण्याक्ष के लिए भगवान ने वराह रूप लिया। और हिरण कश्यप के लिए नरसिंह रूप धारण किया। दूसरा जन्म त्रेता में रावण और कुंभकरण के रूप में हुआ। जिनके लिए परमात्मा श्री राम ने अवतार लिया। और तीसरा अवतार शिशुपाल और दांत वक्र के रूप में हुआ। जिनके लिए भगवान ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। श्री राम जन्म का दूसरा कारण यह तुलसी जी ने श्राप दिया है पिछले जन्म में वृंदा थी। परम सती असुराधिप नारी। तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी॥ मां वृंदा का विवाह असुरों के राजा जालंधर से हुआ। मां का सतीत्व इतना प्रबल था। वृंदा के सतीत्व करण के कारण युद्ध में जालंधर को कोई नहीं हर पता था। सारे देवता भगवान श्री हरि के पास पहुंचे। श्री हरि ने क्षल से वृंदा के सतीत्व के कवच को समाप्त किया है। छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह। युद्ध में जालंधर मर गया। वृंदा मैया को पता चला। श्राप दे दिया, भगवान ने छल करके मेरे पति को दूर किया एक दिन मेरा पति छल करके आपकी पत्नी को दूर कर देगा।  श्री राम जन्म का तीसरा कारण यह नारद जी ने श्री हरि को श्राप दे दिया। बाबा मैया से कहते हैं-  नारद श्राप दीन्ह एक बारा। कलप एक तेहि लगि अवतारा॥ नारद जी एक बार तपस्या पर बैठे। भगवान की इतनी कृपा थी, की कामदेव नारद जी की तपस्या नहीं तोड़ पाए। नारद जी को लगा कि मेरा पुरुषार्थ इतना हो गया है, कि मैंने काम को परास्त कर दिया है। भगवान ने रची माया। माया का नगर बनाया। माया की कन्या बनाई। जिसका नाम विश्व मोहिनी था। नारद जी का विवाह करने का मन हुआ। भगवान से अपना स्वरूप मांगा। क्यों मांगा? क्योंकि भगवान विष्णु मोहन है और यह विश्व मोहिनी है। यदि विश्व मोहन मिल जाएंगे तो विश्व मोहिनी माला गले में डाल देगी। भगवान ने वानर का रूप दे दिया। जब गए स्वयंवर में तो नारद जी को सभी प्रणाम करने लगे। नारद जी समझकर और विश्व मोहिनी को नारद जी वानर के रूप में दिखाई दे रहे हैं। नारद जी समझने लगे सब भगवान जानकर प्रणाम कर रहे हैं। जाकर बैठ नारद जी के पीछे शंकर जी के दो रुद्रगढ़  ब्राह्मण के रूप में जाकर बैठ गए और सुंदरता का वर्णन करने लगे।  नारद जी प्रसन्न हो गए। जब विश्व मोहिनी आई तो नारद जी का स्वरूप वानर का दिखाई पड़ा। विश्व मोहिनी व पंक्ति छोड़कर सामने वाली पंक्ति में चली गई। भगवान स्वयं राजकुमार का रूप धारण करके चले आए। और विश्व मोहिनी ने भगवान के गले में माला डाल दी। जब नारद जी ने अपना वानर रूप देखा। तो दोनों गनों को श्राप देकर चले भगवान के पास। बोले- देहउँ श्राप कि मरिहउँ जाई। जगत मोरि उपहास कराई॥ या तो श्राप दूंगा। नहीं तो प्राण त्याग दूंगा। नारद जी को भगवान रास्ते में ही मिल गए। नारद जी ने जब विश्व मोहिनी को भगवान के पास देखा तो और क्रोध बढ़ गया। बोले आप कपटी है। आप परम स्वतंत्र हो गए हैं। आप अपने से बड़ा किसी को नहीं मानते। जो मन में आता है वही करते हैं।  नारद जी ने तीन श्राप दिए। पहला श्राप जिस राजकुमार का रूप धारण करके छल किया है। वह शरीर धारण करना पड़ेगा। दूसरा श्राप दिया मैंने कहा अपना स्वरूप दीजिए। अपने वानर बनाया। आप जब मनुष्य बनेंगे तो वह वानर ही सहायता करेंगे। तीसरा श्राप आज विश्व मोहिनी के लिए जैसे मैं रो रहा हूं। अपनी पत्नी के लिए आपको भी रोना पड़ेगा। भगवान ने स्वीकार किया। भगवान ने नारद जी से अपनी माया का प्रभाव हटाया। और जैसे ही भगवान ने माया का पर्दा हटाए। जब हरि माया दूरि निवारी। नहिं तहँ रमा न राजकुमारी॥ नारद जी भगवान के चरणों में प्राणीपात हो गए। प्रभु मैंने आपको श्राप दे दिया। मेरे सारे वचन असत्य हो जाए। भगवान ने कहा आप नारद है। आपके द्वारा कही गई बात रद्द नहीं होगी। आप नारद है, नारद जी ने कहा प्रभु मैंने श्राप दिया है। भगवान कहते हैं, यह मेरी इच्छा थी श्राप लेने की। भगवान ने नारद जी को वरदान दिया, कि आज के बाद मेरी माया आपको कभी नहीं सताएगी। श्री राम जन्म का चौथा कारण सृष्टि के आदि माता-पिता स्वयंभू मनु और माता शतरूपा ने जाकर नैमिषारण्य में कठोर तपस्या की है। 23000 वर्ष तपस्या की भगवान प्रकट हुए। आकाशवाणी हुई। मांगिये क्या वरदान चाहिए। मनु जी ने कहा आपके जैसा पुत्र चाहिए। भगवान ने वरदान दिया। मैं आपके घर पुत्र के रूप में अवतार लूंगा। श्री राम जन्म का पांचवा कारण एक बार प्रताप भानु नाम के राजा के जीवन में एक कपटी मुनि का कुसंग हुआ। प्रताप भानु ने कहा उसे पूरे विश्व पर राज करना है। कपटी मुनि ने कहा, उसके लिए ब्राह्मणों से आशीर्वाद लेना होगा। 1 लाख ब्राह्मण को निमंत्रण दिया। सपरिवार आए, कपटी मुनि ने भोजन बनाया। भोजन के लिए ब्राह्मण संकल्प कर रहे थे। तभी आकाशवाणी हुई, जिस भोजन को आप सभी ग्रहण करने जा रहे हैं। उसमें ब्राह्मण का मांस मिला है। सारे मुनियों ने उसी जल से श्राप दे दिया। सारे कुल परिवार समेत असुर हो जाओ। प्रताप भानु रावण बना। उसका छोटा भाई अहि मर्दन कुंभकरण बना। और प्रताप भानु के मंत्री धर्म रूचि विभीषण बने। रावण दोनों भाइयों को लेकर कठोर तपस्या की। ब्रह्मा जी शंकर जी दोनों वरदान देने गए।

शिव पार्वती संवाद

शिव पार्वती संवाद

शिव पार्वती जी द्वारा श्री राम चरित्र का गुणगान शिव पार्वती जी कैलाश में बट वृक्ष के नीचे बैठे हुए हैं। मां बाबा के वामंग में विराजमान है। बाबा ने पूछा आप क्यों आई हैं। क्या आप कुछ पूछना चाहती हैं। मां ने कहा प्रभु आप विश्व के नाथ हैं। आप मेरे भी नाथ हैं। आप सर्वज्ञ हैं, समस्त गुना के धाम। प्रभु आप एक बात बताइए क्या कभी कल्पवृक्ष के नीचे रहने वाला दरिद्र हो सकता है। नहीं ना, तो आपके चरणों की दासी होकर भी मेरा भ्रम समाप्त क्यों नहीं हो पा रहा है। शंकर जी ने पूछा आपको भ्रम है। मां बोली यह पिछले जन्म का है। जो अभी तक समाप्त नहीं हुआ। शंकर जी बोले मैं आपका भ्रम कैसे समाप्त करूंगा। मैया बोली आप ही के पास उपाय है।कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना॥ शंकर जी ने पूछा आपको क्या भ्रम है। मां बोली जो संत लोग कहते हैं, राम की ब्रह्म है। शेष, सरस्वती, वेद, पुराण सब राम जी की महिमा का गुणगान करते हैं। आपको मैं देखती हूं। आप दिन रात बैठ कर राम नाम जपते हैं। क्या यह अयोध्या में जन्मे राम जी है या कोई और राम जी हैं। आप कहते हैं, कि राम जी ब्रह्म है। तो ब्रह्म का जन्म तो नहीं होता। यह एक राजा के पुत्र कैसे बन गए। और राजा के पुत्र है तो जन्म लेने वाले राज्य पुत्र को आप ब्रह्म क्यों बता रहे हैं। देखि चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥  मां ने रामचरित्र और सारी लीला पूछी। प्रभु आप तीनों लोकों के गुरु हैं। मुझे पूछने में और कुछ छूट गया हो तो यह आप बता दीजिए। श्रीरघुनाथ रूप उर आवा। परमानंद अमित सुख पावा॥ हृदय में राम जी का दर्शन हुआ और भगवान शंकर दो दंड के लिए ध्यान में चले गए मां हाथ जोड़ बैठी हैं। बाबा सभी को सुख प्रदान करने के लिए ध्यान से बाहर आए, और भगवान शिव पार्वती जी के सामने कथा प्रारंभ करने से पहले मंगलाचरण किया। भगवान शिव पार्वती मैया को धन्यवाद दिया। मैया ने कहा आप मुझे क्यों धन्यवाद कर रहे हैं। बाबा बोले आज तक ऐसा उपकार मुझ पर किसी ने नहीं किया। मैया ने पूछा मैंने कौन सा उपकार कर दिया।   पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा॥ आपने जो पूछा है यह राम जी की कथा गंगा के समान है। बाबा कहते हैं जो मनुष्य भगवान श्री राम का चिंतन, मनन और गुणगान नहीं करता है। वह व्यक्ति पशु के समान है।  बाबा बोले – एक बात नहिं मोहि सोहानी। जदपि मोह बस कहेहु भवानी॥ आपने जो भी पूछा है सब मोहवस पूछा है। परंतु मुझे आपकी बात अच्छी नहीं लगी आपने यह कह दिया राम जी कोई और है। यह बात कौन कहता है।  कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच। पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच॥  जो पाखंडी है, जिसको सत्य-सत्य का ज्ञान नहीं है। जो धर्म के विमुख हो चुका है। वह कह सकता है राम जी कौन है। आपने पूछा शगुन और निर्गुण भगवान कौन है देवी यह एक ही है। सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥ भगवान भक्त के प्रेम बस निर्गुण से सगुन होते हैं बाबा कहते हैं।-रामहि केवल प्रेमु पिआरा। जानि लेउ जो जान निहारा॥ राम जी को केवल प्रेम प्रिया है। बाबा ने कहा देवी भगवान के स्वरूप को कोई नहीं जानता। वेद अपने अनुसार कहते हैं। महाराज दशरथ के आंगन में खेलने वाले बालक श्री राम ही भगवान है।  माता ने पूछा राम जी मनुष्य रूप में कब आते हैं। बाबा बोले- जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥ जब-जब धर्म की हानि होती है तो राक्षसो के संघार के लिए भगवान जन्म लेते हैं ।  बाबा ने माता को भगवान श्री राम के जन्म के पांच कारण सुनाएं।  Summary शिव पार्वती द्वारा श्री राम चरित्र का गुणगान किया गया है। मां बाबा के साथ बैठकर श्री राम की महिमा और उनके स्वरूप के बारे में बातचीत की गई है। इसके अलावा, बाबा ने माता से राम जी के जन्म के पांच कारणों के बारे में बताया है। Question and Answer   1. शिव पार्वती जी ने क्यों कैलाश पर्वत पर बैठकर बाबा से बातचीत की? उत्तर: शिव पार्वती जी ने कैलाश पर्वत पर बैठकर बाबा से श्री राम के चरित्र और गुणगान के बारे में चर्चा की थी। 2. मां ने क्यों बाबा से पूछा कि क्या कल्पवृक्ष के नीचे रहने वाला दरिद्र हो सकता है? उत्तर: मां ने इस सवाल के माध्यम से अपने भ्रम को समझाने का प्रयास किया, क्योंकि वह चाहती थी कि उसका भ्रम समाप्त हो जाए। 3. मां ने बाबा से श्री राम के ब्रह्म होने के संदर्भ में क्या पूछा? उत्तर: मां ने पूछा कि क्या राम जी ब्रह्म हैं और कैसे उनका जन्म नहीं हो सकता, जैसे कि मानव राजा के पुत्र का होता है. 4. बाबा ने माता को भगवान श्री राम के जन्म के पांच कारण क्या सुनाएं? उत्तर: बाबा ने माता को भगवान श्री राम के जन्म के पांच कारण बताए, जिनमें धर्म की हानि, राक्षसों के संघार के लिए उनका जन्म शामिल था। 5. बाबा ने माता से क्या कहा कि राम जी को केवल प्रेम प्रिया है? उत्तर: बाबा ने कहा कि राम जी को केवल प्रेम प्रिया है, और उनके भक्त के प्रेम से वे सगुण स्वरूप में प्रतिष्ठित होते हैं।

याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद

याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद

याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद में श्री याज्ञवल्क्य जी जब श्री भारद्वाज जी को कथा सुनाते हैं, तो श्री भारद्वाज जी का रोम रोम पुलकित हो जाता है। उनका कंठ अवरोध हो जाता है। आंखों से आंसू बहने लगते हैं। याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी से कहते हैं,अगर पुण्य अर्जित करना हो तो प्रभु श्री राम कहते हैं- पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा। मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा॥ पुण्य केवल एक है दूसरा नहीं मन, कर्म ,वचन से ब्राह्मण में श्रद्धा उत्पन्न हो जाए यही जीवन में पुण्य बढ़ता है। धन्य कौन?-धन्यास्ते कृतिनः पिबन्ति सततं श्रीरामनामामृतम्‌॥  जिस मनुष्य के कान सतत ही भागवत नाम सुनते हैं। वह जीव धन्य है भारद्वाज जी आप धन्य है। यहां याज्ञवल्क्य जी बोले- भारद्वाज जी आपने सोचा होगा मैंने पूछी राम कथा और आप सुन रहे हैं शिव कथा अकारण नहीं सुनाई, जानबूझकर सुनाइए। क्यों ?- सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥ भगवान शिव के चरणों में जो प्रेम नहीं करता, राम जी उस मनुष्य का चेहरा सपने में भी नहीं देखते। प्रथम मैंने आपको शिव कथा सुना कर आपका मर्म को बुझा। आप राम जी के सूचि भक्त हैं। आप निर्मल और पवित्र हैं आप सूचित संपन्न भगवान के भक्त हैं। अब मैं आपको राम कथा सुनाऊंगा मैं जो आपको सुनाने जा रहा हूं। उसे 100 करोड़ शेषनारायण एक साथ खड़े होकर भी नहीं गा सकते । एक शेषनारायण के पास 1000 मुख होते हैं। सभी शेषनारायण अपने अनेकों मुख से भी श्री राम जी की कथा गाने में सक्षम नहीं है। भारद्वाज जी बोले जब इतने मुख वाले शेष नारायण नहीं गा सकते, तो आप कैसे जाएंगे। याज्ञवल्क्य जी बोले मैं नहीं गाऊंगा, फिर जेहि पर कृपा करहि जनु जा‍नी।  याज्ञवल्क्य जी बोले मैं नहीं गाऊंगा मुझे भगवान गवाते हैं।  मां सरस्वती हमारी जीव को कठपुतली की तरह नचाती है।राम जी जिस पर कृपा करें वही जीव कथा गाता है। भगवान जिसको अपना मान लेते हैं उस पर अपनी कृपा कर देते हैं। भगवान की कृपा पानी के लिए संतों का संघ करना चाहिए। याज्ञवल्क्य जी ने इस कर्मकांड से ज्ञान घाट कैलाश गए। कैलाश का शिकार दिव्या है, और कैलाश पर माता पार्वती और शिवजी का संवाद चल रहा है।  Summury याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद के माध्यम से बताया गया है कि श्री याज्ञवल्क्य जी जब भगवान राम की कथा श्री भारद्वाज जी को सुनाते हैं, तो श्री भारद्वाज जी के मन में भावना उत्तेजित होती है। उनका दिल भगवान राम के प्रति भक्ति से भर जाता है। याज्ञवल्क्य जी बताते हैं कि पुण्य केवल एक होता है और उसे प्राप्त करने के लिए मन, कर्म, और वचन से ब्राह्मण में श्रद्धा उत्पन्न होनी चाहिए। वे भारद्वाज जी की भक्ति की प्रशंसा करते हैं और उन्हें धन्य मानते हैं। याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी से कहते हैं कि उन्होंने शिव कथा की थी, लेकिन अब वे भगवान राम की कथा सुनाएंगे। याज्ञवल्क्य जी के द्वारा बताया जाता है कि भगवान राम की कथा को सुनने के लिए भगवान की अनुग्रह चाहिए और वे खुद नहीं गाएंगे, बल्कि वह दिव्य आशीर्वाद के रूप में उसके माध्यम से प्रकट होगा। ब्लॉग में यह भी बताया गया है कि भगवान की कृपा वहीं होती है जिस पर वह अपना आशीर्वाद देते हैं और कैलाश को भगवान शिव और माता पार्वती का दिव्य संवाद का स्थल माना गया है। Question and answer   Question 1: याज्ञवल्क्य और भारद्वाज के बीच कैसे हुआ इस संवाद का आरंभ? Answer: याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद का आरंभ तब हुआ जब याज्ञवल्क्य जी ने श्री भारद्वाज जी को राम कथा सुनाने का प्रस्ताव दिया। इस संवाद के आरंभ में भारद्वाज जी का आकर्षण और भाग्य के बारे में विचार किया जाता है। Question 2 : याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज को किस विषय पर कथा सुनाई? Answer : याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज को श्री राम कथा सुनाई, जिसमें विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाएं और धार्मिक सन्देश शामिल हैं। Question 3 : भारद्वाज जी ने याज्ञवल्क्य से शिव कथा सुनाने के लिए क्यों कहा? Answer : भारद्वाज जी ने याज्ञवल्क्य से शिव कथा सुनाने के लिए कहा क्योंकि उनका दिल शिव परमात्मा के प्रति प्रेम से भरा हुआ था। उनके लिए शिव कथा सुनना अत्यंत महत्वपूर्ण था।   Question 4 : याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद के माध्यम से कैलाश की यात्रा किसने की और क्यों? Answer:  याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद के माध्यम से कैलाश की यात्रा की और इसका मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति था। कैलाश का शिकार दिव्या है और वहां पार्वती माता और शिवजी के संवाद का साक्षात्कार किया गया।

शिव पार्वती विवाह रामचरितमानस के अनुसार

भगवान शिव भगवान पार्वती विवाह

कैसे माता सती का त्याग भगवान शिव ने किया एक बार भगवान शिव और माता सती दोनों अगस्त ऋषि के पास कथा सुनने के लिए गए अगस्त ऋषि ने माता सती और भगवान शिव को देखा कितने भाव में आ गए दिव्या आसन पर बिठाकर लगे पूजा करने। जब ऋषि अगस्त कथा के वक्त होकर भगवान और माता का पूजन करने लगे, तो माता सती ने सोचा, की लगता है इनका ज्ञान हमारे ज्ञान से कम है। छोटे हैं तभी तो हमारी पूजा कर रहे हैं। माता सती कहने लगी बाबा भी कहां-कहां लेकर आ जाते हैं। यह कौन सी कथा सुनाएंगे यहां पर ध्यान दीजिए सुनने से पहले श्रद्धा समाप्त हो गई। कथा समाप्त हो गई माता बैठी रही कुछ सुना नहीं। सुना किसने- “सुनी महेस परम सुखु मानी॥” बाबा की कथा सुनी परम आनंद में आए  राम जी की भक्ति का वरदान दक्षिणा में दिया और चल दिए।  त्रेता युग का समय है राम जी अवतार ले चुके हैं। जिस दंडकारण्य में बाबा कथा सुनाने आए थे, इस दंडकारण्य में सीता जी राम जी और लक्ष्मण जी रहते हैं। जब बाबा आकाश मार्ग से जा रहे थे, तो भगवान की लीला पृथ्वी पर चल रही थी। बाबा ने सोचा कथा सुनकर कान तो धन्य कर लिए, अब आंख भी धन्य कर लेता हूं। बाबा ने रघुनाथ जी को दिखा * “संभु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा ॥” जैसे ही शंकर भगवान को राम जी दिखाई पड़े बाबा कहने लगे सच्चिदानंद भगवान आपकी जय हो जय जयकार करके चले। सती माता ने कथा सुनी नहीं उन्हें पता ही नहीं कि भगवान रो भी थे, उनकी पत्नी के हरण के बाद। भगवान ने जय जयकार करके प्रणाम किया। माता सती ने मन में सोचा क्या यह भगवान है। भगवान क्या अपनी पत्नी के लिए कभी रोते हैं। क्या और यह भगवान है, तो इनको अपनी पत्नी के बारे में पता नहीं होगा क्या, नहीं यह भगवान नहीं है, अनेक प्रकार से समझाया माता को समझ नहीं आई। बाबा ने कहा देवी जब आपको इतना ही संचय हो गया है तो परीक्षा ले लीजिए। मैया परीक्षा लेने गई और बाबा भजन में बैठ गए “अस कहि लगे जपन हरिनामा।”  मां सती को परीक्षण के लिए भेज कर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ गए। बोले आप जब तक परीक्षा लेकर आएंगे मैं इसी बट के वृक्ष के नीचे बैठा हूं। सती मैया परीक्षा लेने चली * “पुनि पुनि हृदयँ बिचारु करि धरि सीता कर रूप।  आगें होइ चलि पंथ तेहिं जेहिं आवत नरभूप॥”  मां सोचने लगी कैसे राम जी की परीक्षा लूं। बहुत सोचने के बाद मां को एक बात समझ में आई वह अपनी सीता को ढूंढ रहे हैं क्यों नाम है सीता का रूप बना लूं तो भगवान पीछे-पीछे आएंगे। राम लक्ष्मण जी आ रहे थे। सती मैया ने सीता जी का रूप बनाया और आगे आगे चलने लगी। लक्ष्मण जी की दृष्टि गई यह कोई और है। मेरी भाभी नहीं हो सकती, मेरी भाभी हमेशा भैया के पीछे-पीछे चलती है। यह आगे आगे चल रही है यह मेरी भाभी नहीं है। और ध्यान से * “लछिमन दीख उमाकृत बेषा। चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा॥”  लक्ष्मण जी कहते हैं अरे यह तो माता सती की है। भाभी का रूप बनाकर घूम रही है लग रहा है प्रभु की कोई लीला चल रही है लक्ष्मण जी मौन हो गए। राम जी देख, राम जी ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम किया और बोले, मैं दशरथ नंदन राम आपको प्रणाम करता हूं। बाबा कहां है, अकेले-अकेले घूम रही है। सती माता के पैरों से धरती खिसक गई। सती माता सोचने लगी मैं बाबा को क्या उत्तर दूंगी। मैंने अपने पति के वचनों पर विश्वास नहीं किया। माता सती बाबा के पास गई बाबा ने कहा कैसे परीक्षण किया माता ने बाबा से झूठ कह दिया- “कछु न परीछा लीन्हि गोसाईं। कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाईं॥”   मेरी मां ने कहा, प्रभु मैं कोई परीक्षण नहीं किया। बाबा भोले क्या किया जो आपने किया वही मैंने भी किया। बाबा को विश्वास नहीं हुआ। इतना समझता रहा मान जाओ मान जाओ और बिना परीक्षा लिए आ गई। शंकर जी ध्यान अवस्थित हुए और ध्यान में जाकर सब देखा। मेरी सती ने मां का रूप बनाया बाबा को बड़ा कष्ट हुआ। बाबा कहते हैं यह सती का अपराध नहीं है। यह भगवान की माया का अपराध है। यह राम जी की माया ने सती से झूठ कहलवाया है। मेरी सती झूठ नहीं बोलती  । राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥ हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥  शंकर भगवान ने सोचा कि अब जब जब मैं सती को देखूंगा तो मुझे लगेगा माता को देख रहा हूं और जिसे देखने के बाद मां की याद आएगी उनके साथ में गृहस्थ जीवन का निर्वहन कैसे करूंगा। बाबा ने इस समय मन में संकल्प किया कि आज के बाद  “एहिं तन सतिहि भेंट मोहि नाहीं। सिव संकल्पु कीन्ह मन माहीं॥” सती जब तक इस शरीर में है सती और मेरी भेंट नहीं हो सकती। बाबा ने सती मैया का त्याग कर दिया आकाशवाणी हुई जय जयकार हुई। माता सती ने बहुत पूछा क्या प्रण लिया है। बाबा नहीं बोल किसी बात से अगर किसी को कष्ट हो तो मौन धारण कर लेना चाहिए। माता सती ने बाबा से पूछा *”कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला। सत्यधाम प्रभु दीनदयाला॥”  हे प्रभु आपने कौन सा प्राण ले लिया है। बाबा नहीं बोल कैलाश गए और बाबा समाधि में आ गए। बाबा 87000 साल समाधि में रहे “बीतें संबत सहस सतासी। तजी समाधि संभु अबिनासी॥”  भगवान शंकर जागे और राम नाम का सुमिरन करने लगे माता जान गई बाबा जाग गए हैं माता ने जाकर बंधन किया। भगवान ने माता को अपने सामने बिठाया क्यों क्योंकि भगवान ने माता का त्याग कर दिया है। माता की व्यथा को समाप्त करने के लिए रघुनाथ जी की कथा बाबा सुनाने लगे  “लगे कहन हरि कथा रसाला।”  इस समय माता सती के पिता दक्ष को प्रजापतियों का राजा बनाया था। तभी प्रजापति दक्ष को अभियान हुआ सभी देवता कैलाश के ऊपर से गुजरते हुए जा रहे

 श्री रामचरितमानस महिमा 4  घाटो के वक्ता द्वारा

 श्री रामचरितमानस महिमा 4  घाटो के वक्ता द्वारा

  गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानसजी की महिमा गाई तुलसीदास जी कहते हैं भगवान की कथा कामधेनु है अर्थात मनुष्य के जीवन की समस्त मनोकामना को पूर्ण करने की शक्ति और समर्थ अगर किसी में है तो वह भगवान की कथा में है। यह कामधेनु है- “रामकथा कलि कामद गाई।”  कलिकाल कलयुग में राम कथा को कामधेनु बताया है “सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥”    सज्जनों के लिए सजीविनी बूटी के समान है। अर्थात जो मनुष्य व्यवहार अच्छे से नहीं कर पा रहा है उसे समझ में कैसा व्यवहार करना चाहिए यह कथा सिखाती है इसीलिए यह सजीविनी बूटी है। याज्ञवल्क्य जी द्वारा रामचरितमानस जी की महिमा याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी कोरामचरितमानसजी की महिमा सुनते हुए कहते हैं । “भारद्वाज जी-महामोह महिषेसु बिसाला । रामकथा कालिका कराला ।।रामकथा ससि किरन समाना । संत चकोर करहिं जेहि पाना।।”  याज्ञवल्क्य जी कहते हैं मनुष्य के जीवन में 6 विकार होते हैं काम, क्रोध, मोह, मद, लोभ, मत्सर ( ईर्ष्या) इन 6 विकारों में सबसे बड़ा विकार है मोह उत्तर कांड में मोह को कहा गया है- “मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥” इस मोह से कई सूल उत्पन्न होते हैं यह वह सूल है जो  चूभ जाता है पर दिखाई नहीं देता है । याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी से किसे कहते हैं मोह विशाल रूप धारण कर ले महिषासुर जैसा । याज्ञवल्क्य जी कहते हैं जिस प्रकार महिषासुर का वध करने के लिए मां काली आती है इस प्रकार जीवन में मोह महिषासुर का रूप धारण कर लेता है उसे मोह रूपी महिषासुर का वध करने के लिए भगवान की कथा मां काली के समान है यह कथा मोह को समाप्त कर देती है यह कथा की महिमा है। कैसे याज्ञवल्क्य जी ने कथा के प्रारंभ में भगवान शिव एवं माता पार्वती के विवाह का वर्णन किया। भगवान शंकर द्वारा रामचरितमानस जी की महिमा बाबा ने माता पार्वती से महिमा में केवल दो बात कही – “रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।”  भगवान शंकर कहते हैं देवी आदर पूर्वक एक बात सुनिए राम कथा कलयुग में कलयुग के वृक्ष को काटने वाली कुल्हाड़ी के समान है अगर कलयुग का विकार वृक्ष बन जाए तो उसे काटने के लिए भगवान की कथा कुल्हाड़ी के समान है जिसके पास भगवान की कथा रूपी कुल्हाड़ी रहेगी उसके जीवन में विकार रूपी वृक्ष बचाने वाला नहीं है। “रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।।” भगवान की कथा सुंदर ताली है यह ताली बजाने से संशय रूपी सारे पक्षी उड़ जाएंगे। गरुड़ जी के द्वारा रामचरितमानस जी की महिमा गरुड़ जी को संशय होता है तो वह काग भूसुंडी जी के पास जाते हैं और गरुड़ जी कहते हैं आपके आश्रम के दर्शन मात्र से सारा संसार दूर हो गया हे काग भूसुंडी जी आप वह राम कथा सुनाइए जो जीवन में सुख प्रदान करती है दुख का नाश करती है आप वह कथा आदरपूर्वक सुनाइए और यहां पर गरुड़ जी ने मानस जी की महिमा गई ।  summary(सारांश) गोस्वामी तुलसीदास, याज्ञवल्क्य, भगवान शंकर, और गरुड़ जी द्वारा रामचरितमानस महिमा का वर्णन किया गया है। तुलसीदास जी ने कहा है कि भगवान की कथा कामधेनु है और याज्ञवल्क्य जी ने मानव जीवन के विकारों को वर्णित किया है। भगवान शंकर ने राम कथा को कलयुग के वृक्ष के समान दिखाया है और गरुड़ जी ने भी मानस की महिमा की प्रशंसा की है। Question and Answer(प्रश्न और उत्तर) प्रश्न: तुलसीदास जी के अनुसार, कथा किसकी तरह कामधेनु है और क्या उसका महत्व है? उत्तर: तुलसीदास जी के अनुसार, कथा भगवान की कथा कामधेनु की तरह है, अर्थात् मानव जीवन की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने की शक्ति है। अगर किसी व्यक्ति में यह शक्ति और समर्थ्य है, तो वह भगवान की कथा में है। इसलिए कथा को सजीविनी बूटी के समान माना गया है, जो मनुष्य को सही व्यवहार की समझ देती है। प्रश्न: याज्ञवल्क्य जी ने रामचरितमानस के विकारों के बारे में क्या कहा और मोह का महत्व क्या है? उत्तर: याज्ञवल्क्य जी ने मनुष्य के जीवन में 6 विकार – काम, क्रोध, मोह, मद, लोभ, और मत्सर (ईर्ष्या) का वर्णन किया। उनमें सबसे बड़ा विकार मोह है। उत्तर कांड में मोह को सभी ब्याधियों का मूल बताया गया है और यह मोह विकार से जुड़े सभी सूलों का मूल है। प्रश्न: भगवान शंकर ने कथा को किस तरह का उपमान दिया और कथा का महत्व क्या है? उत्तर: भगवान शंकर ने कथा को कलयुग के वृक्ष के समान दिखाया है, और उन्होंने कहा है कि इसके बिना कलयुग के विकारों का नाश नहीं हो सकता। कथा का महत्व यह है कि इसके माध्यम से संशय और असंशय से सभी दुख और संकट दूर हो सकते हैं और जीवन में सुख प्राप्त किया जा सकता है। प्रश्न: गरुड़ जी ने रामचरितमानस जी की महिमा के बारे में क्या कहा और उसका संशय के साथ कैसे संबंध है? उत्तर: गरुड़ जी ने संशय होने पर काग भूसुंडी जी को बताया कि कथा के आश्रम के द्वार्शन से सारा संसार दूर हो गया है, और उन्होंने कहा कि कथा विकारों के वृक्ष को काट सकती है। इसलिए उसके द्वार्शन से संशय के साथ जुड़े सभी संकट दूर हो सकते हैं।

कैसे 2 करण से कागभूसुंडीजी को श्राप मिला

श्री कागभुसुंडिजी द्वारा भगवान की बाल लीला का दर्शन श्री कागभुसुंडिजी भगवान श्री राम जी की बाल लीला का दर्शन कर रहे थे तभी भगवान ने अपने हाथ से मालपुआ श्री कागभूसुंडीजी को बताया और कहा खाओ, जैसे ही काग भूसुंडी जी खाने आए वैसे ही भगवान रो दे फिर भगवान मालपुआ दे ,काग भूसुंडी जी खाने आए भगवान फिर रो दे । जब 5-6 बार यह दृश्य हुआ काग भूसुंडी जी कहने लगे यह भगवान है। यह भगवान नहीं हो सकते, क्या कभी भगवान अपने भक्तों के साथ ऐसा करते हैं। यह भगवान नहीं है? पकड़ा माया ने कागभूसुंडीजी को भगवान ने बैठे बैठे हाथ फैलाएं सप्तवर्ण भेदकर तीन लोक 14 भवन काग भूसुंडीजी भागते रहे भगवान का हाथ उनके पीछे-पीछे दौड़ता है। जब काग भूसुंडी जी की मति चकराई फिर अयोध्या लौटे भगवान राम ने अपना मुख खोला और काग भूसुंडी जी भीतर चले गए। अनेका अनेक ब्रह्मांड दिखाई देने लगे ब्रह्मांड में पृथ्वी है उसमें जाकर अयोध्या में श्री राम का जन्म देखने लगे। ऐसा करते-करते कागभुसुंडि जी भगवान के पेट में 100 कल्प रहे। जब-जब जिस जिस ब्रह्मांड में राम जी का जन्म होता था, काग भूसुंडी जी दर्शन करते थे। 100 कल्प बीतने के बाद भगवान ने मुख को खोला भूसुंडी जी बाहर आए। जब बाहर आए तो एक दंड (24 मिनट का समय)  ही बिता था अभी काग भूसुंडी जी की मति चक्रई काग भूसुंडी जी भगवान के चरणों में लौट गए। प्रभु क्षमा करिएगा मैंने आप पर संशय किया। राम जी ने कहा क्या चाहिए आपको कागभूसुंडीजी। काग भूसुंडी जी बोले जो आपको लगे प्रभु, भगवान बोले ज्ञानी हो जाइए, विज्ञानी हो जाइए, समस्त कल के धाम हो जाइए, सभी गुनो के धाम हो जाइए, भगवान इतना बोलकर चुप हो गए कागभुसुंडि जी उदास हो गए। क्यों? – “प्रभु कह देन सकल सुख सही। भगति आपनी देन न कही।।” भगवान ने सब कुछ दे दिया पर अपनी भक्ति नहीं दी तो यह सब व्यर्थ है। जब कागभुसुंडि जी का उदास चेहरा भगवान ने देखा तो बोले क्या बात है काग भूसुंडी जी। काग भूसुंडी जी बोले प्रभु सब कुछ दे दिया अपनी भक्ति नहीं दी। कैसे कागभूसुंडीजी को श्राप मिला काग भूसुंडी जी अयोध्या से उज्जैन गए । गुरुदेव भगवान वैष्णव थे और और काग भूसुंडी जी शिव भक्त जानकर गुरुदेव ने सेव मंत्र दे दिया।  काग भूसुंडी जी का यह मानना था शिव भक्त वैष्णव भक्त से बड़ा होता है।  काग भूसुंडी जी बाबा महाकाल के मंदिर में बैठ कर आराधना कर रहे थे ,पीछे से गुरुजी आए काग भूसुंडी जी बैठे रहे । गुरुजी आए तो उठे नहीं और शिष्य के द्वारा सद्गुरु का अपमान बाबा महाकाल सहन नहीं कर पाए । बाबा की शिवलिंग से भयंकर गर्जना हुई “पापी गुरुदेव के आने के बाद भी अजगर की तरह बैठा है जहां श्राप देता हूं अजगर हो जा” तब गुरुदेव भगवान को दया आई तो भगवान महाकाल से प्रार्थना की- नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विंभुं ब्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरींह। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं।। निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।।करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।। तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।।स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा।। चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।।मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।। प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।।त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।। कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी। सदा सज्जनान्ददाता पुरारी।।चिदानंदसंदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।। न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।।न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।। न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।।जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।। तब भगवान ने कहा अनेकों बार तुझे शरीर बदलना पड़ेगा, लेकिन तेरे गुरु के कारण तुझे आशीर्वाद देता हूं। जब-जब तू शरीर बदलेगा जब तुझे कोई कष्ट नहीं होगा और किसी भी जन्म की बिस्मृति नहीं होगी। बार-बार शरीर बदलते मनुष्य बन तो बचपन में ही माता-पिता गुजर गए राम भक्त थे तो वन में निकाल कर लोमश ऋषि से मिले और बोले हमें शगुन भगवान के बारे में बताइए। तो लोमश ऋषि निर्गुण भगवान के बारे में सुनाने लग जाते। फिर कागभूसुंडी बोलते मुनिवर सगुन भगवान के बारे में सुनाइए। लोमश ऋषि सगुन भगवान के बारे में सुनते सुनते निर्गुण भगवान के बारे में सुनाने लगते। जब ऐसा 5-6 बार हुआ तो लोमश ऋषि को क्रोध आ गया “बोले मैं जो बोलता हूं वह नहीं सुनता बीच -बीच कौवे की तरह काओ-काओ करता है जय श्राप देता हूं कौवा हो जा”। और काग भूसुंडी जी कौवा बन गए। यह श्री रामचरितमानस का चौथा घाट था ।कैसे श्री रामचरितमानस के चारों घाटों के वक्त ने श्री रामचरितमानस की महिमा गई। summary(सारांश) कागभूसुंडीजी की अद्वितीय कथा को जानते हैं, जिन्होंने भगवान श्रीराम के दिव्य लीला के साथ एक अनोखा संवाद किया। कागभूसुंडी जी ने भगवान राम को अपने हाथों से मालपुआ बनाते हुए देखा, लेकिन जैसे ही वह खाने के लिए आए, भगवान राम रो देते थे, और जब कागभूसुंडी जी चले जाते, तो भगवान राम हंसते थे। यह कई बार हुआ, जिससे कागभूसुंडी जी ने सवाल किया कि क्या यह वाकई एक दिव्य ब्रह्म के व्यवहार हो सकता है। तब माया, ब्रह्मांडिक भ्रम की प्रतिष्ठा, आक्रमण किया, और कागभूसुंडी जी ने भगवान के वास्तविक स्वरूप के बारे में गहरी जागरूकता प्राप्त की। कागभूसुंडी जी ने भगवान शिव की भक्ति में अपना मार्ग बदला और एक गुरु के मार्गदर्शन से ज्ञान प्राप्त किया। आखिरकार, कागभूसुंडीजी की खोज ने एक गहरी समझ में लाई कि भक्ति का सार भौतिक आशीर्वाद प्राप्त करने में नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में और दिव्य की शरण में है। यह कथा एक भक्त के आत्मिक सत्य की खोज और भक्ति की परिवर्तक शक्ति को दर्शाती है। Question and Answer(प्रश्न और उत्तर) प्रश्न: कागभूसुंडीजी की कहानी में क्या संदेश है? उत्तर: कागभूसुंडीजी की कहानी में मुख्य संदेश है कि भगवान की भक्ति का महत्व भौतिक आशीर्वाद प्राप्त करने में नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में और दिव्य की शरण में है। यह कहानी एक भक्त के आत्मिक सत्य की खोज और भक्ति की परिवर्तक शक्ति को दर्शाती है। प्रश्न: कागभूसुंडी जी की कहानी में क्या अद्वितीय घटना

श्री रामचरितमानस के 4 घाट

तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस में चार घाटों का वर्णन है हर घाट पर एक वक्ता और एक श्रोता है यहां पर हर वक्ता ने अपने-अपने भाव से भगवान श्री राम का चरित्र चित्रण किया है। शरणागति घाट :- यह घाट काशी जी का अस्सी घाट है इस घाट में गोस्वामी तुलसीदास जी वक्ता है और गंगा मैया, संत समाज और कोई नहीं तो स्वयं तुलसीदास जी का निज मन श्रोता है ” स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति॥”गोस्वामी जी बोले मैं आपको वह कथा सुनाऊंगा जो श्री याज्ञवल्क्य जी ने श्री भारद्वाज जी को प्रयागराज में सुनाई है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान के शरण में जाने की बात कही है इसीलिए इस घाट को शरणागति घाट कहा गया है। कर्मकांड घाट :- इस घाट के वक्ता है श्री याज्ञवल्क्य और श्रोता है श्री भारद्वाज जी और स्थान है तीर्थराज प्रयाग इसे कर्मकांड घाट कहा गया है श्री रामचरितमानस  के अनुसार कर्म कैसा होना चाहिए यह बात याज्ञवल्क्य जी ने भारद्वाज जी को बताइए है। याज्ञवल्क्य जी बोले मुनिवर मैं आपको वह कथा सुनाऊंगा जो कैलाश में भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई है। ज्ञान घाट :- इस घाट में वक्ता है भगवान शिव और श्रोता है माता पार्वती, स्थान है कैलाश पर्वत। इस घाट में बाबा ने माता को सारी ज्ञान की बातें बताई है इसलिए इसे ज्ञान घाट कहा गया है। शंकर जी कहते हैं- “उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना।।” श्री रामचरितमानस  में जितनी भी ज्ञान की बातें हैं वह भगवान ने कैलाश पर कही है। भगवान ने कहा मैं आपको वह कथा सुनाऊंगा जो कागभूसुंडी जी ने पक्षीराज गरुड़ जी को नीलगिरी पर्वत पर सुनाई है। भक्ति घाट :- इस घाट में वक्ता है श्री काग भूसुंडी जी और श्रोता है श्री गरुड़ जी और उनके साथ नाना प्रकार के पक्षी हैं। श्री रामचरितमानस जी में ऐसा लिखा है, झुंड के झुंड पक्षी कागभूसुंडी सरोवर में आए।आज भी हिमालय में काग भूसुंडी  सरोवर है, और कागभुसुंडि जी आज भी कथा सुनाते हैं और नाना प्रकार के पंछी कथा सुनते हैं। श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी वर्णन करते हैं कि काग भूसुंडी जी को कैसे श्राप मिला और क्यों ?   Summary(सारांश) “तुलसीदास के ‘श्रीरामचरितमानस’ में चार घाटों का वर्णन है। प्रत्येक घाट पर एक वक्ता और एक श्रोता होते हैं, जो भगवान श्रीराम के चरित्र को चित्रण करते हैं। शरणागति घाट पर गोस्वामी तुलसीदास वक्ता है, कर्मकांड घाट पर श्री याज्ञवल्क्य, ज्ञान घाट पर भगवान शिव, और भक्ति घाट पर श्री कागभूसुंडी वक्ता होते हैं। इन घाटों में भगवान के चरित्र और भक्ति के महत्व का विवेचन होता है। इनमें से प्रत्येक घाट का अपना विशेष महत्व होता है और वह भगवान के भक्तों को मार्गदर्शन करते हैं।” Question and answer(प्रश्न और उत्तर) प्रश्न: शरणागति घाट में किसे वक्ता और श्रोता के रूप में प्रस्तुत किया गया है? उत्तर: शरणागति घाट में गोस्वामी तुलसीदास वक्ता होते हैं और श्रोता गंगा मैया, संत समाज और उनका निजी मन होता है। प्रश्न: कर्मकांड घाट का मुख्य संदेश क्या है और यह किस घाट पर है? उत्तर: कर्मकांड घाट का मुख्य संदेश है कर्म का महत्व और कैसे कर्म करना चाहिए। इस घाट पर श्री याज्ञवल्क्य वक्ता होते हैं और श्री भारद्वाज जी उनके श्रोता होते हैं। प्रश्न: ज्ञान घाट क्यों कहलाता है और इसमें कौन वक्ता और श्रोता होते हैं? उत्तर: ज्ञान घाट को इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें भगवान शिव वक्ता होते हैं और उनका श्रोता माता पार्वती होती है। यहां भगवान शिव ज्ञान की महत्वपूर्ण बातें बताते हैं। प्रश्न: भक्ति घाट के वक्ता और श्रोता कौन होते हैं और क्या कथा सुनाई जाती है? उत्तर: भक्ति घाट में वक्ता काग भूसुंडी जी होते हैं और श्रोता श्री गरुड़ जी होते हैं, जिनके साथ नाना प्रकार के पक्षी होते हैं। इस घाट में काग भूसुंडी जी की कथा सुनाई जाती है।

कैसे शिवजी के द्वारा श्री रामचरितमानस का नामकरण हुआ (Ramcharitmanas was named)

"शिवजी की प्रेरणा से तुलसीदास ने 'श्री रामचरितमानस' का नामकरण किया।"

  “शिवजी के द्वारा श्री रामचरितमानस का नामकरण: एक महत्वपूर्ण क्षण”(Ramcharitmanas was named) तुलसीदास जी ने भगवान शिवजी की प्रेरणा से श्री रामचरितमानस की रचना की । भगवान शिवजी ने ही इस ग्रंथ की रचना कराई है, तुलसीदास जी कहते हैं – रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥ भगवान भोलेनाथ ने रामचरितमानस की रचना करके अपने मन में रखा और समय आने पर माता पार्वती को सुनाया। भगवान राम का वह चरित्र जो भगवान भोलेनाथ के मानस से निकला है,  इसलिए इसका नाम श्री रामचरितमानस रखा गया। मानस को यदि समझना है तो यह जानने का प्रयास करिए की कौन कह रहा है और किससे कह रहा है । तुलसीदास जी ने मानस में बहुत कम कहा है। जब जब गोस्वामी जी ने कहा है एक ही बात कही है:- “महा मंद मन सुख च हसी ऐसही प्रभहू विशाद” पूज्य गोस्वामीतुलसीदास जी जब भी बोलते हैं एक ही बात बोलते हैं। हे मंदमति भगवान की शरण में चल- भगवान की शरण में चल । गोस्वामी शरणागति घाट के वक्त है ।कैसे श्री रामचरितमानस में चार घाट बताएं हैं? summary(सारांश) भगवान भोलेनाथ की प्रेरणा से तुलसीदास ने ‘श्री रामचरितमानस’ की रचना की। भगवान शिवजी ने इस ग्रंथ की रचना की और उसे अपने मन में रखा। फिर वह ग्रंथ माता पार्वती को सुनाया, जिसका नाम ‘श्री रामचरितमानस’ रखा गया। यह भी कहा गया है कि तुलसीदास ने मानस में बहुत कम कहा है और उन्होंने शरणागति की महत्वपूर्ण बात को उजागर किया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ में चार घाटों का उल्लेख किया है। Question and Qnswer(प्रश्न और उत्तर) उत्तर: श्री रामचरितमानस का नामकरण तुलसीदास जी ने किया था, जो कि भगवान शिवजी की प्रेरणा से हुआ था। 2. श्री रामचरितमानस का नामकरण कैसे हुआ था? उत्तर: भगवान भोलेनाथ ने श्री रामचरितमानस की रचना करके अपने मन में रखा और फिर समय आने पर माता पार्वती को सुनाया। इसलिए इस ग्रंथ का नाम ‘श्री रामचरितमानस’ रखा गया। 3. तुलसीदास जी ने ‘मानस’ में किस बारीकी से कुछ कहा था? उत्तर: तुलसीदास जी ने ‘मानस’ में बहुत कम कहा था और वे शरणागति की महत्वपूर्ण बात को उजागर किया था। उन्होंने गोस्वामी शरणागति घाट के वक्त होने का उल्लेख किया है।

श्री रामचरितमानस रचना (Ramcharitmanas | Ramayan)

श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना

Creation of Shri Ramcharitmanas| Ramayan श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना तुलसीदास जी के द्वारा कैसे हुई? श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना संवत्1631 में चैत्र नवमी, दिन मंगलवार को  तुलसीदास जी के द्वारा की गई थी । तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानस को दिनभर संस्कृत में लिखते औरअगले दिन सुबह सब मिट जाता , ऐसा 7 दिनों तक चला, दिनभर लिखते और रात को मिट जाता । 7 वे दिन तुलसीदास जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शन दीया और बाबा (भगवान शिव) ने कहा आप श्रीरामचरितमानस को संस्कृत में ना लिखिए गांव की भाषा में लिखिए। “क्यों?” आने वाले समय में संस्कृत समझना सबके बस की बात नहीं रह जाएगी। इसीलिए ऐसी भाषा में लिखिए जो ना पढ़ा लिखा हो वह भी पढ़ पाए। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की रचना अवधि में की। रामचरितमानस की रचना पूर्ण हो गई, काशी के विद्वत परिषद के लोग बोले यह ग्रंथ नहीं हो सकता,  क्योंकि यह गांव की भाषा में लिखा है और ग्रंथ तो संस्कृत में होते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी बोले मैंने लिखा नहीं लिखवाया गया है और ओर किसी ने नहीं स्वयं भगवान विश्वनाथ (शिव) ने कहा है लिखने के लिए । तो ब्राह्मणों ने कहा हम कैसे मान लें, गोस्वामी जी बोले निर्णय बाबा विश्वनाथ करेंगे । विश्वनाथ जी के मंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखा गया उनके ऊपर 18 पुराण चारों वेद रखे गए , रखकर के विश्वनाथ जी के चारों द्वार बंद कर दिए गए । रात भर गोस्वामी जी मंदिर के बाहर रोते रहे , जब सुबह भगवान विश्वनाथ की मंगला आरती करने के लिए मंदिर के कपाट खोले गए, तो ब्राह्मणों ने “क्या” देखा श्रीरामचरितमानस जी सबसे नीचे रखे गए थे वह सबसे ऊपर आ गए थे । उसी पर भगवान शिव का हस्ताक्षर था। मानस के प्रथम पर पृष्ठ पर भगवान शिव ने लिखा “सत्यम शिवम सुंदरम”इस शब्द का जन्म ही वहीं पर हुआ। भगवान शिव ने कहा जो भी इसमें लिखा है वही सत्य है। शिवम का अर्थ है “कल्याण” , यही मानव जाति का कल्याण है और “सुंदरम” यही भगवान शिव की सबसे सुंदर कथा है ।भगवान शिव ने ही श्री रामचरितमानस की रचना कराई है क्यों और कैसे? सारांश(summary) “श्रीरामचरितमानस” की रचना तुलसीदास जी द्वारा बड़े अनूठे तरीके से हुई थी। संवत् 1631 में चैत्र नवमी, मंगलवार को इस ग्रंथ की रचना हुई थी। तुलसीदासजी ने इसे दिनभर संस्कृत में लिखते और फिर अगले दिन सुबह सब मिटा देते, इस प्रक्रिया को 7 दिनों तक चलाया, दिनभर लिखते और रात को मिटाते थे। 7 वें दिन, तुलसीदास जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शन दिया और उन्होंने बाबा (भगवान शिव) के सुझाव पर इस ग्रंथ को संस्कृत में नहीं, बल्कि गांव की भाषा में लिखने का निर्णय लिया। इसका मुख्य कारण था कि आने वाले समय में संस्कृत को सबके बस की बात नहीं रहेगी, और इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने भाषा को इतने सरल और सामान्य बनाया कि हर कोई इसको समझ सके। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ की रचना अवधि में की, और इसे काशी के विद्वत परिषद के सदस्यों ने बाधित किया क्योंकि यह ग्रंथ गांव की भाषा में था। हालांकि, भगवान विश्वनाथ के मंदिर में इसे सबसे ऊपर रखकर इसे स्वीकार किया गया और इसके परे उनके हस्ताक्षर से “सत्यम शिवम सुंदरम” शब्द प्रकट हुआ, जो इस ग्रंथ की महत्ता को प्रमाणित करता है। इस ग्रंथ में भगवान शिव ने कहा कि इसमें लिखा सब सत्य है और यह मानव जीवन के कल्याण का स्रोत है।” प्रश्न और उत्तर (Question and Answer) Q1: श्री रामचरितमानस (Ramcharitmanas) की रचना कब और किस दिन हुई थी? A1: श्री रामचरितमानस की रचना संवत् 1631 में चैत्र नवमी, दिन मंगलवार को तुलसीदास जी द्वारा की गई थी। Q2: तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस को कैसे लिखा? A2: तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस को दिनभर संस्कृत में लिखते और अगले दिन सुबह सब मिट जाता, इस प्रक्रिया को 7 दिन तक चलाई, दिनभर लिखते और रात को मिटाते थे। Q3: भगवान शिव और माता पार्वती ने तुलसीदास जी से श्रीरामचरितमानस को किस भाषा में लिखने की सलाह दी? A3: भगवान शिव और माता पार्वती ने तुलसीदास जी से श्रीरामचरितमानस को गांव की भाषा में लिखने की सलाह दी, क्योंकि आने वाले समय में संस्कृत को सबके बस की बात नहीं रहेगी। Q4: कैसे तुलसीदास जी ने भगवान शिव के संदर्शन में श्रीरामचरितमानस को प्रस्तुत किया? A4: तुलसीदास जी ने भगवान शिव के मंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखवाया और उनके ऊपर 18 पुराण और चारों वेद रखे गए। रात भर उन्होंने मंदिर के बाहर रोते रहा। सुबह भगवान विश्वनाथ की मंगला आरती के समय, जब मंदिर के कपाट खुले, तो श्रीरामचरितमानस जी सबसे ऊपर आ गए और उस पर भगवान शिव का हस्ताक्षर था। Q5: भगवान शिव ने श्रीरामचरितमानस के सन्दर्भ में क्या कहा? A5: भगवान शिव ने श्रीरामचरितमानस के सन्दर्भ में कहा, “सत्यम शिवम सुंदरम” जिसका अर्थ है “कल्याण” और “सुंदर कथा” है, और इसे वही सत्य है।  

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