इंद्र के पुत्र और श्रीराम की कथा

इंद्र के पुत्र और श्रीराम की कथा

इंद्र के पुत्र जयंत ने लिया श्रीराम से बैर एक बार इंद्र के पुत्र ने श्रीराम से बैर ले लिया। चित्रकूट में एक अद्भुत घटना घटी राम जी के मन में भाव आया। क्यों ना पुष्प के आभूषण बनाकर जानकी का श्रृंगार किया जाए। तो राम जी अपने हाथों से ही फूलों का आभूषण बनाने लगे। बाल के लिए गजरा बनाया, गले के लिए हर बनाया और कानों के लिए कारण फूल बनाये, हाथ के लिए कंगन और बाजूबंद बनाएं। कमर के लिए करधनी बनाई पांव के लिए पायल बनाएं और आदर पूर्वक प्रभु ने मैया का श्रृंगार किया। देवता ऊपर से देखने आए। उसमें इंद्र का बेटा था जयंत। जयंत के मन में भाव आया, यह भगवान नहीं है। क्या भगवान कभी अपनी पत्नी को सजाते हैं। जयंत कहता है मैं इनकी भुज के बाल का पता लगाऊंगा। जयंत ने कौवे का रूप धारण किया और आकर मां जानकी के पैरों में चोच मार दि। यहां मां ने प्रभु को कुछ नहीं बताया क्योंकि मां जानती हैं की प्रभु इसके प्राण ले लेंगे। मां ने क्षमा कर दिया, परंतु रक्त बहते हुए प्रभु श्री राम के पास पहुंच गया। प्रभु कुशा की चटाई पर बैठे थे। प्रभु जीस चटाई पर बैठे थे उसी से दो कुश निकली। एक को झुका कर धनुष बनाया और दूसरे को ब्रह्मास्त्र के मंत्र से अभिमंत्रित करके राम जी ने जयंत के पीछे छोड़ दिया। ब्रह्मास्त्र को देखकर जयंत अपने स्वरूप में आकर अपने पिता की ओर भाग और जाकर त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगा, पिताजी मुझे बचा लीजिए। तभी देवराज इंद्र ने पूछा क्या किया है तुमने। जयंत बोला मैंने कौवे का रूप धारण करके मां सीता के पैरों में चोंच मार दी है। और राम जी ने मेरे ऊपर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया है। इतना सुनकर देवराज इंद्र ने उसे अपने द्वारा से भगा दिया। पंहुचा ब्रह्मा जी के पास, ब्रह्मा जी ने भी अपने द्वारा से जयंत को लौटा दिया। पंहुचा कैलाश शंकर भगवान के पास शंकर भगवान ने क्रोध में आकर जयंत को वहां से भी भगा दिया। तीन लोक और 14 भवन जयंत भागता रहा है। इस समय इंद्र के पुत्र जयंत पर नारद जी की दृष्टि पड़ी। नारद जी ने पूछा क्यों भाग रहे हो। नारद जी मुझेसे आज बहुत बड़ी भूल हो गई। मैंने मां जानकी के पैरों में चोच मार दी है। मैंने अभिमान में आकर इतनी बड़ी गलती कर दी। नारद जी कहते हैं, अरे मूर्ख सब मरते हैं तो राम जी बचते हैं तुझे तो राम जी ने ही मारा है तुझे कौन बचाएगा। अगर तू राम जी की शरण में चला जाएगा तो यह ब्रह्मास्त्र तेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा, तू वापस चला जा। नारद जी ने इंद्र के पुत्र जयंत को भगवान के पास भेज दिया। जयंत जाकर भगवान के चरणों में गिर गया और रो-रोकर कहने लगा। प्रभु श्री राम पूछते हैं, अब क्यों आए हो। तभी जयंत कहता है, प्रभु मुझे बहुत बड़ी भूल हो गई है। मैंने अपने अभिमान में आकर यह सब किया है। तभी श्रीराम पूछते हैं तो अब क्यों आया है पहले आपका बाल देखने आया था। अब आपकी करुणा देखने आया हूं। हे करुणा निधान मुझे क्षमा कर दीजिए। जयंत का अपराध इतना बड़ा था कि उसके प्राण ले लिए जाएं। परंतु प्रभु ने एक आंख निकाल कर क्षमा कर दिया। और एक आंख क्यों निकली ताकि ब्रह्मास्त्र की महिमा काम ना हो ब्रह्मास्त्र विफल न हो। उसके पश्चात प्रभु श्री राम ने पंचवटी के लिए प्रस्थान किया है। Summary जयंत ने श्रीराम से अपराध किया जब उन्होंने मानवीय स्वभाव के बारे में गलत धारणा की। श्रीराम ने सीता को सजाने के लिए फूलों से आभूषण बनाया था, जो जयंत को गलत लगा। उसने कौवे के रूप में उपर्युक्त सीता के पैरों में चोंच मारा। इस पाप के बाद, उसे भगवान श्रीराम का ब्रह्मास्त्र से भयानक संघर्ष करना पड़ा, जिससे वह तीनों लोकों से भागना पड़ा। नारद जी के संदेश के बाद, जयंत ने अपनी गलती को स्वीकार किया और भगवान श्रीराम के पास गया। वहां उन्होंने क्षमा मांगी और भगवान ने उसे क्षमा की। Question and Answer प्रश्न 1: कौन-कौन से भाव जयंत को अपनी गलती की समझ में लाने में सहायक हुए? उसके कैसे अहंकार और अभिमान ने उसकी जिंदगी को प्रभावित किया? उत्तर: जयंत ने अहंकार में गलती की, लेकिन श्री राम ने क्षमा की और उसे बचा लिया। यह कहानी अहंकार की अहमियत और क्षमा के महत्त्व को दर्शाती है। प्रश्न 2: प्रमुख संदेश क्या है इस कहानी में? उत्तर: यह दिखाता है कि क्षमा और अहंकार के बीच अन्तर कितना महत्त्वपूर्ण है। प्रश्न 3: जयंत की गलती से क्या सीखा जा सकता है? उत्तर: जयंत ने अपने अहंकार की वजह से गलती की, जो उसे प्राणों की भी संदेह में डाल दिया। यह दिखाता है कि अहंकार से होने वाली गलती कितनी घातक हो सकती है। प्रश्न 4: श्री राम ने जयंत के प्रति कैसी क्षमा दिखाई? उत्तर: श्री राम ने जयंत की गलती को माफ किया और उसे बचा लिया, जिससे कि वह अपने अहंकार की सजा से बच सके। प्रश्न 5: इस कहानी से हमें क्या सिखना चाहिए? उत्तर: यह कहानी हमें यह बताती है कि हमारे अहंकार और अपराधों के लिए हमें क्षमा की आवश्यकता होती है और क्षमा किया जाना चाहिए।

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