श्रीराम का चित्रकूट प्रवेश एवं दशरथ जी का मरण

श्रीराम का चित्रकूट प्रवेश एवं दशरथ जी का मरण

श्री राम का चित्रकूट में प्रवेश चित्रकूट में रहने के लिए प्रभु श्री राम ने वाल्मीकि जी से आज्ञा ली। प्रभु श्री राम के निवास के निर्माण हेतु सारा देव समाज विश्वकर्मा जी के साथ कोल और भील के वेश में पृथ्वी पर अवतरित हुआ। देवताओं ने दो कुटिया बनाई, एक बड़ी कुटिया श्री राम जी के लिए और उसी के सामने एक छोटी कुटिया लक्ष्मण जी के लिए। प्रभु श्री राम चित्रकूट में रहने लगे। मुनि लोग आए आशीर्वाद देकर गए। चित्रकूट के सारे कोल और भील भगवान से मिलने आए। और कहते हैं प्रभु हम सब अपने आप को धन्य मानते हैं कि आपका हमें दर्शन प्राप्त हुआ। सभी कहते हैं प्रभु आप डरिए मत हम सब आपको उदास नहीं रहने देंगे। इस वन का पग-पग हमें देखा हुआ है हम आपको रोज घूमने ले चलेंगे। राम जी कहते हैं मुझे डर तो बहुत लग रहा था, पर अब आप लोग हैं तो मुझे कोई कोई भय नहीं है मैं अब आनंद से रहूंगा। सभी कोल और भील कहते हैं, प्रभु हम सह परिवार आपके सेवक हैं। अगर मध्य रात्रि में भी कोई आदेश हो तो संकोच मत कीजिये गा। यहां शिवजी ने सूत्र दिया है कि राम जी को केवल प्रेम प्रिया है। चित्रकूट में रहने वाले कोल और भील को भगवान ने अनेक प्रकार से संतुष्ट किया और विदा किया है। यहां गोस्वामी जी कहते हैं, मेरे प्रभु श्री राम इस प्रकार रह रहे हैं, जिस प्रकार स्वर्ग में देवराज इंद्र अपनी पत्नी सूची और पुत्र जयंत के साथ रहते हैं। श्री राम के वियोग में दशरथ जी ने प्राण त्यागे सुमंत जी तमसा नदी के किनारे पहुंचे और रात्रि में अयोध्या में प्रवेश किया। सुमंत जी कहते हैं, मैं कैसे अयोध्या वासियों को अपना मुख दिखाऊंगा। रथ को ले जाकर कौशल्याजी के महल के सामने खड़ा किया। सुमंत जी गए मां कौशल्या के भवन में, जाकर चक्रवर्ती जी का दर्शन किया। सुमंत जी ने महाराज के चरणों में दंडवत किया। महाराज को चेतना आई सुमंत जी को हृदय से लगा लिया। महाराज सुमंत जी से कहते हैं, हे मेरे सखा राम कुशल तो है ना। मैंने कहा था वापस ले आना, तुम तो दिख रहे हो लेकिन राम नहीं दिख रहा है। वापस आए हो या बन में छोड़ आए हो। सुमंत जी के नेत्रों से अश्रु निकलने लगे। महाराज समझ गए की राम नहीं आए। महाराज के सारे अंग शिथिल हो गए। कौशल्या जी ने देखा, देखकर महाराज के चरण पकड़ लिए और कहती हैं। महाराज राम के वियोग रूपी सागर में अयोध्या एक जहाज की तरह डोल रही है, और सारा परिवार उस पर सवार है। और उसकी नाभिक आप हैं, धैर्य धारण करिए प्रभु। महाराज कहते हैं कौशल्या आज मुझे धैर्य नहीं उन अंधे माता-पिता का श्राप याद आ रहा है। श्रवण कुमार के माता-पिता ने मुझे श्राप दिया था, कि जिस प्रकार पुत्र के वियोग में हम मर रहे हैं, दशरथ इस प्रकार तुम भी मारोगे। चक्रवर्ती जी ने छह बार राम नाम का स्मरण किया और देवलोक को चले गए। माताएं जाकर विलाप करने लगी। प्रातः काल गुरुदेव भगवान आए और ज्ञान उपदेश किया। महाराज के पार्थिव शरीर को नाव में तेल भरकर उसमें रखकर सुरक्षित किया गया। गुरुदेव भगवान ने दूतों को बुलाकर आदेश दिया और कहा कि भरत जी के ननिहाल जाकर कहना गुरुदेव भगवान ने याद किया है। पहुंचे भरत जी के पास और सूचना दी, आपको गुरुदेव ने याद किया है। भरत जी उसी दशा में अयोध्या के लिए चल पड़े। जब अयोध्या में प्रवेश किया, भारत की देखते हैं कि आज अयोध्या ऐश्वर्या रहित दिख रही है। सारी प्रजा दुखी दिख रही है। भरत की सबसे पहले अपनी मां कैकई के पास गए। द्वार पर कैकई मैया ने भारत जी का स्वागत किया, आरती उतारी, दुलार किया भीतर लेकर गई। और बिठाकर पूछा भरत मामा के घर से कुशल है ना। भरत जी बोले वहां तो सब कुशल है। मेरे घर में सब कुशल है ना। मां कैकई कहती हैं भारत कुशल तो मैंने सब कर लिया था। मंथरा ने मेरी बड़ी सहायता की, पर ब्रह्मा जी ने एक बात बिगाड़ दी अचानक आपके पिताजी नहीं रहे। भारत जी ने कारण पूछा। मां कैकई ने सारी बातें बताई। भारत जी खुद को कोसने लगे, के नाम में जन्म लेता और ना मेरी मां मुझे राजा बनाने का सपना देखती, और न राम जी बन जाते। भरत की मां कौशल्या के पास गए। मां कौशल्या ने गोद में बिठाकर भरत जी को दुलार किया। भरत जी ने मां की मांग को देखकर विलाप करते हुए कहा मेरे से अभागा पुत्र और कोई नहीं होगा। विलाप करते-करते रात्रि बीती। प्रातः काल गुरुदेव भगवान ने महाराज के लिए चंदन की लकड़ी की चिता बनवाई और गुरुदेव की आज्ञा से, भारत जी ने महाराज की चिता को अग्नि दी और श्राद्ध कर्म से निवृत हुए। गुरुदेव भगवान ने भरत जी को अनेकों प्रकार से राज्य सत्ता संभालने के लिए कहा। परंतु भरत जी अपने आप को पापी कहकर राजसत्ता को अपने से मना कर दिए। और कहते हैं, कि मेरे कारण मेरे पिताजी नहीं रहे। मेरे भैया वन चले गए। तो सोचिए अगर मैं राज सिंहासन पर बैठूंगा, तो यह पृथ्वी रसातल में चली जाएगी। भारत जी कहते हैं मैं कल प्रातः काल मेरे भैया से मिलने जाऊंगा। Summary   श्री राम ने वाल्मीकि जी से चित्रकूट में रहने की अनुमति प्राप्त की। उन्होंने सारा देव समाज के साथ कोल और भील के वेश में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने निवास का निर्माण किया। वहां उन्होंने दो कुटियों का निर्माण किया, जिसमें वे और उनके भाई लक्ष्मण रहने लगे। वहां उन्हें अनेक मुनियों और समाज के लोगों का स्वागत मिला, जो उन्हें आशीर्वाद देकर और सेवा करके खुश किया।  राम के वियोग की घटना, दशरथ जी की मृत्यु, और भरत जी के अयोध्या में पहुंचने का वर्णन है। भरत जी को अपने भाई की वियोग की दुःखद जानकारी मिली और उन्होंने राजसत्ता को नकारा। Question and Answer   प्रश्न: श्री राम ने चित्रकूट में कैसे प्रवेश किया था और वहाँ कैसा रहा? उत्तर: श्री राम ने वाल्मीकि जी

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