रामजी द्वारा अहिल्या का उद्धार

रामजी द्वारा अहिल्या का उद्धार

रामजी और विश्वामित्र जी मिलन राम जी और विश्वामित्र जी की कथा बाबा माता को सुनते हैं, और कहते हैं। महाराज गांधी के पुत्र विश्वामित्र जी है। विश्वामित्र जी मन में चिंतित हैं, कि यह पापी मारीच और सुवाहु कैसे मरेंगे। मन में भाव आया। क्यों ना भगवान को मांग कर लाया जाए। पहुंचे अयोध्या, दशरथ जी ने खूब आदर सत्कार करके पूछा-केहि कारन आगमन तुम्हारा। कहहु सो करत न लावउँ बारा॥ कहिए मुनिवर किस कारण आए हैं। आप कहने मैं विलंब कर रहे हैं। मैं करने में नहीं करूंगा। विश्वामित्र जी ने कहा, असुर मुझे सता रहे हैं। इसलिए मैं आपसे कुछ मांगने आया हूं। महाराज अनुज समेत देहु रघुनाथा। निसिचर बध मैं होब सनाथा॥ छोटे भाई के साथ मुझे रघुनाथ जी दे दीजिए। वह सभी निशाचारों को खत्म कर देंगे। विश्वामित्र जी ने जैसे ही महाराज से राम जी को मांगा, महाराज का चेहरा उतर गया। महाराज ने कहा मांगने को कहा था तो क्या कुछ भी मांग लोगे। आपको मांगने का ढंग नहीं है। भूमि मांगिए, कोश मांगिए , गाय मांगिए, प्राण मांगेगा तो प्राण दे दूंगा। लेकिन राम को नहीं दूंगा। गुरु वशिष्ठ जी ने समझाया, महाराज राम को मैंने शिक्षा दे दी है। अब आयुध की शिक्षा विश्वामित्र जी देंगे विदा करिए। महाराज ने दोनों पुत्रों को विदा किया। बक्सर की ओर चले, बक्सर में नाटक वन है। जहां ताड़का राक्षसी रहती है। और तड़का को पहले से पता है की विश्वामित्र जी हमारा वध करने के लिए किसी को लेने गए हैं। और तड़का घात लगाकर बैठी है। जब ताड़का के कानों में रामजी और विश्वामित्र जी की आवाज पहुंची। तो तड़का ने विकराल रूप धारण करके दौड़ी। प्रभु ने अमोघबाण निकाल और चलाया। एक ही बाण मैं ताड़का को समाप्त कर दिया। भगवान ने कहा आप निर्भय होकर यज्ञ कीजिए। यज्ञ प्रारंभ हुआ रामजी और लक्ष्मण जी यज्ञ में पहरे में खड़े हो गए। मारीच और सुवाहु यज्ञ को देख कर दौड़े आसुरी सेना लेकर। मारीच को भगवान ने बिना वान के फर से मारा और 100-योजन दूर गिराया। और सुवाहु को अग्निबाण से भस्म कर दिया और जितने निशाचर थे। उन्हें लक्ष्मण जी ने एक ही वान में समाप्त कर दिया। उसके पश्चात मिथिला में धनुष यज्ञ देखने के लिए विश्वामित्र जी ने राम जी और लक्ष्मण जी को लेकर चले। मार्ग में भगवान ने अहिल्या जी का उद्धार किया। । इसके साथ ही वे मिथिला पहुंचते हैं और घटनाओं का नया अध्याय शुरू होता है। अहिल्या जी महर्षि गौतम की पत्नी है महर्षि गौतम ने उन्हें श्राप देकर पत्थर का बना दिया था। विश्वामित्र जी रामजी से कहते हैं। राम जी आपकी चरण रज से ही इनका उद्धार होगा। राम जी ने चरण रज का स्पर्श कराया। जो अहिल्या जी पत्थर की थी वह चैतन्य हो गई। फिर भगवान से वरदान मांगा और चरणों में नमन किया। और अपने पति के साथ अपने लोग गई। और फिर भगवान ने गंगा स्नान किया और मिथिला में प्रवेश करते हैं।  Summary रामजी और विश्वामित्रजी की कहानी में यह वर्णन है कि कैसे रामजी और लक्ष्मण ने असुरों को नष्ट किया। विश्वामित्रजी के साथ उनकी यात्रा में कैसे वे अहिल्या का उद्धार करते हैं। वे ताड़का के साथ भी भिड़ते हैं और अन्य कई घटनाओं में भी शामिल होते हैंQuestion and Answer   प्रश्न: विश्वामित्र ने महाराज दशरथ के पास क्यों जाने का फैसला किया था, और उन्होंने राजा से क्या माँगा था? उत्तर: विश्वामित्र ने महाराज दशरथ को परेशानी के साथ यह समझाया कि दुष्ट आत्माओं मारीच और सुबाहु को कैसे समाप्त किया जाए। उन्होंने दशरथ से राम को लेने की अनुमति मांगी ताकि वे इन दुष्ट शक्तियों को नष्ट कर सकें। प्रश्न: राम और लक्ष्मण ने ताड़का के साथ मौजूदा स्थिति को कैसे सुलझाया? उत्तर: ताड़का के क्षेत्र में पहुंचते ही, जब वह भयानक संकल्प के साथ नजर आई, तो राम ने उन्हें बेहद कुशलता से एक तीर लगाया और उन्हें नष्ट कर दिया, इससे उसकी खतरा समाप्त हो गई।   प्रश्न: मारीच और सुवाहु के साथ यज्ञ संबंधित हुए घटनाक्रम का क्या था? उत्तर: जब यज्ञ की प्रारंभिक दृश्य में मारीच और सुवाहु ने आक्रमण किया, तो राम ने मारीच को एक वान  से गिराया और सुवाहु को अग्निबाण से भस्म कर दिया। राम और लक्ष्मण ने उन निशाचरों को भी एक ही वान में समाप्त कर दिया।      

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