श्रीराम रावण युद्ध

श्रीराम रावण से युद्ध कर मुक्ति प्रदान की श्रीराम रावण से युद्ध हेतु लंका के मुख्य द्वार पर पहुंचे पुरी सेना को चार टुकड़ियों में विभाजित किया। और लंका के चारों ओर से आक्रमण किया। पहले दिन ही रावण की आदि सेना को मार दिया गया। दूसरे दिन मेघनाथ के द्वारा चलाई गई शक्ति लक्ष्मण जी को लगी और हनुमान जी ने लक्ष्मण जी के लिए सजीवन बूटी लेकर आए। और फिर लक्ष्मण जी मुर्छा से बाहर आए। तीसरे दिन रावण ने कुंभकरण को जगाया। कुंभकरण जागते ही रावण पर बिखर पड़ा। कुंभकरण कहता है मूर्ख रावण तुमने सीता का नहीं स्वयं जगदंबा का हरण किया है। और तू सोचता है किस तेरा कल्याण हो जाएगा। कुंभकरण कहता है तूने भगवान से बेर ले लिया है। तेरे कारण आज मैं प्रभु से युद्ध करूंगा और इस संसार से मुक्ति पा लूंगा। चौथे दिन प्रभु श्री राम के कहने पर लक्ष्मण जी ने मेघनाथ को मुक्ति प्रदान की है। प्रभु ने सभी निशाचारों को मुक्ति प्रदान कर अपने-अपने धाम भेजा। अंत में रावण युद्ध के लिए आया, प्रभु श्रीराम रावण का कई दिनों तक युद्ध चला। प्रभु नित्य इसके सिर और भुज को काटते और रावण की नई सर और भुजाएं आ जाती। अंतिम दिन जब रावण युद्ध के लिए अपनी कुलदेवी निकुंबला के पूजन के लिए गया। तो रावण ने देखा कुलदेवी की आंखों से रक्त के अश्रु बह रहे हैं। रावण समझ गया आज उसका अंतिम दिन है। उसके पश्चात रावण ने भगवान शिव का पूजन किया। चला रणभूमि की ओर प्रभु श्री राम से युद्ध करने। श्रीराम रावण का युद्ध होने लगा तभी विभूषण जी कहते हैं प्रभु इसकी नाभि में अमृत है। आप इसकी नाभि पर तीर चलाइए। प्रभु श्री राम ने अपने सारंग पर 31 वाण साधे और रावण की ओर चलाएं। 20 बानो ने रावण की 20 भुजाओं को काटा। और 10 बानो ने रावण के दसों सर को काटा। और 31 वा वाण जाकर उसकी नाभि में लगा। जोर से चिल्ला कर कहा, “कहां है राम उसे रणभूमि में दौड़ा-दौड़ा कर मारूंगा” और मरते समय रावण के मुख से राम नाम निकला और वह मुक्त हो गया। और उसका तेज प्रभु के मुख में प्रवेश कर गया। तभी ब्रह्मा शंकर आकाश से पुष्प वर्षा करने लगे। श्री राम जी के उपदेश अनुसार विभीषण जी ने रावण की अंतिम क्रिया की और प्रभु श्री राम ने उसे मुक्ति प्रदान की। प्रभु श्री राम के आदेश अनुसार सुग्रीव जी और लक्ष्मण जी ने लंका में प्रवेश कर विभीषण जी का राज्य तिलक किया और उन्हें लंका का राजा घोषित किया। विभीषण जी ने सम्मान से सीता जी को प्रभु श्री राम को लौटा दिया। सभी कपियो ने माता का दर्शन कर अपना जीवन कृतार्थ किया। अपनी परीक्षा कर अग्नि से मां सीता को वापस लाए हैं। उसके बाद प्रभु ने इंद्र से कहकर अमृत की वर्षा करवाई और जो कपि युद्ध में मारे गए थे वह पुनः जीवित हो गए। पुष्पक विमान में बैठकर राज्याभिषेक के लिए अयोध्या लौटे हैं। Summary रामायण महाकाव्य का यह भाग, श्रीराम रावण के बीच हुए युद्ध का वर्णन करता है जो धर्म और न्याय की विजय को प्रतिष्ठित करता है। यहाँ पर राम ने धर्म के पथ पर चलते हुए असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत की। रावण का अंत, उसकी गलतियों का अहसास, और उसकी अंतिम क्षमा की भावना को दर्शाया गया है। यहाँ पर रामायण के प्रमुख संदेशों में से एक है कि बुराई को पराजित करने के लिए सत्य और धर्म का पालन करना आवश्यक होता है। इससे पाठकों को जीवन में सही मार्ग का पालन करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। Question and Answer प्रश्न: श्रीराम रावण के युद्ध में क्या हुआ था? उत्तर: श्रीराम ने रावण से युद्ध किया था। युद्ध के दौरान, पहले दिन सेना ने लंका की ओर से आक्रमण किया और रावण की प्रमुख सेना को मार दिया। दूसरे दिन मेघनाथ ने लक्ष्मण को शक्ति से लगाया था, जिसे ठीक करने के लिए हनुमान ने सजीवनी बूटी लाई थी। फिर रावण ने कुंभकर्ण को जगाया, जिसने रावण को सीता का अपहरण करने की गलती बताई। अंत में, श्रीराम ने रावण को मारकर समाप्ति दी और सभी निशाचरों को मुक्ति प्रदान की। प्रश्न: रावण का अंत कैसे हुआ? उत्तर: रावण का अंत उसके युद्ध में हुआ। श्रीराम रावण की नाभि में तीर चलाते हैं और उसकी भुजाओं और सिर को काट दिया। जब रावण अंतिम समय में था, तो उसके मुख से ‘राम’ नाम निकला और उसका तेज प्रभु श्रीराम के मुख में प्रवेश किया। वहाँ से ब्रह्मा और शंकर ने पुष्प वर्षा की और श्रीराम ने रावण को मुक्ति प्रदान की।