श्रीराम का हनुमान और महाराज सुग्रीव से मिलन

महाराज सुग्रीव हनुमान संवाद महाराज सुग्रीव से मित्रता हेतु भगवान ऋषि मुख पर्वत के निकट आए। इसी ऋषिमुख पर्वत पर सुग्रीवजी महाराज रहते हैं। उन्होंने स्वयं को राजा घोषित कर दिया है, और अपना एक मंत्रिमंडल का गठन कर लिया है। जिसमें हनुमानजी भी हैं। सुग्रीवजी ने दूर से राम जी और लक्ष्मण जी को दिखा तो सोचने लगे की कहि इन दो पुरुषों को बाली ने मुझे मारने के लिए तो नहीं भेजा है। सुग्रीवजी ने हनुमानजी को बुलाया और कहा आप बटुक का रूप धारण करके जाइए और उनसे पूछिए कि वह किस हेतु से यहां पर आए हैं। और आपको लगे कि वह दोनों मुझे मारने आ रहे हैं, तो आप नीचे से ही मुझे सूचना दे दीजिएगा मैं तुरंत भाग जाऊंगा। हनुमानजी ब्राह्मण का रूप धारण करके भगवान के सामने गए जाकर प्रणाम किया, और पूछा आप कौन हैं? हनुमानजी बोले आपके पांव कोमल है। धारा कठोर है क्या कारण है? कि आप यह कठोर धूप शीत सहन कर रहे हैं। शरीर के अंग बता रहे हैं कि आप क्षत्रिय है। परंतु आपका वेश मुनियों जैसा है। आप हैं कौन ब्रह्मा, विष्णु, महेश में से कोई है, या ब्रह्मा नारायण में से कोई है। और यदि नर नारायण नहीं है तो क्या पूरे जगत के नियंता ब्रह्म है। कौन है आप? प्रभु कहते हैं, हम चक्रवर्ती सम्राट दशरथ जी के पुत्र राम लक्ष्मण है। पिताजी की आज्ञा मानकर हम वन में आए हैं। मैं राम और यह मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है। मेरे साथ में मेरी अर्धांगिनी वैदेही थी। किसी निशाचर ने मेरी पत्नी का हरण कर लिया है। ब्राह्मण देवता हम उन्हीं को ढूंढ रहे हैं। आप कौन हैं? हनुमानजी ने नाम सुना, हनुमानजी को पहचानते देर नहीं लगी। कि ये मेरे प्रभु राम है। श्री हनुमानजी महाराज प्रभु के चरणों में लौट गए भगवान ने श्री हनुमानजी को उठाकर हृदय से लगाया। उसके बाद हनुमानजी महाराज प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी को पीठ पर बिठाकर सुग्रीवजी के पास ले गए ले गए। श्रीराम और महाराज सुग्रीव मैत्री प्रभु श्रीराम जी लक्ष्मण जी हनुमानजी के साथ महाराज सुग्रीवजी के यहां पहुंचे और सुग्रीवजी से हनुमान जी ने श्री रामजी और लक्ष्मणजी का परिचय करवाया। और सुग्रीवजी ने अपने साथ घटी हुई सारी घटना का वृतांत प्रभु श्री राम को सुनाया। सुग्रीवजी कहते हैं, प्रभु एक बार मायावी ने बाली को चुनौती दी युद्ध के लिए और एक गुफा में जाकर मायावी छीप गया। तो बाली ने मुझे कहा कि अगर मैं एक माह तक बाहर ना आया,तो तुम यहां से चले जाना। तो मैं उसे गुफा का द्वार बंद कर दिया, और किष्किंधा है वापस आ गया। जब बाली मायावी को मार कर किष्किंधा वापस आया, तो मुझे राजगद्दी पर देखकर बहुत क्रोधित हुआ। और क्रोध में उसने मुझे मेरा राज्य, मेरी पत्नी सब कुछ मुझसे छीन लिया। प्रभु मुझे तीन लोक 14 भवन घुमा घुमा कर मारा है। पर्वत पर मैं इसलिए रहता हूं, क्योंकि बाली यहां नहीं आ सकता। क्योंकि उसे श्राप मिला है, कि अगर वह ऋषिमुख पर्वत पर आएगा, तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। प्रभु ने यह सुनकर बालि का वध करने का निश्चय किया। Summary सुग्रीव और हनुमानजी के बीच हुए संवाद की कहानी है। सुग्रीव ने हनुमानजी से राम और लक्ष्मण को लेकर आने के कारण के बारे में सोचने को कहा। हनुमानजी ने राम से मिलकर उन्हें उनकी पहचान दिलाई और सुग्रीव के पास ले गए। सुग्रीव ने अपने दुखद घटनाओं को बताया, जिसमें उसका बाहरी शत्रु बाली ने उसकी पत्नी और राज्य को हराया था। राम ने बाली का वध करने का फैसला किया। Question and Answer सुग्रीवजी ने किसे अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था? हनुमानजी को। सुग्रीवजी ने किसे बुलाकर कहा कि वह राम और लक्ष्मण को पूछे कि वे क्यों आए हैं? हनुमानजी को। हनुमानजी ने भगवान के सामने कौन-कौन से प्रश्न पूछे? उन्होंने उनके प्रभावी रूप और उनकी पहचान के संबंध में प्रश्न पूछे। हनुमानजी ने श्रीराम को कहां ले गए? सुग्रीवजी के पास।