श्री रामचरितमानस महिमा 4 घाटो के वक्ता द्वारा
गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानसजी की महिमा गाई तुलसीदास जी कहते हैं भगवान की कथा कामधेनु है अर्थात मनुष्य के जीवन की समस्त मनोकामना को पूर्ण करने की शक्ति और समर्थ अगर किसी में है तो वह भगवान की कथा में है। यह कामधेनु है- “रामकथा कलि कामद गाई।” कलिकाल कलयुग में राम कथा को कामधेनु बताया है “सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥” सज्जनों के लिए सजीविनी बूटी के समान है। अर्थात जो मनुष्य व्यवहार अच्छे से नहीं कर पा रहा है उसे समझ में कैसा व्यवहार करना चाहिए यह कथा सिखाती है इसीलिए यह सजीविनी बूटी है। याज्ञवल्क्य जी द्वारा रामचरितमानस जी की महिमा याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी कोरामचरितमानसजी की महिमा सुनते हुए कहते हैं । “भारद्वाज जी-महामोह महिषेसु बिसाला । रामकथा कालिका कराला ।।रामकथा ससि किरन समाना । संत चकोर करहिं जेहि पाना।।” याज्ञवल्क्य जी कहते हैं मनुष्य के जीवन में 6 विकार होते हैं काम, क्रोध, मोह, मद, लोभ, मत्सर ( ईर्ष्या) इन 6 विकारों में सबसे बड़ा विकार है मोह उत्तर कांड में मोह को कहा गया है- “मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥” इस मोह से कई सूल उत्पन्न होते हैं यह वह सूल है जो चूभ जाता है पर दिखाई नहीं देता है । याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी से किसे कहते हैं मोह विशाल रूप धारण कर ले महिषासुर जैसा । याज्ञवल्क्य जी कहते हैं जिस प्रकार महिषासुर का वध करने के लिए मां काली आती है इस प्रकार जीवन में मोह महिषासुर का रूप धारण कर लेता है उसे मोह रूपी महिषासुर का वध करने के लिए भगवान की कथा मां काली के समान है यह कथा मोह को समाप्त कर देती है यह कथा की महिमा है। कैसे याज्ञवल्क्य जी ने कथा के प्रारंभ में भगवान शिव एवं माता पार्वती के विवाह का वर्णन किया। भगवान शंकर द्वारा रामचरितमानस जी की महिमा बाबा ने माता पार्वती से महिमा में केवल दो बात कही – “रामकथा कलि बिटप कुठारी। सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।” भगवान शंकर कहते हैं देवी आदर पूर्वक एक बात सुनिए राम कथा कलयुग में कलयुग के वृक्ष को काटने वाली कुल्हाड़ी के समान है अगर कलयुग का विकार वृक्ष बन जाए तो उसे काटने के लिए भगवान की कथा कुल्हाड़ी के समान है जिसके पास भगवान की कथा रूपी कुल्हाड़ी रहेगी उसके जीवन में विकार रूपी वृक्ष बचाने वाला नहीं है। “रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।।” भगवान की कथा सुंदर ताली है यह ताली बजाने से संशय रूपी सारे पक्षी उड़ जाएंगे। गरुड़ जी के द्वारा रामचरितमानस जी की महिमा गरुड़ जी को संशय होता है तो वह काग भूसुंडी जी के पास जाते हैं और गरुड़ जी कहते हैं आपके आश्रम के दर्शन मात्र से सारा संसार दूर हो गया हे काग भूसुंडी जी आप वह राम कथा सुनाइए जो जीवन में सुख प्रदान करती है दुख का नाश करती है आप वह कथा आदरपूर्वक सुनाइए और यहां पर गरुड़ जी ने मानस जी की महिमा गई । summary(सारांश) गोस्वामी तुलसीदास, याज्ञवल्क्य, भगवान शंकर, और गरुड़ जी द्वारा रामचरितमानस महिमा का वर्णन किया गया है। तुलसीदास जी ने कहा है कि भगवान की कथा कामधेनु है और याज्ञवल्क्य जी ने मानव जीवन के विकारों को वर्णित किया है। भगवान शंकर ने राम कथा को कलयुग के वृक्ष के समान दिखाया है और गरुड़ जी ने भी मानस की महिमा की प्रशंसा की है। Question and Answer(प्रश्न और उत्तर) प्रश्न: तुलसीदास जी के अनुसार, कथा किसकी तरह कामधेनु है और क्या उसका महत्व है? उत्तर: तुलसीदास जी के अनुसार, कथा भगवान की कथा कामधेनु की तरह है, अर्थात् मानव जीवन की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने की शक्ति है। अगर किसी व्यक्ति में यह शक्ति और समर्थ्य है, तो वह भगवान की कथा में है। इसलिए कथा को सजीविनी बूटी के समान माना गया है, जो मनुष्य को सही व्यवहार की समझ देती है। प्रश्न: याज्ञवल्क्य जी ने रामचरितमानस के विकारों के बारे में क्या कहा और मोह का महत्व क्या है? उत्तर: याज्ञवल्क्य जी ने मनुष्य के जीवन में 6 विकार – काम, क्रोध, मोह, मद, लोभ, और मत्सर (ईर्ष्या) का वर्णन किया। उनमें सबसे बड़ा विकार मोह है। उत्तर कांड में मोह को सभी ब्याधियों का मूल बताया गया है और यह मोह विकार से जुड़े सभी सूलों का मूल है। प्रश्न: भगवान शंकर ने कथा को किस तरह का उपमान दिया और कथा का महत्व क्या है? उत्तर: भगवान शंकर ने कथा को कलयुग के वृक्ष के समान दिखाया है, और उन्होंने कहा है कि इसके बिना कलयुग के विकारों का नाश नहीं हो सकता। कथा का महत्व यह है कि इसके माध्यम से संशय और असंशय से सभी दुख और संकट दूर हो सकते हैं और जीवन में सुख प्राप्त किया जा सकता है। प्रश्न: गरुड़ जी ने रामचरितमानस जी की महिमा के बारे में क्या कहा और उसका संशय के साथ कैसे संबंध है? उत्तर: गरुड़ जी ने संशय होने पर काग भूसुंडी जी को बताया कि कथा के आश्रम के द्वार्शन से सारा संसार दूर हो गया है, और उन्होंने कहा कि कथा विकारों के वृक्ष को काट सकती है। इसलिए उसके द्वार्शन से संशय के साथ जुड़े सभी संकट दूर हो सकते हैं।
कैसे शिवजी के द्वारा श्री रामचरितमानस का नामकरण हुआ (Ramcharitmanas was named)
“शिवजी के द्वारा श्री रामचरितमानस का नामकरण: एक महत्वपूर्ण क्षण”(Ramcharitmanas was named) तुलसीदास जी ने भगवान शिवजी की प्रेरणा से श्री रामचरितमानस की रचना की । भगवान शिवजी ने ही इस ग्रंथ की रचना कराई है, तुलसीदास जी कहते हैं – रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥ भगवान भोलेनाथ ने रामचरितमानस की रचना करके अपने मन में रखा और समय आने पर माता पार्वती को सुनाया। भगवान राम का वह चरित्र जो भगवान भोलेनाथ के मानस से निकला है, इसलिए इसका नाम श्री रामचरितमानस रखा गया। मानस को यदि समझना है तो यह जानने का प्रयास करिए की कौन कह रहा है और किससे कह रहा है । तुलसीदास जी ने मानस में बहुत कम कहा है। जब जब गोस्वामी जी ने कहा है एक ही बात कही है:- “महा मंद मन सुख च हसी ऐसही प्रभहू विशाद” पूज्य गोस्वामीतुलसीदास जी जब भी बोलते हैं एक ही बात बोलते हैं। हे मंदमति भगवान की शरण में चल- भगवान की शरण में चल । गोस्वामी शरणागति घाट के वक्त है ।कैसे श्री रामचरितमानस में चार घाट बताएं हैं? summary(सारांश) भगवान भोलेनाथ की प्रेरणा से तुलसीदास ने ‘श्री रामचरितमानस’ की रचना की। भगवान शिवजी ने इस ग्रंथ की रचना की और उसे अपने मन में रखा। फिर वह ग्रंथ माता पार्वती को सुनाया, जिसका नाम ‘श्री रामचरितमानस’ रखा गया। यह भी कहा गया है कि तुलसीदास ने मानस में बहुत कम कहा है और उन्होंने शरणागति की महत्वपूर्ण बात को उजागर किया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ में चार घाटों का उल्लेख किया है। Question and Qnswer(प्रश्न और उत्तर) उत्तर: श्री रामचरितमानस का नामकरण तुलसीदास जी ने किया था, जो कि भगवान शिवजी की प्रेरणा से हुआ था। 2. श्री रामचरितमानस का नामकरण कैसे हुआ था? उत्तर: भगवान भोलेनाथ ने श्री रामचरितमानस की रचना करके अपने मन में रखा और फिर समय आने पर माता पार्वती को सुनाया। इसलिए इस ग्रंथ का नाम ‘श्री रामचरितमानस’ रखा गया। 3. तुलसीदास जी ने ‘मानस’ में किस बारीकी से कुछ कहा था? उत्तर: तुलसीदास जी ने ‘मानस’ में बहुत कम कहा था और वे शरणागति की महत्वपूर्ण बात को उजागर किया था। उन्होंने गोस्वामी शरणागति घाट के वक्त होने का उल्लेख किया है।
श्री रामचरितमानस रचना (Ramcharitmanas | Ramayan)
Creation of Shri Ramcharitmanas| Ramayan श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना तुलसीदास जी के द्वारा कैसे हुई? श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना संवत्1631 में चैत्र नवमी, दिन मंगलवार को तुलसीदास जी के द्वारा की गई थी । तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानस को दिनभर संस्कृत में लिखते औरअगले दिन सुबह सब मिट जाता , ऐसा 7 दिनों तक चला, दिनभर लिखते और रात को मिट जाता । 7 वे दिन तुलसीदास जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शन दीया और बाबा (भगवान शिव) ने कहा आप श्रीरामचरितमानस को संस्कृत में ना लिखिए गांव की भाषा में लिखिए। “क्यों?” आने वाले समय में संस्कृत समझना सबके बस की बात नहीं रह जाएगी। इसीलिए ऐसी भाषा में लिखिए जो ना पढ़ा लिखा हो वह भी पढ़ पाए। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की रचना अवधि में की। रामचरितमानस की रचना पूर्ण हो गई, काशी के विद्वत परिषद के लोग बोले यह ग्रंथ नहीं हो सकता, क्योंकि यह गांव की भाषा में लिखा है और ग्रंथ तो संस्कृत में होते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी बोले मैंने लिखा नहीं लिखवाया गया है और ओर किसी ने नहीं स्वयं भगवान विश्वनाथ (शिव) ने कहा है लिखने के लिए । तो ब्राह्मणों ने कहा हम कैसे मान लें, गोस्वामी जी बोले निर्णय बाबा विश्वनाथ करेंगे । विश्वनाथ जी के मंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखा गया उनके ऊपर 18 पुराण चारों वेद रखे गए , रखकर के विश्वनाथ जी के चारों द्वार बंद कर दिए गए । रात भर गोस्वामी जी मंदिर के बाहर रोते रहे , जब सुबह भगवान विश्वनाथ की मंगला आरती करने के लिए मंदिर के कपाट खोले गए, तो ब्राह्मणों ने “क्या” देखा श्रीरामचरितमानस जी सबसे नीचे रखे गए थे वह सबसे ऊपर आ गए थे । उसी पर भगवान शिव का हस्ताक्षर था। मानस के प्रथम पर पृष्ठ पर भगवान शिव ने लिखा “सत्यम शिवम सुंदरम”इस शब्द का जन्म ही वहीं पर हुआ। भगवान शिव ने कहा जो भी इसमें लिखा है वही सत्य है। शिवम का अर्थ है “कल्याण” , यही मानव जाति का कल्याण है और “सुंदरम” यही भगवान शिव की सबसे सुंदर कथा है ।भगवान शिव ने ही श्री रामचरितमानस की रचना कराई है क्यों और कैसे? सारांश(summary) “श्रीरामचरितमानस” की रचना तुलसीदास जी द्वारा बड़े अनूठे तरीके से हुई थी। संवत् 1631 में चैत्र नवमी, मंगलवार को इस ग्रंथ की रचना हुई थी। तुलसीदासजी ने इसे दिनभर संस्कृत में लिखते और फिर अगले दिन सुबह सब मिटा देते, इस प्रक्रिया को 7 दिनों तक चलाया, दिनभर लिखते और रात को मिटाते थे। 7 वें दिन, तुलसीदास जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शन दिया और उन्होंने बाबा (भगवान शिव) के सुझाव पर इस ग्रंथ को संस्कृत में नहीं, बल्कि गांव की भाषा में लिखने का निर्णय लिया। इसका मुख्य कारण था कि आने वाले समय में संस्कृत को सबके बस की बात नहीं रहेगी, और इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने भाषा को इतने सरल और सामान्य बनाया कि हर कोई इसको समझ सके। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ की रचना अवधि में की, और इसे काशी के विद्वत परिषद के सदस्यों ने बाधित किया क्योंकि यह ग्रंथ गांव की भाषा में था। हालांकि, भगवान विश्वनाथ के मंदिर में इसे सबसे ऊपर रखकर इसे स्वीकार किया गया और इसके परे उनके हस्ताक्षर से “सत्यम शिवम सुंदरम” शब्द प्रकट हुआ, जो इस ग्रंथ की महत्ता को प्रमाणित करता है। इस ग्रंथ में भगवान शिव ने कहा कि इसमें लिखा सब सत्य है और यह मानव जीवन के कल्याण का स्रोत है।” प्रश्न और उत्तर (Question and Answer) Q1: श्री रामचरितमानस (Ramcharitmanas) की रचना कब और किस दिन हुई थी? A1: श्री रामचरितमानस की रचना संवत् 1631 में चैत्र नवमी, दिन मंगलवार को तुलसीदास जी द्वारा की गई थी। Q2: तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस को कैसे लिखा? A2: तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस को दिनभर संस्कृत में लिखते और अगले दिन सुबह सब मिट जाता, इस प्रक्रिया को 7 दिन तक चलाई, दिनभर लिखते और रात को मिटाते थे। Q3: भगवान शिव और माता पार्वती ने तुलसीदास जी से श्रीरामचरितमानस को किस भाषा में लिखने की सलाह दी? A3: भगवान शिव और माता पार्वती ने तुलसीदास जी से श्रीरामचरितमानस को गांव की भाषा में लिखने की सलाह दी, क्योंकि आने वाले समय में संस्कृत को सबके बस की बात नहीं रहेगी। Q4: कैसे तुलसीदास जी ने भगवान शिव के संदर्शन में श्रीरामचरितमानस को प्रस्तुत किया? A4: तुलसीदास जी ने भगवान शिव के मंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखवाया और उनके ऊपर 18 पुराण और चारों वेद रखे गए। रात भर उन्होंने मंदिर के बाहर रोते रहा। सुबह भगवान विश्वनाथ की मंगला आरती के समय, जब मंदिर के कपाट खुले, तो श्रीरामचरितमानस जी सबसे ऊपर आ गए और उस पर भगवान शिव का हस्ताक्षर था। Q5: भगवान शिव ने श्रीरामचरितमानस के सन्दर्भ में क्या कहा? A5: भगवान शिव ने श्रीरामचरितमानस के सन्दर्भ में कहा, “सत्यम शिवम सुंदरम” जिसका अर्थ है “कल्याण” और “सुंदर कथा” है, और इसे वही सत्य है।