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श्री रामचरितमानस रचना (Ramcharitmanas | Ramayan)

श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना

Creation of Shri Ramcharitmanas| Ramayan श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना तुलसीदास जी के द्वारा कैसे हुई? श्री रामचरितमानस(Ramcharitmanas)की रचना संवत्1631 में चैत्र नवमी, दिन मंगलवार को  तुलसीदास जी के द्वारा की गई थी । तुलसीदासजी श्रीरामचरितमानस को दिनभर संस्कृत में लिखते औरअगले दिन सुबह सब मिट जाता , ऐसा 7 दिनों तक चला, दिनभर लिखते और रात को मिट जाता । 7 वे दिन तुलसीदास जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शन दीया और बाबा (भगवान शिव) ने कहा आप श्रीरामचरितमानस को संस्कृत में ना लिखिए गांव की भाषा में लिखिए। “क्यों?” आने वाले समय में संस्कृत समझना सबके बस की बात नहीं रह जाएगी। इसीलिए ऐसी भाषा में लिखिए जो ना पढ़ा लिखा हो वह भी पढ़ पाए। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री रामचरितमानस की रचना अवधि में की। रामचरितमानस की रचना पूर्ण हो गई, काशी के विद्वत परिषद के लोग बोले यह ग्रंथ नहीं हो सकता,  क्योंकि यह गांव की भाषा में लिखा है और ग्रंथ तो संस्कृत में होते हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी बोले मैंने लिखा नहीं लिखवाया गया है और ओर किसी ने नहीं स्वयं भगवान विश्वनाथ (शिव) ने कहा है लिखने के लिए । तो ब्राह्मणों ने कहा हम कैसे मान लें, गोस्वामी जी बोले निर्णय बाबा विश्वनाथ करेंगे । विश्वनाथ जी के मंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखा गया उनके ऊपर 18 पुराण चारों वेद रखे गए , रखकर के विश्वनाथ जी के चारों द्वार बंद कर दिए गए । रात भर गोस्वामी जी मंदिर के बाहर रोते रहे , जब सुबह भगवान विश्वनाथ की मंगला आरती करने के लिए मंदिर के कपाट खोले गए, तो ब्राह्मणों ने “क्या” देखा श्रीरामचरितमानस जी सबसे नीचे रखे गए थे वह सबसे ऊपर आ गए थे । उसी पर भगवान शिव का हस्ताक्षर था। मानस के प्रथम पर पृष्ठ पर भगवान शिव ने लिखा “सत्यम शिवम सुंदरम”इस शब्द का जन्म ही वहीं पर हुआ। भगवान शिव ने कहा जो भी इसमें लिखा है वही सत्य है। शिवम का अर्थ है “कल्याण” , यही मानव जाति का कल्याण है और “सुंदरम” यही भगवान शिव की सबसे सुंदर कथा है ।भगवान शिव ने ही श्री रामचरितमानस की रचना कराई है क्यों और कैसे? सारांश(summary) “श्रीरामचरितमानस” की रचना तुलसीदास जी द्वारा बड़े अनूठे तरीके से हुई थी। संवत् 1631 में चैत्र नवमी, मंगलवार को इस ग्रंथ की रचना हुई थी। तुलसीदासजी ने इसे दिनभर संस्कृत में लिखते और फिर अगले दिन सुबह सब मिटा देते, इस प्रक्रिया को 7 दिनों तक चलाया, दिनभर लिखते और रात को मिटाते थे। 7 वें दिन, तुलसीदास जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने दर्शन दिया और उन्होंने बाबा (भगवान शिव) के सुझाव पर इस ग्रंथ को संस्कृत में नहीं, बल्कि गांव की भाषा में लिखने का निर्णय लिया। इसका मुख्य कारण था कि आने वाले समय में संस्कृत को सबके बस की बात नहीं रहेगी, और इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने भाषा को इतने सरल और सामान्य बनाया कि हर कोई इसको समझ सके। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस ग्रंथ की रचना अवधि में की, और इसे काशी के विद्वत परिषद के सदस्यों ने बाधित किया क्योंकि यह ग्रंथ गांव की भाषा में था। हालांकि, भगवान विश्वनाथ के मंदिर में इसे सबसे ऊपर रखकर इसे स्वीकार किया गया और इसके परे उनके हस्ताक्षर से “सत्यम शिवम सुंदरम” शब्द प्रकट हुआ, जो इस ग्रंथ की महत्ता को प्रमाणित करता है। इस ग्रंथ में भगवान शिव ने कहा कि इसमें लिखा सब सत्य है और यह मानव जीवन के कल्याण का स्रोत है।” प्रश्न और उत्तर (Question and Answer) Q1: श्री रामचरितमानस (Ramcharitmanas) की रचना कब और किस दिन हुई थी? A1: श्री रामचरितमानस की रचना संवत् 1631 में चैत्र नवमी, दिन मंगलवार को तुलसीदास जी द्वारा की गई थी। Q2: तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस को कैसे लिखा? A2: तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस को दिनभर संस्कृत में लिखते और अगले दिन सुबह सब मिट जाता, इस प्रक्रिया को 7 दिन तक चलाई, दिनभर लिखते और रात को मिटाते थे। Q3: भगवान शिव और माता पार्वती ने तुलसीदास जी से श्रीरामचरितमानस को किस भाषा में लिखने की सलाह दी? A3: भगवान शिव और माता पार्वती ने तुलसीदास जी से श्रीरामचरितमानस को गांव की भाषा में लिखने की सलाह दी, क्योंकि आने वाले समय में संस्कृत को सबके बस की बात नहीं रहेगी। Q4: कैसे तुलसीदास जी ने भगवान शिव के संदर्शन में श्रीरामचरितमानस को प्रस्तुत किया? A4: तुलसीदास जी ने भगवान शिव के मंदिर में श्रीरामचरितमानस को सबसे नीचे रखवाया और उनके ऊपर 18 पुराण और चारों वेद रखे गए। रात भर उन्होंने मंदिर के बाहर रोते रहा। सुबह भगवान विश्वनाथ की मंगला आरती के समय, जब मंदिर के कपाट खुले, तो श्रीरामचरितमानस जी सबसे ऊपर आ गए और उस पर भगवान शिव का हस्ताक्षर था। Q5: भगवान शिव ने श्रीरामचरितमानस के सन्दर्भ में क्या कहा? A5: भगवान शिव ने श्रीरामचरितमानस के सन्दर्भ में कहा, “सत्यम शिवम सुंदरम” जिसका अर्थ है “कल्याण” और “सुंदर कथा” है, और इसे वही सत्य है।  

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